उपेक्षित एवं पिछड़े उत्तर बिहार के विकास की रणनीति पर चर्चा

अवधेश कुमार शर्मा

बेतिया: बिहार की दशा व दिशा पर राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर पर मंथन होते रहे हैं, कार्यशालाएं संपन्न होती रही, अलबत्ता बिहार की स्थिति दयनीय होती गई। एक बात यह कि बिहार को प्रकृति ने संसाधनों से परिपूर्ण, संपन्न बनाया है। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते हुए, कई संरचनाओं को खड़ा किया,जो आज प्रसंगाधीन हैं। परंतु अंग्रेजों के जाने के बाद संसाधनों का दोहन होता रहा, संरचनाओं का निर्माण भी हुआ अलबत्ता उनमें गुणवत्ता नहीं रही। अंग्रेजों की मानसिकता रही कि निर्माण में निवेश करने के उपरांत उसका दीर्घकालिक उपयोग, उनके जाने के बाद हमारी सत्ता व ब्यूरोक्रेट्स की मानसिकता रही है कि गुणवत्तविहीन निर्माण दर निर्माण कर जेब भरते रहें। बिहार की दशा, दिशा व विकास पर बिहार विमर्श नामक संस्था ने बेतिया स्थित एक होटल के सभागार में ‘उपेक्षित एवं पिछड़े उत्तर बिहार’ के विकास की रणनीति पर परिचर्चा सह संगोष्ठी आयोजन किया। जिसमें उत्तर बिहार के पिछड़ेपन और गरीबी के कारण पर विस्तृत रुप से विमर्श किया गया।
संयोजक डॉ शंभू शरण श्रीवास्तव ने कहा कि बिहार तो पिछड़ा है, उसमें उत्तर बिहार की स्थिति अतिदयनीय है। सरकार ने कृषि व कृषकों के लिए नीतियों का निर्माण किया, अलबत्ता अधिकांश धरातल पर नहीं हैं। उपर्युक्त परिचर्चा में उत्तर बिहार के पिछड़ेपन पर समग्र मूल्यांकन व डेटा आधारित विश्लेषण किया गया। जमीन, जल एवं जंगल, स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास, आय, रोजगार, पलायन, उत्पादन, राज्य वित्त, बैंकिंग, निजी निवेश एवं विकास के लिए वर्तमान सरकारी कार्यक्रम पर चर्चा हुई।
यह बात भी सामने आई कि भारत का सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बिहार है। जिसकी 76 फीसदी जनसंख्या बाढ़ के आशंका व प्रभाव में रहती है। भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5 प्रतिशत बिहार, जबकि भारत की जनसंख्या का 22.1 प्रतिशत बिहार की जनसंख्या प्रभावित होती है। बिहार सरकार के अद्यतन आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021में बाढ़ प्रभावित कुल 16ज़िला के 130 प्रखण्ड, 1333 पंचायत, 83.62 लाख से अधिक लोग बाढ़ प्रभावित हुए। अब देखिए बिहार के कुल 94160 वर्ग किलोमीटर में 68,800 वर्ग किलोमीटर बाढ प्रभावित क्षेत्र है। उनमें 16% स्थाई जलजमाव वाले क्षेत्र हैं। वर्तमान बिहार 7306 वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र हैं, भारतीय वन सर्वेक्षण प्रतिवेदन 2019 के अनुसार केवल पश्चिम चम्पारण ज़िला में लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगल हैं। बिहार में बढ़ते शहरी करण के बावजूद सामाजिक, आर्थिक व जाति गणना 2011के अनुसार 1.3 करोड़ परिवार अर्थात् 73% जनसंख्या बिहार के गांव में रहती है। शिक्षा की स्थिति यह है कि 7 में 1 बच्चा विद्यालय नहीं पहुंचता, विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों में 20% ही 12वीं कक्षा तक पहुंच पाते हैं। बिहार सरकार ने वर्ष 2021-2022 में शिक्षा के लिए कुल खर्च का 19%आवंटित किया है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अन्य