कलयुग में यहां-यहां हैं हनुमानजी के पदचिह्न!

चिरंजीवी अजर-अमर रामदूत हनुमानजी के बारे में अक्सर चर्चा होती है कि कलयुग में यहां देखे गए, वहां देखे गए। कई लोगों ने भगवान हनुमानजी को साक्षात देखने का दावा किया है। हनुमान जी के कई स्थानों पर पदचिह्न भी बताए जाते है। ऐसे में हनुमानजी के ये पैरों के निशान के दर्शन करना अपने आप में अद्भुत अनुभव होता है। आइए जानते हैं कहां-कहां भगवान हनुमानजी ने धरती पर अपने कदम रखे थे, जहां उनके पैरों के निशान बन गए। उनमें से कुछ प्रमुख पदचिह्नों के बारे में तस्वीरों सहित संक्षिप्त में जानें।
हनुमानजी ने जब सीताजी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण कर लिया था, फिर वे आकाश मार्ग से समुद्र को पार करके श्रीलंका पहुंच गए थे। ऐसा कहा जाता है कि जहां उन्होंने अपने पहले कदम रखे, वहां उनके पैरों के निशान बन गए। ये निशान आज भी वहां मौजूद हैं जिसे ‘हनुमान पद’ कहा जाता है। अंजनेरी पर्वत पर 5000 फुट की ऊंचाई पर बना है आस्था का यह परम धाम, जहां आज भी मिलते हैं पवनपुत्र हनुमान के पैरों के निशान। कहते हैं कि यहीं से सूर्यदेव बाल हनुमान के मुख में समा गए थे।
जानकार लोग कहते हैं कि आकाश के सूर्य नहीं, बल्कि सूर्य (विवस्वान) नामक देवता को उन्होंने अपने मुख में समा लिया था। यहां पांव के आकार जैसा दिखने वाला एक सरोवर है। कहा जाता है कि ये बाल हनुमानजी के पैरों के दबाव से बना है। यहीं से उन्होंने एक पैर जमीन पर दबाकर जोर से छलांग लगाई और सूर्यदेव को फल समझकर मुंह में दबा लिया था। जब इन्द्रदेव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने हनुमानजी के मुख पर वज्र का प्रहार किया जिसके उनका मुंह खुल गया और सूर्यदेव मुंह से बाहर निकल आए, लेकिन इन्द्रदेव के इस कृत्य के चलते हनुमानजी की ठुड्डी (हनु) टूट गई थी जिसके चलते उनका नाम हनुमान पड़ गया।
अंजनेरी पर्वत पर बना यह सरोवर आज भी उस घटना की याद दिलाता है। यह मान्यता है कि इसके पानी को छूना बजरंग बली के चरण स्पर्श करने के बराबर है। यह पर्वत महाराष्‍ट्र के नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर के पास लगभग 6 से 7 किलोमीटर दूर स्थित है।
झारखंड के गुमला जिले में पवनपुत्र का ननिहाल था। यहीं माता अंजनी ने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा गुजारा। यहां मौजूद माता अंजनी और हनुमान की निशानियां आज भी भक्तों को अभिभूत कर देती हैं। राजधानी रांची से करीब 140 किमी दूर गुमला जिले में घने जंगलों के बीच स्थित है यह स्थान। इलाके में करीब 360 सरोवर और 360 शिवलिंग मौजूद हैं। अपने तप के दौरान माता अंजनी घने जंगलों के बीच रहकर रोज नए-नए सरोवर में स्नान कर अलग-अलग शिवलिंग की उपासना करती थीं। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ही भोलेनाथ ने उनके गर्भ से 11वें रुद्र अवतार ‘हनुमान’ के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था।
हनुमानजी ने जब सीताजी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण कर लिया था, फिर वे आकाश मार्ग से समुद्र को पार करके श्रीलंका पहुंच गए थे। ऐसा कहा जाता है कि जहां उन्होंने अपने पहले कदम रखे, वहां उनके पैरों के निशान बन गए। ये निशान आज भी वहां मौजूद हैं जिसे ‘हनुमान पद’ कहा जाता है।
भगवान राम, हनुमान के साथ यहां दर्द से तड़प रहे जटायु से मिले थे। राम ने यहां जटायु को मोक्ष प्राप्त करने में मदद की और दो शब्द कहे थे- ‘ले पक्षी’ जिसका तेलुगु में मतलब होता है ‘पक्षी उदय’। यहां आपको बहुत बड़े पैर के छाप मिलेंगे। इन पैरों के निशान के बारे में कहा जाता है कि ये हनुमानजी के पैरों के निशान हैं। यह लेपाक्षी मंदिर आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित है।
इस मंदिर की दक्षिण भारत में बड़ी मान्यता है। पैरों के इस निशान को लेकर कई मान्यताएं हैं। कोई कहता है कि ये देवी दुर्गा का पैर है, कोई इसे श्रीराम के निशान मानता है, लेकिन इस मंदिर का इतिहास जानने वाले इसे सीता का पैर मानते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जटायु के घायल होने के बाद माता सीता ने जमीन पर आकर खुद अपने पैरों का यह निशान छोड़ा था और जटायु को भरोसा दिलाया था कि जब तक भगवान राम यहां नहीं आते, यहां मौजूद पानी जटायु को जिंदगी देता रहेगा। ऐसा माना जाता है कि ये वही स्थान है, जहां जटायु ने श्रीराम को रावण का पता बताया था। यहां मौजूद एक अद्भुत शिवलिंग है रामलिंगेश्वर जिसे जटायु के अंतिम संस्कार के बाद भगवान राम ने खुद स्थापित किया था। पास में ही एक और शिवलिंग है हनुमानलिंगेश्वर। बताया जाता है कि श्रीराम के बाद महाबली हनुमान ने भी यहां भगवान शिव की स्थापना की थी।
हिमाचल के शिमला में जाखू मंदिर में हनुमानजी के पदचिह्न देखे जा सकते हैं। मान्यता है कि राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मणजी के मूर्छित हो जाने पर संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय की ओर आकाश मार्ग से जाते हुए हनुमानजी की नजर यहां तपस्या कर रहे यक्ष ऋषि पर पड़ी। बाद में इसका नाम यक्ष ऋषि के नाम पर ही यक्ष से याक, याक से याकू, याकू से जाखू तक बदलता गया। हनुमानजी विश्राम करने और संजीवनी बूटी का परिचय प्राप्त करने के लिए जाखू पर्वत के जिस स्थान पर उतरे, वहां आज भी उनके पदचिह्नों को देखा जा सकता है।
मलेशिया के पेनांग में एक मंदिर के भीतर हनुमानजी के पैरों के निशान हैं। आगंतुक अपने अच्छे भाग्य के लिए इस पदचिह्न पर सिक्के फेंकते हैं।

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