इस गणेश मंदिर को भगवान राम, सीता व लक्ष्मण ने स्थापित किया था
उज्जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर श्री चिंताहरण गणेश मंदिर में भगवान श्री गणेश के तीन रूप एक साथ विराजमान है। जो चितांमण गणेश, इच्छामण गणेश और सिद्धिविनायक के रूप में जाने जाते है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चिंतामण गणेश सीता द्वारा स्थापित षट् विनायकों में से एक हैं। कहते हैं कि यह मंदिर रामायण काल में राम वनवास के समय का है। जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में घूम रहे थे तभी सीता को बड़ी जोरों की प्यास लगी। राम ने लक्ष्मण से पानी लाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया।
पहली बार लक्ष्मण द्वारा किसी काम को मना करने से श्री राम जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने ध्यान द्वारा समझ लिया कि यह सब यहां की दोष सहित धरती का कमाल है। तब उन्होंने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां गणपति मंदिर की स्थापना की। जिसके प्रभाव से बाद में लक्ष्मण ने यहां एक बावड़ी बनाई जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते हैं।
यह भी माना जाता है कि राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री राम ने यहां आकर पूजा-अर्चना की थी।
इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप महारानी अहिल्याबाई द्वारा करीब 250 वर्ष पूर्व बनाया गया था। इससे भी पूर्व परमार काल में भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार हो चुका है। यह मंदिर जिन खभों पर टिका हुआ है, वह परमार कालीन ही हैं।
यहां की श्री चिंताहरण गणेश जी की ऐसी अद्भुत और स्वयंभू और अलोकिक प्रतिमा देश में शायद ही कहीं होगी। यहां भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले, इच्छामण, सिद्धि देने वाले सिद्धिविनायक के साथ समस्त चिंता को दूर करने वाले चिंतामण गणेश जी विराजमान है। इनका श्रृंगार सिंदूर से किया जाता है। श्रृंगार से पहले दूध और जल से इनका अभिषेक किया जाता है और विशेष रूप से मोदक और मोतीचूर के लड्डू का भोग इन्हें लगाया जाता है, जो इन्हें अत्यन्त प्रिय है।
बुधवार के दिन इस मंदिर में भक्तों को विशेष रूप से तांता लगता है। इनको तीन पत्तों वाली दूब भक्तों द्वारा चढाई जाती है। हर त्यौहार और उत्सव पर तरह-तरह के श्रृंगार विशेष रूप से किए जाते है। चिंतामण गणेश की आरती दिन में तीन बार होती है। प्रातः कालीन आरती, संध्या भोग आरती और रात्रि शयन आरती। आरती में ढोल, डमाके और ताशों की गूंज ऐसी होती है कि आरती में शामिल हर भक्त मग्न हो जाता है।
यहां पर भक्त, गणेश जी के दर्शन कर मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना मांगते है और जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह पुनः दर्शन करने आता है।