डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी मौत पर भी नेहरू ने नहीं कराई जांच: सांसद

*डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर सांसद की पुष्पांजलि

गणादेश ब्यूरो
अररिया:जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर अररिया के भाजपा सांसद प्रदीप कुमार सिंह ने अपने आवास पर कार्यकताओं के साथ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के तेलचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए सांसद ने कहा कि डॉ मुखर्जी का राजनीतिक करियर 1929 शुरू हुआ था और इन्होंने इस साल बंगाल विधान परिषद में कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कांग्रेस की ओर से किया था। हालांकि एक साल बाद ही इन्होंने इस परिषद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन इन्हें एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में फिर से निर्वाचित किया गया था. 1939 में ये हिंदू महासभा से जुड़ गए थे और इसी साल इन्हें इस महासभा का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया था।भारत के स्वतंत्रता के बाद, इन्हें अंतरिम केंद्र सरकार में उद्योग और आपूर्ति मंत्री बनाया था. लेकिन सरकार द्वारा लिए गए कुछ निर्णय के विरोध में इन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।कांग्रेस पार्टी से अलग होने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने गोलवलकर गुरुजी के परामर्श करने के बाद 21 अक्टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ (बीजेएस) पार्टी का गठन किया था।इस पार्टी को बनाने के साथ ही ये इसके प्रथम अध्यक्ष बन गए थे और 1952 में इनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भाग लिया। उस चुनाव में इनकी पार्टी को 3 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी।जम्मू-कश्मीर राज्य का अलग संविधान बनाने के विरुद्ध श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी आवाज उठाई थी,वो इस राज्य के लिए अलग संविधान बनाने के पक्ष में नहीं थे ,उन्होंने धारा 370 का विरोध किया। और इसी दौरान इन्होंने इस राज्य का दौरा भी किया था।श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने जीवन की अंतिम सांस जम्मू- कश्मीर राज्य में 1953 में ली थी और जिस वक्त इनका निधन हुआ था, उस वक्त ये इस राज्य में धारा 370 का विरोध कर रहे थे ,और इनको उसी समय हिरासत में ले लिया गया था।दरअसल धारा 370 के तहत इस राज्य में सरकार की अनुमति के बिना नहीं जाया जा सकता था और इस चीज का विरोध करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 11 मई, 1953 में इस राज्य में बिना सरकार की अनुमति के प्रवेश ले लिया था. जिसके चलते इनको गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था।हालांकि कुछ समय बाद मुखर्जी और उनके साथ गिरफ्तार किए गए दो लोगों को एक कॉटेज में पुलिस द्वारा रखा गया था और इसी दौरान इनकी तबीयत खराब हो गई थी. वहीं तबीयत ज्यादा खराब होने के बाद इन्हें 22 जून को अस्पताल में भी भर्ती करवाया गया था, जहां पर इनको हाई अटैक होने की बात कही गई थी और एक दिन बाद ही इनकी मौत भी हो गई थी. कहा जाता है कि इनकी मौत रहस्यमय परिस्थितियों में हो गई थी।इनकी मृत्यु के बाद इनकी मां ने उस वक्त के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से इनकी मौत की जांच करवाने को कहा था. लेकिन नेहरू जी ने इनकी मौत की जांच करवाने से मना कर दिया था। पुष्पांजलि अर्पित सभा मे भाजपा के कई कार्यकर्ता उपस्थित थे।

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