महाराष्ट्र में इस स्थान को कुछ लोग शनि देव का जन्म स्थान मानते हैं…

भगवान शनिदेव को ग्रहों में सबसे प्रभावशाली भी माना गया है। वह मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। इसी वजह से लोग उनकी पूजा में बहुत सावधानी बरतते हैं। उनके प्रकोप से बचने के लिए शनिवार के दिन उनकी पूजा करते हैं। आज हम आपको शनिदेव के छह प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं।महाराष्ट्र में स्थित इस मंदिर की ख्याति देश ही नहीं विदेशों में भी है। कई लोग तो इस स्थान को शनि देव का जन्म स्थान भी मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर हैं लेकिन दरवाजा नहीं और वृक्ष हैं लेकिन छाया नहीं। शिंगणापुर के इस चमत्कारी शनि मंदिर में स्थित शनिदेव की प्रतिमा लगभग पांच फीट नौ इंच ऊंची व लगभग एक फीट छह इंच चौड़ी है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आकर शनिदेव की इस दुर्लभ प्रतिमा का दर्शन करते हैं।यह मंदिर दिल्ली के महरौली में स्थित है। यहां शनि देव की सबसे बड़ी मूर्ति विद्यमान है, जो कि अष्टधातुओं से बनी है। शनिदेव की भक्ति का यह स्थान हमेशा से केंद्र रहा है और यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती हैं। यहां एक प्रतिमा में शनिदेव गिद्ध और दूसरे में भैंस पर सवार हैं। असोला शक्ति पीठ को लेकर मान्यता है कि यहां शनिदेव स्वयं जागृत अवस्था में विराजमान हैं।शनिदेव का प्राचीन व चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में स्थित है। इसे दुनिया का सबसे प्राचीन शनि मंदिर माना जाता है। माना जाता है कि जूनी इंदौर में स्थापित इस मंदिर में शनि देवता स्वयं पधारे थे। इस मंदिर के बारे में एक कथा प्रचलित है कि मंदिर के स्थान पर लगभग 300 वर्ष पूर्व एक 20 फुट ऊंचा टीला था, जहां वर्तमान पुजारी के पूर्वज पंडित गोपालदास तिवारी आकर ठहरे थे। यहां हर रोज शनिदेव की प्रतिमा का 16 श्रृंगार किया जाता है। यहां तेल से नहीं बल्कि सिंदूर से शनिदेव का श्रृंगार किया जाता है।मध्य प्रदेश में ग्वालियर के नजदीकी एंती गांव में शनिदेव मंदिर का देश में विशेष महत्व है। देश के सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनिदेव की प्रतिमा भी विशेष है। माना जाता है कि ये प्रतिमा आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित है। ज्योतिषी व खगोलविद मानते हैं कि शनि पर्वत पर निर्जन वन में स्थापित होने के कारण यह स्थान विशेष प्रभावशाली है। महाराष्ट्र के शिंगणापुर शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनि शिला भी इसी शनि पर्वत से ले जाई गई है। कहते हैं कि हनुमान जी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराकर उन्हें मुरैना पर्वतों पर विश्राम करने के लिए छोड़ा था। मंदिर के बाहर हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित है।

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