प्रकृति पूजा और भाई बहन के बीच अटूट बंधन का प्रतीक है करमा पर्व

गणादेश डेस्कः करमा झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व झारखंड के अलावा ओडिशा, बंगाल, छत्तीसगढ़ और असम में आदिवासी समुदाय द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। करमा पर्व भादो महीना के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस पर्व को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य है बहनों द्वारा भाईयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करना है। झारखंड के लोगों की परंपरा रही है कि धान की रोपाई हो जाने के बाद प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं। झारखंड में प्रकृति के पूजन की परंपरा सदियों से है। करमा पर्व के अवसर पर करम डाली की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को बहनों द्वारा भाइयों के लिए मनाया जाता है। इसके अलावा यह प्रकृति का भी प्रतीक है. बहनें अपने भाईयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु होने की कामना इस दिन करती हैं। करमा पर्व के कुछ दिन पहले युवतियां नदी या तालाब से बालू उठाती है। नदी या तालाब से स्वच्छ और महीन बालू उठाकर डाली में भरी जाती है। इसमें सात प्रकार के अनाज बोती है, जौ, गेहूं, मकई, धान, उरद, चना, कुलथी आदि और किसी स्वच्छ स्थान पर रखती हैं। दूसरे दिन से रोज धूप, धूवन द्वारा पूजा-अर्चना कर हल्दी पानी से सींचती है। चारों ओर युवतियां गोलाकार होकर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जावा जगाने का गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। पूजा के दिन बहनें नए वस्त्र पहनकर, पैरों में अलता लगाकर तैयार होती है। इसके बाद शाम के समय गांव के बड़े बुजुर्ग नए वस्त्र पहनकर मंदार बजाते, नाचते गाते हुए करम डाली काटने जाते है। वहां पहुंचकर करम पेड़ का पूरे श्रद्धा से पूजा-अर्चना करके पेड़ चढ़कर तीन डालियां काटता है और साथ लेकर पेड़ से उतरता है इसमें यह भी ध्यान रखना होता है कि करम डाली जमीन पर गिरे नहीं। इसके बाद करम को घर के आंगन में विधिपूर्वक गाड़ा जाता है। बहनें सजी हुई थाली लेकर डाली के चारों और पूजा करने बैठ जाती है। करम राजा से प्रार्थना करती है कि हे करम राजा! मेरे भाई को सुख समृद्धि देना। इसके बाद सभी रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। इस अवसर पर एक विशेष गीत भी गाये जाते हैं।

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