गांव की सरकार बनाने में भी लगे हैं कई मालदार, प्रलोभन में फंसे तो पांच साल पछताएंगे

हर्षित पल्लव
गोड्‌डा:सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद झारखंड में पंचायत चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। लोग गांव की सरकार बनाने में जुट गए हैं। मुखिया, वार्ड सदस्य, जिला परिषद से लेकर पंचायत समिति के उम्मीदवार मैदान में कूद गए हैं। गांव की सरकार बनाने में भी कई मालदार लोग लक्ष्मी की कृपा पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। उसे जनता पर नहीं, अपने माल से जनता को खुश कर वोट पाने का लालसा पाल लिए हैं। बड़े- बड़े बैनर से लेकर प्रचार की गाड़ियों पर भी लोगों को बिठाने में वे सफल दिख रहे हैं। जो वर्षों से बालू, पत्थर, सहित अन्य अवैध कारोबार को सिरमौर बने हुए थे, वे आज चका- चक सफेद कपड़े में गांव, पंचायत के लोगों का भाग्य विधाता बनने के लिए मायवी रूप को दिखाना शुरू कर दिए हैं।

जनता खुद पैर में मारती है कुल्हाड़ी और दोष नेता पर मढ़ते हैं

अधिकांश चुनाव में जनता रात दिन साए की तरह मदद करने वालों को नकारती रहती है और बाहर से आए लक्ष्मीपुत्र , लक्ष्मीपुत्री को मत देकर उसे जीता भी देती है। इसका परिणाम यह होता है कि आज आम लोगों को लगने लगा है कि चुनाव उसके वश की बात नहीं रह गई है। सब कुछ रहते हुए भी उसके पास अगर आर्थिक पक्ष मजवूत नहीं रहा तो वे चुनाव हार जाते हैं। प्रलोभन में गांव की भोली- भाली जनता फंस जाती है और फिर गलत लोगों का चयन कर वह पांच साल तक उसे कोसती रहती है। गलती आम वोटर प्रलोभन में आकर करते हैं और कोसते चुने हुए प्रतिनिधि को। ऐसी हालत में चुने हुए लोग पांच साल तक मालोमाल हो जाते हैं।
सही लोगाें को चुने जनता
आज समय आ गया है कि जनता कर्मठ, ईमानदार, जुझारू लोगाें काे वोट देकर चुनें। भ ही उसके पास रूपया न हो। जो दुख- सुख में साये की तरह आपको साथ दे, उसके उपकार को आप वोट से चुकता करें। अगर ऐसा जनता करेगी तो आम लोगों के मन मेंे विश्वास जगेगा कि काम करने वालों को जनता चुनती है। इसलिए जनता का काम किया जाय। गलत काम कर रूपया अर्जन करने वालों को गांव की सरकार में जगह नहीं दे। जिससे उसको लग सके कि दुनिया में रूपया ही सब कुछ नहीं है। ठेकेदार, दलाल, माफियाओं को सबक सिखाने का समय अाज जनता के हाथों में है। इस अवसर का सही लाभ उठावें।
सही लोग इस पचड़े से दूर रहने लगे
आज गांव की राजनीति से लेकर रांची, दिल्ली तक की राजनीति में निष्ठावान आैर सही लोग दूर होते जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण आम वोटर ही है। जाे ज्यादा पढ़े लिखे और नौकरी करते हैं , वे अपना मत देने के लिए गांव में आने के लिए दस वार सोचते हैं। जाे विक नहीं सकते वे मतदान करने से कतराते हैं, जिसके कारण विकने वालों को खरीद- फरोत कर गलत लोग चुन लिए जाते हैं। ऐसी हालत में जनता यह निर्णय ले कि वे धन- बल के आगे नहीं झुकेंगे। वे काम करने वाले को ही गांव की सरकार में भागीदार बनाऐंगे। पढ़े- लिखे लोग भी मतदान में भाग लें। तभी गांव की सरकार सबल और कार्य कुशलता में दक्ष हो पाएगी।

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