यहां अपने पुत्र संग विराजे है हनुमान जी, 500 साल पुराना है मंदिर
देश भर में हनुमान जी के कई चमत्कारी मंदिर है। इन मंदिरों में कहीं बजरंगबली।लेटे हुए, कहीं बैठे हुए तो कहीं उनकी सबसे ऊंची प्रतिमा देखी होगी। लेकिन गुजरात के द्वारका में हनुमान जी का एक अनोखा ही मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जी अपने पुत्र मकरध्वज के साथ विराजमान हैं। जी हां आपको जानकर आश्चर्य जरुर हुआ होगा, क्योंकि हनुमान जी तो बालब्रह्मचारी थे। जानिए, इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
द्वारका से चार मील की दूरी पर बेटद्वारका हनुमान दंडी मंदिर स्थित है। दरअसल मान्यताओं के अनुसार यह वही स्थान है जहां हनुमान जी अपने पुत्र से पहली बार मिले थे। इस स्थान पर अपने पुत्र मकरध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। लोगों का कहना है की यहां स्थापित मकरध्वज की मूर्ति पहले छोटी थी लेकिन अब ये दोनों ही मूर्तियां एक जैसी ऊंची हो गई हैं। यह मंदिर दांडी हनुमान मंदिर के नाम से जानी जाती है ।
बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 500 साल पुराना मंदिर है। भारत में यह पहला मंदिर है जहां हनुमानजी और मकरध्वज (पिता -पुत्र) का मिलन दिखाया गया है। मंदिर में प्रवेश करते ही सामने मकरध्वज और उनके पास ही हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। दोनों ही प्रतिमा बहुत ही प्रसन्नचित मुद्रा में विराजमान है, खास बात तो यह है की उनके हाथों में कोई शस्त्र नहीं है।
शास्त्रों में हनुमानजी के इस पुत्र का नाम मकरध्वज बताया गया है। भारत में दो ऐसे मंदिर भी है जहां हनुमानजी की पूजा उनके पुत्र मकरध्वज के साथ की जाती है। इन मंदिरों की कई विशेषताएं हैं जो इसे खास बनाती हैं। इस मंदिर में पुजारी ने बताया कि बरसों पहले इस मंदिर में कुछ लोग ही आ पाते थे, अब तो यहां रोज ही सैकड़ों लोग आते हैं। दर्शनार्थियों की भीड़ लगातार बढ़ रही है। उनके लिए यहां प्रसाद की भी व्यवस्था रखी गई है।
जब हनुमानजी श्रीराम-लक्ष्मण को लेने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली से हुआ था। कहते हैं कि पहले हिंदू धर्म को मानने वाले ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान श्रीराम के परमभक्त व भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार श्रीहनुमानजी बालब्रह्मचारी थे।
मकरध्वज की उत्पत्ति की कथा
धर्म शास्त्रों के अनुसार जिस समय हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे।
उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पड़ा “मकरध्वज”। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था। मकरध्वज को अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था।
जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था। तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे, जहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। तत्पश्चात हनुमानजी और मकरध्वज के बीच घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है। मकरध्वज व हनुमानजी का यह पहला मंदिर गुजरात के भेंटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलो मीटर अंदर की ओर है।