शनिदेव और रावण की रोचक कथा

कहते हैं कि महाप्रतापी राक्षस रावण ने कामना की कि उसका पुत्र अजेय हो तथा उसकी मृत्यु न हो। वह ज्योतिष का प्रकांड ज्ञाता भी था। न जाने किस दैवयोग से अपनी पत्नी के प्रसव काल निकट आते ही उसने सभी ग्रहों को एक साथ बांध कर लग्न में रख दिया। उसका तर्क था कि यदि सातों ग्रह उसके पुत्र की कुंडली में लग्न में होंगे तो उसकी संतान को मृत्यु छू भी नहीं सकेगी। यह तो सच है कि ऐसी स्थिति में लग्न अवश्य शक्तिशाली हो जाती।
विधाता की गति अलग ही होती है। रावण ने अपनी समझ से तो सभी ग्रहों को साथ बांध कर बड़ा अच्छा किया था परन्तु एक तथ्य से उसका ध्यान हट गया था। शनि स्वभाव से अन्धकार में रहना पसन्द करता है। उसे गन्दा रहना ठीक लगता है। वह ठण्डक में प्रसन्न रहता है। वैसे शनि को सूर्य की प्रखरता कैसे बर्दाश्त होती! थोड़ी ही देर में उसके शरीर से पसीने की धारा फूट चली। स्वभावतः वह दुबकने और छुपने लगा । परेशान शनि ने पसीने से भरे शरीर पर जब हाथ फेरा तो उसके शरीर का मैल छूटकर उसके हाथों में आ गया।
यह हम सब का भी अनुभव है कि परेशान होकर हम गर्दन की मैल छुड़ाते हैं और उसकी गोली बनाकर फेंक देते हैं। शनि ने भी वैसा ही कुछ किया। उसके शरीर के मैल और पसीने से बना गोला उसके हाथ से छूटकर कुंडली के सप्तम भाव में गिरा। यह गोली गुलिक कहलायी, जो लग्न को देखने लगी। इस प्रकार जब रावण का पुत्र पैदा हुआ तो उस बालक के लग्न में बैठे सातों ग्रहों पर गुलिक की दृष्टि भी पड़ रही थी जिस कारण अमरत्व की बजाय बालक अल्पायु का हो गया ।
कहते है कि रावण ने कुपित होकर गुलिक को अपनी राज सिंहासन के पाये में ऐसे बान्धा कि वह सिंहासन पर बैठते उतरते गुलिक का सर अपने पावों से कुचलता था। नारद ऋषि ने जब यह देखा तो उन्होंने रावण से कहा कि हे राक्षसराज! यह तो शनि का अंश है अतः इसकी हड्डियाँ बेहद मजबूत हैं। इसके सिर पर पैर रखने से क्या होगा। आप इसकी नाक अपने जूते से रगड़े तो इसे पीड़ा होगी।
रावण को काल ने घेरा होगा। वह नारद की बातों में आ गया और गुलिक को ऐसे बांधा गया कि रावण उसकी नाक पर पैर रखकर चढ़ता या उतरता। किन्तु ऐसा होने से रावण पर भी गुलिक की दृष्टि पड़ने लगी और कहते हैं कि उसी दृष्टि के कारण रावण का भी नाश हुआ।

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