गणादेश खासः झारखंड में बिजली आपूर्ति का सचः राष्ट्रीय औसत के मुकाबले दोगुणा से अधिक है झारखंड में बिजली का नुकसान

अफसरों -इंजीनियरों के वेतन सहित अन्य मदों में हर माह खर्च होता है 100 करोड़
राष्ट्रीय औसत है 15 फीसदी, जबकि झारखंड में 34 फीसदी है लाइन लॉस
एक फीसदी लाइन लॉस में कमी हो तो चार से पांच करोड़ रुपए की होगी बचत
रांचीः झारखंड में बिजली आपूर्ति का आंकड़ा चौंकाने वाला है। यह आंकड़ा खुद झारखंड राज्य बिजली वितरण निगम का है। नियमित बिजली आपूर्ति, लोड शेडिंग नहीं होना और फुल लोड बिजली की बात का दावा वितरण कंपनी द्वारा किया जाना कहीं न कहीं झुठला भी रहा है। झारखंड में लाइन लॉस 34 फीसदी है। जबकि राष्ट्रीय औसत लगभग 15 फीसदी है। यानि राष्ट्रीय औसत के मुकाबले दोगुणा से अधिक बिजली का नुकसान( लाइन लॉस) झारखंड में ही है। इस कारण बिजली वितरण निगम करोड़ों के घाटे ले अब तक उबर नहीं पाया है। एक फीसदी लाइन लॉस कम हो तो चार से पांच करोड़ रुपए की बचत होगी। इस हिसाब से राष्ट्रीय मानक के मुकाबले 19 फीसदी अधिक होने के कारण लगभग 76 करोड़ रुपए का नुकसान भी हो रहा है।
बिजली वितरण कंपनी का हर महीना खर्चा 650 करोड़
बिजली वितरण कंपनी का खर्च हर महीने लगभग 650 करोड़ रुपए है। जिसमें हर माह 550 करोड़ रुपए की बिजली खरीदी जाता है। शेष 100 करोड़ रुपए वेतन सहित अन्य मदों में खर्च की जाती है। इसके एवज में बिजली वितरण कंपनी को 470 करोड़ रुपए राजस्व की प्राप्ति होती है। इस हिसाब से घाटा दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। लगभग हर माह 180 करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है। वहीं दूसरे स्त्रोतों से बिजली लेने के एवज में लगभग 8000 करोड़ रुपए का भी बकाया हो गया है। बिजली की कमी को पूरा करने के लिए हर दिन डीवीसी से 550 मेगावाट, एनटीपीसी से 450 मेगावाट, इंलैंड पावर से 50 मेगावाट, टीवीएनएल से 340 मेगावाट, आधुनिक पावर से 180 मेगावाट और अन्य स्त्रोतों से 100 मेगावाट रोजाना बिजली ली जाती है। कुल मिलाकर झारखंड की बिजली व्यवस्था निजी और सेट्रल सेक्टर के भरोसे टिकी हुई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *