भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है सामा चकेवा

पटना: मिथिलांचल में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा समाप्त होने के साथ ही मिथिला का प्रसिद्ध लोकपर्व सामा चकेवा शुरू हो जाता है यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि से शुरू होकर पूर्णिमा चलेगी। भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक सामा चकेवा मिथिला में मैथिली गीतों से कवि कोकिल बाबा विद्यापति की धरती बिस्फी समेत प्रखंड के विभिन्न गांवों एवं गलियां गुलजार हो रही है।सामा चकेवा पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।पारंपरिक लोक गीतों से जुड़े सामा चकेवा पर्व की खासियत है कि यह समुदायों के बीच व्याप्त भाषाओं एवं सामाजिक सद्भाव को तोड़ती है।आठ दिनों तक यह उत्सव मनाई जाती है।और नौंवें दिन बहनें अपने भाइयों को धान की नई फसल का चुड़ा एवं दही खिलाकर सामा चकेवा की मूर्तियों को जोते हुए खेतों में विसर्जित कर देती हैं।शाम ढलते ही बहनें डाला में सामा चकेवा को सजाकर सार्वजनिक स्थान पर बैठकर गीत गाती है।गाम के अधिकारी तोहे बड़का भैया हो. सामा चके.साम सके.अईहा हैं वृदावन में बसिहा है.सामा चकेवा खेल गेलौए है बाहिनो आदि गीत गाकर हंसी ठिठोली की जाती है। साथी भाई के दीघार्यु होने की भी कामनाएं की जाती है।बाबा विद्यापति की धरती पर सामा चकेवा की तैयारी दीपावली के बाद शुरू हो जाती है।कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष को पंचमी तिथि से सामा चकेवा की मूर्ति की खरीदारी शुरू हो जाती है।पंचमी से पूर्णिमा तक चलने वाली हैं इस लोकपर्व सामा चकेवा में भाई बहन के अटूट प्रेम की गंगा प्रवाहित होती है।पर्व के दौरान बहन अपने भाई के दीर्घ जीवन एवं संपन्नता के लिए मंगल कामनाएं करती हैं।

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