रघुकुल की आन बचाने को माता कैकयी ने अपयश व अपमान सहे, तभी श्री राम के प्रिय थीं

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार युद्ध में राजा दशरथ का मुकाबला बाली से हो गया। राजा दशरथ की तीनों रानियों में से कैकयी अस्त्र-शस्त्र और रथ चालन में पारंगत थीं। इसलिए कई बार युद्ध में वह दशरथ जी के साथ होती थीं। जब बाली और राजा दशरथ की भिड़ंत हुई उस समय भी संयोगवश कैकई साथ ही थीं। बाली को तो वरदान था कि जिस पर उसकी दृष्टि पड़ जाए, उसका आधा बल उसे प्राप्त हो जाता था।
स्वाभाविक है कि दशरथ परास्त हो गए। बाली ने दशरथ के सामने शर्त रखी कि पराजय के मोल स्वरूप या तो अपनी रानी कैकेयी छोड़ जाओ या फिर रघुकुल की शान अपना मुकुट छोड़ जाओ। दशरथ जी ने मुकुट बाली के पास रख छोड़ा और कैकेयी को लेकर चले गए।
कैकेयी कुशल योद्धा थीं। किसी भी वीर योद्धा को यह कैसे सुहाता कि राजा को अपना मुकुट छोड़कर आना पड़े। कैकेयी को बहुत दुख था कि रघुकुल का मुकुट उनके बदले रख छोड़ा गया है।
रानी कैकेयी राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं। जब श्री राम जी के राजतिलक का समय आया, तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई। यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे। कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया। उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।
श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया। उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा। प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था। तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था। जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया। प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें। वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा। जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए। वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी।
अंगद की चुनौती के बाद एक-एक करके सभी वीरों ने प्यास किए परंतु असफल रहे। अंत में रावण अंगद के पैर डिगाने के लिए आया
जैसे ही वह अंगद का पैर हिलाने के लिए झुका, उसका मुकुट गिर गया। अंगद वह मुकुट लेकर चले आए। ऐसा प्रताप था रघुकुल के राज मुकुट का। राजा दशरथ ने गंवाया तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी, प्राण भी गए। बाली के पास से रावण लेकर भागा तो उसके भी प्राण गए।
रावण से अंगद वापस लेकर आए तो रावण को भी काल का मुंह देखना पड़ा, परंतु कैकेयी जी के कारण रघुकुल की आन बची। यदि कैकेयी श्री राम को वनवास न भेजतीं तो रघुकुल का सौभाग्य वापस न लौटता।
महारानी कैकेयी ने कुल के हित में कितना बड़ा कार्य किया और सारे अपयश तथा अपमान को झेला। इसलिए श्री राम माता कैकेयी को सर्वाधिक प्रेम करते थे।

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