नदियाँ के पार की गूंजा….

कलाकारों के निभाए गये किरदार उनको जीवंत कर देते है. और लोग उन्हें उसी नाम से याद रहते है. ऐसा ही एक नाम है फिल्म ‘नदियाँ के पार’ की गूंजा की. गाँव के परिवेश में बनी फिल्म ‘नदियाँ के पार’ ने कई सारे कीर्तिमान स्थापित किये. और इसमें काम करने वाले सभी कलाकार स्टार बन गये. जिनके निभाए गये किरदार को लोग आज भी याद करते है. खास कर उस गाँव की लड़की गूंजा को. जिसे लोग उसके असली नाम के जगह उसे इसी नाम से ही बुलाने लगे. मगर क्या आपको पता है कि इतने सालों बाद गुंजा कैसी लगती है और क्या करती है…..’

◆1982 में आयी थी फिल्म
फिल्म नदिया के पार साल 1982 में आई थी. जिसमें सचिन और साधना सिंह मुख्य किरदार में थे. ये फिल्म केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास पर आधारित थी. जिसकी शूटिंग उत्तर प्रदेश में की गयी थी. ये फिल्म भोजपुरी और अवधी भाषा का मिश्रण थी. जिसमें गाँव के परिवेश की पूरी तरह दिखाया गया था|

◆गूंजा के नाम से फेमस हुई साधना
इस फिल्म में लीड रोल में सचिन और साधना सिंह थी, जिसमें साधना ने गूंजा का किरदार निभाया था. उस गाँव की लड़की ने अपना किरदार इतना बखूबी से निभाया की लोग उन्हें गूंजा के ही नाम से बुलाने लगे. इस फिल्म में गाये गये गाने लोगों के जेहन में आज भी बसे हुए है|

◆फिल्म इंडस्ट्री से अचानक गायब हुई गुंजा
वैसे तो गुंजा ने फिल्म नदिया के पार के बाद फिल्म पिया मिलन, ससुराल, फलक, पापी संसार, सरीखी जैसी फिल्मों में काम किया. मगर अचानक ही वो फिल्म इंडस्ट्री से गायब हो गयी. और अपनी गृहस्थी में रम गयी|

◆अब काफी बदल चुकी है गूंजा
इस फिल्म को अब 35 साल गुजर चुके है. तो जाहिर तौर पर उस फिल्म की अभिनेत्री की उम्र भी अब काफी हो चुकी होगी. हाल में ही गूंजा यानी की साधना सिंह ने सोशल मीडिया पर अपने परिवार के साथ एक तस्वीर शेयर की है|

◆गूंजा की बेटी हो गयी है जवान
हालाँकि इस तस्वीर में गूंजा का किरदार निभाने वाली साधना को पहचानना मुश्किल है. इस तस्वीर में साधना अपनी बेटी शीना के साथ नजर आ रही है. आपको बता दें साधना की बेटी शीना अब जवान हो चुकी है और वो अपनी माँ की ही तरह खुबसूरत लग रही है. साथ ही शीना अब तक कई फिल्मों में काम भी कर चुकी है|

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मुम्बइया प्रेम कहानी से अलग यह एक ऐसी प्रेमकथा थी जिसकी नायिका के अंदर “जवानी” नहीं, बचपना भरा हुआ था। जिसका नायक नायिका की देह देख कर प्यार में नहीं पड़ता, उसे जाने क्यों नायिका के साथ रहने में खुशी मिलने लगती है। दोनों का प्रेम ऐसा है जैसे दो ग्रामीण बच्चे खेल रहे हों। वे कब झगड़ते हैं, कब रूठते हैं और कब एक दूसरे की नाक खींच कर हँसने लगते हैं यह उन्हें भी ज्ञात नहीं होता। टेलिविजन पर जब प्रथम बार “नदिया के पार” देखी थी। तब से न जाने कितनी बार देखी, कुछ स्मरण नहीं। हृदय में गूंजा और चंदन कुछ ऐसे बसे हैं जैसे प्रेम करने का अर्थ ही “गुंजा हो जाना” है। परदे पर जब-जब गुंजा ने चंदन से कहा, “तुमसे खेले बिना हमारा फगुआ कैसे पूरा होता..!” तब-तब लगा है जैसे उनके साथ साथ हम भी प्रेम को ‘जी’ रहे हों। बलिहार से चौबे छपरा जाते चंदन-गुंजा ने जब-जब दीपासती को प्रणाम किया, तो उनसे पहले हमने प्रार्थना की,” हे दीपासती, चंदन ही गुंजा की मांग भरे..”रूपा की गोद में मुह छिपा कर सिसकती गुंजा को देख कर हर बार रूपा से पहले हमने कहा होगा-“यह क्या रे! रोती क्यों है तू? जो चाहती है, वही होगा। चन्दन ही तेरी मांग भरेगा, रो मत।”हमारी पीढ़ी के असंख्य युवकों ने चन्दन और गुंजा से ही प्रेम करना सीखा है।हमारी पीढ़ी का स्यात ही कोई गंवई युवक या युवती ऐसी हो जो आज भी “कवन दिशा में ले के चला रे बटोहिया…” सुन के मुस्कुरा न उठे।
अस्सी के दशक में जन्मे हजारों लड़कों का नाम चन्दन, और हजारों लड़कियों का नाम गुंजा इसी फिल्म के कारण रखा गया।

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