शहीद मंजरुल हसन फाउंडेशन 20 मार्च को चितरपुर में मनाएगा 50वां शहादत दिवश

रजरप्पा।मनोज कुमार झा
चितरपुर के मंजुरूल हसन खां को शायद नई पीढ़ी के लोग नहीं जानते होंगे लेकिन 1950-70 के दशक में उन्होंने रामगढ़,बोकारो हजारीबाग क्षेत्र के लिए जो कार्य किए हैं वह आज भी अनुकरणीय है।लोगों के बीच हमेशा गरीबों पीड़ितों व शोषितों के मसीहा के रूप में याद किए जाते हैं। लोग इनका 50 वा शहादत दिवस मना रहे हैं जानिए मंजुरूल हसन खां की संघर्ष की कहानी
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महाजनी प्रथा व सूदखोरी का किया विरोध
रामगढ़,बोकारो,हजारीबाग में कई जगहों पर महाजनी प्रथा व सूदखोरी चरम पर था।उन्होंने 1967-68 में इस प्रथा के विरोध में आंदोलन शुरू किया इस बीच बोंगई के महाजन रामफल साव के जुल्म के खिलाफ लोग आंदोलन के लिए तैयार हुए और 14 जुलाई 1968 की रात में रामफल के घर में आग लगा दी गई।जिसमें सात लोगों की मृत्यु हुई थी इस घटना के मुख्य आरोपी मंजूरूल को बनाया गया था लेकिन वे घटना स्थल पर मौजूद नहीं थे इनके घर की कुर्की जब्त की गई तत्पश्चात उन्होंने आत्मसमर्पण किया
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मंजुरूल हसन 1969 मैं सीपीआई के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े थे
मंजूरूल 1969 में सीपीआई के टिकट से रामगढ़ विधानसभा चुनाव लड़े पर उन्हें सफलता नही मिली। दूसरी बार 1972 में जेल से ही जरीडीह व रामगढ़ विधानसभा सीट के लिए अपना नामांकन कराया।चुनाव से 2 दिन पूर्व उन्हें पै-रोल पर छोड़ा गया 12 मार्च 1972 को चुनाव परिणाम आया जिसमें जरीडीह से मात्र 300 वोट से हार गए।जबकि रामगढ़ में उन्होंने बोदूलाल अग्रवाल को भारी मतों से हराया इनकी जीत पर पूरे विधानसभा क्षेत्र में जश्न मनाया गया।17 मार्च को वे पटना गए जहां शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले 19 मार्च को इनके एमएलए क्वार्टर नंबर 102 में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।इनके हत्या की खबर से पूरे क्षेत्र में मातम पसर गया इनका शव चितरपुर पहुंचने के बाद सुपुर्द-ए-खाक किया गया जहां हजारों लोग शामिल होकर नम आंखों से उन्हें विदाई दी इसके बाद उपचुनाव में इनकी पत्नी सईदुन निशा को चुनाव लड़ाया गया जहां वे चुनाव जीत गई।इस संदर्भ में जफरुल हसन खां ने बताया कि भैया की हत्या से पूरा परिवार टूट गया था
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यदा-कदा ही किसी महापुरुष की जन्म होती है जो अपना जीवन दूसरों के लिए समर्पित कर देते है ऐसे ही शख्स थे मंजुरूल हसन खां जिन्होंने अपना जीवन गरीबों पीड़ितों व शोषितों की उत्थान के लिए लगा दिया था। लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब वे शपथ लेने पटना पहुंचे तो शपथ लेने से एक दिन पहले ही गोली मारकर इनकी हत्या कर दी गई जानकारी के अनुसार चितरपुर जैसे छोटे कस्बे में मंजुरूल हसन खां का जन्म 12 नवंबर 1927 को जमींदार परिवार में हुआ इनकी प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक उर्दू मध्य विद्यालय चितरपुर से हुई।वे संत कोलंबस कॉलेज से मैट्रिक और उच्च शिक्षा प्राप्त की इसके बाद वे अलीगढ़ यूनिवर्सिटी चले गए जहां उन्होंने अर्थशास्त्र विषय से स्नातक की यहां वे कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से सक्रिय सदस्य बन गए।1947 में जब एमए की पढ़ाई कर रहे थे तो उस समय एएमयू ने कम्युनिस्ट होने के आरोप में मंजुरूल,फिल्म अभिनेता बलराज साहनी,उर्दू के मशहूर कहानीकार अनवर अजीन,लंदन के मशहूर व्यापारी सहित पांच साथियों को निष्कासित कर दिया गया। फिर वह कोलकाता गए, यहां भी उन्होंने गरीबों दलितों के लिए लड़ाई लड़ी एक दिन बंगाल विधानसभा में सरकार के खिलाफ पर्चा भी फेका पुलिस जब यहां इन्हें खोजने लगी तो वे भागकर चितरपुर आ गए।1964 मैं उन्होंने अरबावे मिल्लत संस्था का गठन कर गरीबों की उत्थान के लिए कार्य करना शुरू किया वे किसानों के साथ मिलकर खाली जमीन पर फसल लगाकर उपज के अधिकांश भाग को बांट दिया करते थे ।1967 में अकाल पड़ा तो वे गरीबों का दुख नहीं देख पाए वह बाजार से चावल ,आटा ,गेहूं आदि की खरीदारी कर लोगों को कम कीमत में देते थे उन्होंने कई जगहों में सस्ती रोटी की दुकान खुलवाई वह खुद एक कहानीकार थे।शहीद मंजरुल हसन खां की व्यक्तिव में वो असर था लोग उनके प्रति समर्पित रहते थे।इस बाबत शहीद के परिवार वालों ने बताया की मंजरुल हसन फाउंडेशन द्वारा चितरपुर में 20 मार्च को 50वां शहादत दिवश मना कर उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित किया जाएगा।

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