निर्माण काल से ही अधूरा बना पड़ा है अनोखा जांजगीर विष्णु मंदिर

छत्‍तीसगढ़ में भगवान विष्‍णु का एक अनोखा मंदिर है जो अपने निर्माण काल से अधूरा है और कभी पूरा नहीं किया जा सका। इस मंदिर को जांजगीर विष्णु मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह पूर्वाभिमुखी मंदिर जिसे छत्तीसगढ़ के कल्चुरी नरेश जाज्वल्य देव प्रथम ने भीमा तालाब के किनारे 11वीं शताब्दी में बनवाया था। जो भारतीय स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। और यह सप्तरथ योजना से बना मंदिर था। मगर अब उसके अवशेष ही वहां पाए जाते हैं ।
जांजगीर विष्णु मंदिर से जुड़ी कई दंतकथाएं प्रचलित है। जिनमें से एक हैं शिवरीनारायण मंदिर और जांजगीर मंदिर के बीच प्रतियोगिता की कथा। कथा के अनुसार भगवान नारायण ने एक घोषणा की थी। इसमें यह कहा गया जो मंदिर पहले तैयार होगा, वे उसी में प्रविष्ट होंगे। दोनों के बीच मंदिर निर्माण की प्रतियोगिता में शिवरीनारायण मंदिर पहले तैयार हो गया और जांजगीर मंदिर अधूरा रह गया।
एक अन्य दंतकथा के अनुसार, मंदिर से सटे भीमा तालाब को भीम ने 5 बार फावड़ा चलाकर खोदा था। किंवदंती के अनुसार भीम को मंदिर का शिल्पी भी बताया गया है। इसके अनुसार एक बार महाबली भीम और विश्वकर्मा में एक रात में मंदिर निर्माण की प्रतियोगिता आयोजित हुई थी। तब भीम ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ किया। मंदिर निर्माण के दौरान जब भीम की छेनी और हथौड़ा नीचे गिरता तो उसका हाथी उसे वापस लाकर देता। लेकिन एक बार भीम की छेनी पास के तालाब में जा गिरी, जिसे हाथी वापस नहीं ला सका और सवेरा होने के बाद भीम प्रतियोगिता हार गए। भीम को प्रतियोगिता हारने का बहुत दुख हुआ और क्रोध में आकर हाथी के दो टुकड़े कर दिए। मंदिर में भीम और हाथी की खंडित प्रतिमा को देखा जा सकता है।
मंदिर के चारों ओर अत्यन्त सुंदर एवं अलंकरणयुक्त प्रतिमाये बनाई गई हैं। त्रिमूर्ति के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति भी यहां स्‍थापित है। ठीक इसके ऊपर गरुणासीन भगवान विष्णु की मूर्ति भ्‍ज्ञी है। मंदिर के पृष्ठ भाग में सूर्य देव विराजमान हैं। मूर्ति का एक हाथ भग्न है लेकिन रथ और उसमें जुते सात घोड़े स्पष्ट हैं। यहीं नीचे की ओर कृष्ण कथा से सम्बंधित चित्रों में वासुदेव कृष्ण को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाए गतिमान दिखाये गये हैं। इसी प्रकार की अनेक मूर्तियां नीचे की दीवारों में बनी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय बिजली गिरने से मंदिर ध्वस्त हो गया था जिससे मूर्तियां बिखर गयीं। बाद में उन मूर्तियों को मंदिर की मरम्मत करते समय दीवारों पर जड़ दिया गया। मंदिर के चारो ओर अन्य कलात्मक मूर्तियों में भगवान विष्णु के दशावतारो में से वामन, नरसिह, कृष्ण और राम की प्रतिमाये स्‍थित हैं। छत्तीसगढ के किसी भी मंदिर मे रामायण से सम्बंधित इतने दृश्य कहीं नहीं मिलते जितने इस विष्णु मंदिर में हैं। इतनी सजावट के बावजूद मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है। आज तक यह मंदिर सूना है और एक दीप के लिये तरस रहा है।

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