लोहरा एवं बड़ाईक समुदाय के लाखों लोगों को संवैधानिक अधिकारों से होना पड़ रहा है वंचित : डॉ. लंबोदर महतो

रांची: झारखंड राज्य के विभिन्न जिलों में निवासरत लोहरा एवं बड़ाईक-चिक बड़ाईक समुदाय के सदस्यों को जिनके खतियान में दर्ज कौम कमार/लोहार, बड़ाईक है उन्हें अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत करने के संबंध में आज आजसू पार्टी के पदाधिकारियों ने कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के प्रधान सचिव से मुलाकात की।
इस दौरान मुख्य रूप से आजसू पार्टी के केंद्रीय महासचिव डॉ. लंबोदर महतो, रामगढ़ विधायक सुनिता चौधरी तथा केंद्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ. देवशरण भगत की अगुवाई में सामाजिक प्रतिनिधि जितेन बड़ाईक, संवद बड़ाईक, शेखर लोहरा, रविंद्र करमाली, करण करमाली, महावीर कर्मकार सहित अन्य ने प्रधान सचिव से मुलाकात की।
ज्ञात हो कि झारखण्ड राज्य में निवासरत लोहरा/बड़ाईक-चिक बड़ाईक समुदाय के सदस्यों को जिनके खतियान में दर्ज कौम कमार/लोहार/बड़ाईक हैं, जो अन्य जनजातियों के भांति यह भी एक जनजाति है। कमार तथा इसकी उपजाति लोहार भी एक जनजाति है। इनकी सामाजिक , सांस्कृतिक, धार्मिक विशेषताएँ, रीति-रिवाज, रहन-सहन अन्य जनजातियों की तरह ही हैं, जैसे प्रकृति पर आधारित गोत्र प्रथा पेड़-पौधे, जीव-जंतु के नाम पर आधारित हैं। कमार/लोहार के लिए रोमन लिपि में प्रयुक्त शब्द Lohra एवं इनके लिए क्षेत्रीय/बोलचाल की भाषा में उपयोग होनेवाली क्षेत्रीय नाम/उपनाम Lohra शब्द की उत्पत्ति, प्रचलन विभिन्न मानववैज्ञानिक और ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी देखा जा सकता है ।
ब्रिटिशकाल में किए गए जाति जनगणनाओं तथा जिला राजपत्रों के अवलोकन से यह पूर्णतः स्पष्ट होता है कि लोहार/कमार जनजाति के ही अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण के क्रम में ही लोहारा शब्द प्रचलन में आया और लोहरा शब्द लोहार/कमार के लिए प्रयुक्त क्षेत्रीय नाम अथवा उपनाम है ।

मुख्य जाति लोहार/कमार के वर्तमान झारखण्ड की सूची से विलोपन होने के कारण व पर्यायवाची लोहरा क्षेत्रीय उपनाम को मूल जाति मान लेने से इस समुदाय के लाखों लोगों को अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है। जनजाति प्रमाण पत्र हासिल करने में कठिनाई हो रही है और भूमि संबंधी अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है। क्योंकि राज्य में संथाल परगना, छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम लागू है जिसके तहत जनजातियों की भूमि अधिकारों को संरक्षित किया जाता है। इन कास्तकारी कानूनों के संरक्षण न मिल पाने के कारण आज इस समुदाय की भूमि गैर जनजातियों को हस्तांतरित हो रही है और यह समुदाय आज लगभग भूमिहीन हो चुका है और दिहाड़ी मजदूर के रूप में जीवनयापन करने पर मजबूर है।

कार्मिक विभाग के पत्रांक-5575 दिनांक- 10.04.17 के आधार पर संथाल परगना प्रमण्डल के विभिन्न जिलों में निवासरत व्यक्ति जिनके खतियान में कौम के स्थान पर कमार, लोहार एवं मडैया दर्ज है, के समुदाय के सदस्यों को उन्हें स्थानीय जाँच के आधार पर लोहरा जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है। कार्मिक विभाग के पत्रांक संख्या-355 दिनांक 19.07.06 के आधार पर जिनके खतियान में कौम के रूप में लोहार दर्ज है। उन्हें स्थानीय जाँच के आधार पर, लोहरा जनजाति का प्रमाण पत्र दिया जा रहा है वहीं राँची जिले के विभिन्न प्रखंडों में निवासरत जिनके खतियान में कौम कमार दर्ज है। उन्हें स्थानीय जाँच के आधार लोहरा जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है। इसी प्रकार झारखंड राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवासरत बड़ाईक -चिक बड़ाईक एक परिवार , एक ही जाति व एक ही समुदाय के होने के बावजूद जिनके खतियान में चिक बड़ाईक दर्ज है उनको अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत होता है, लेकिन जिनके खतियान में बड़ाईक दर्ज है, उनको जाति प्रमाण पत्र निर्गत होने में कठिनाई हो रही है।

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