इस तरह भगवान शिव की जटा में समाई गंगा

भगवान शिव के मस्तक पर गंगा के विराजमान होने की घटना का संबंध राजा भगीरथ से माना जाता है। कथा है कि भगीरथ ने अपने पूर्वज सगर के पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा था। लेकिन इस कथा के पीछे कई कथाएं हैं जिनसे भगीरथ का प्रयास सफल हुआ।
एक कथा है कि ब्रह्मा की पुत्री गंगा बड़ी मनमौजी थी। एक दिन दुर्वासा ऋषि जब नदी में स्नान करने आए तो हवा से उनका वस्त्र उड़ गया और तभी गंगा हंस पड़ी। क्रोधी दुर्वासा ने गंगा को शाप दे दिया कि तुम धरती पर जाओगी और पापी तुम में अपना पाप धोएंगे। इस घटना के बाद भगीरथ का तप शुरू हुआ और भगवान शिव ने भगीरथ को वरदान देते हुए गंगा को स्वर्ग से धरती पर आने के लिए कहा। लेकिन गंगा के वेग से पृथ्वी की रक्षा के लिए शिव जी ने उन्हें अपनी जटाओं में बांधना पड़ा।
कथा यह भी है कि गंगा शिव के करीब रहना चाहती थी, इसलिए धरती पर उतरने से पहले प्रचंड रूप धारण कर लिया। इस स्थिति को संभालने के लिए शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया।

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