राज्यों के औसत 5.5% के विपरीत बिहार सरकार ने 6.3% आवंटित किया। अलबत्ता उसका लाभ जन-जन तक नहीं पहुंच पाया। बिहार जहां 73% जनसंख्या गांव में हैं। कृषि के लिए राष्ट्रीय औसत 6.3% के पलट बिहार सरकार 3.7% राशि खर्च करती है, किसान हितैषी सरकार। बिहार सरकार पुलिस विभाग पर अन्य राज्यों के औसत 4.3% से अधिक 5.6% खर्च करती है। सड़को एवं पुल निर्माण जैसे विकासात्मक कार्यों के लिए अन्य राज्यों के 4.3% से कम 3.8%खर्च करती है। बिहार में कुल निवेश का सर्वाधिक खर्च पटना ज़िला में करती है, जबकि राजस्व उत्तर बिहार से सर्वाधिक प्राप्त हो जाती है। उपर्युक्त परिचर्चा सह गोष्ठी में सरकार व प्रशासन पर स्वयं के विकास के दृष्टिगत कार्य करने का आरोप लगाया गया। उत्तर बिहार के संसाधनों का दोहन करने का आरोप भी सरकार एवं प्रशासन पर लगाया गया।
खेती, बाढ़, सुखाड़ और सरकारी उदासीनता के चलते और अलाभकारी साबित होते जा रहे हैं। बाढ़ की विभीषिका मुख्यत: बांधों के चलते हैं। बिहार के श्रम व बौद्धिक संपदा का पलायन 2005 से आजतक नहीं रुक सका है। पलायन को मुद्दा बनाकर सत्ता पर कब्जा जमाने वाले नीतीश कुमार पलायन रोकने में नाकाम साबित हुए हैं। बिहार से 3 करोड़ का पलायन होता है, यह बिहार की आर्थिक स्थिति का आईना है। दो तिहाई आबादी उत्तर बिहार में है, लेकिन दो तिहाई बजट दक्षिण बिहार पर खर्च होता है।
प्रो अनिल मिश्र ने कहा कि भारत में बिहार पिछड़ेपन का टापू बन गया है। ‘बिहार विमर्श’ ने कहा कि क्षेत्र की जनता मांग पत्र को सांसद विधायकों को दे। उनसे 1 वर्ष में आय एवं व्यय का रिपोर्ट कार्ड मांगे। नागरिक समाज के अनिल सिन्हा ने कहा कि उत्तर प्रदेश की कोई भी बात राष्ट्रीय हो जाती है। पूर्व सिंचाई मंत्री के समय बिहार के विकास पर बनी कमेटी को लागू करने की मांग की। कई वक्ताओं ने खेती उद्योग और शिक्षा स्वास्थ्य सेवा की कुव्यवस्था पर प्रश्न उठाया। बिहार के लोगों को ध्यान देकर स्कूल अस्पताल के संचालन को ठीक कराना होगा। बिहार की दो तिहाई आबादी उत्तर बिहार है, फिर भी बजट दक्षिण बिहार से कम क्यों ? पत्रकार राजीव रंजन ने कहा कि बिहार की सरकार भी मीडिया को वर्तमान सरकार ने परोक्षतः प्रतिबंधित कर सही समाचार नहीं आने देती।राजीव रंजन ने आंकड़ों के हवाले से बताया कि कुपोषित बच्चे और स्त्रियां उत्तर बिहार में सबसे अधिक है। वक्ताओं ने बंद चीनी मिलों के संचालन पर सरकार को घेरा।बिहार के 22 चीनी मिलों में मात्र 10 कार्यरत हैं, शेष चीनी मिलों को बीमारु या मृत चीनी मिल कहा जा सकता है। प्रो रवींद्र कुमार चौधरी ने मुख्यतः उच्च शिक्षा की व्यवस्था सुदृढ़ करने पर बल दिया। संगोष्ठी में जिला के प्रत्येक क्षेत्र के लोग शामिल रहे। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से राजनीतिक सामाजिक सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। प्रो. अवधेश कुमार ने कहा कि आर्थिक पिछड़ेपन ने समाजिक संस्कृति विकृतियाँ पैदा की है। उपर्युक्त गोष्ठी में शामिल वक्ताओं में प्रेम कुमार मणि पूर्व विधान पार्षद सह-संयोजक, विजय प्रताप सह- संयोजक, शाहिद कमाल सह- संयोजक, विजय प्रताप सह- संयोजक, इरशाद अहमद, मोहम्मद कमरान, प्रभुराजनारायण राव, शिवजी प्रसाद, ओमप्रकाश क्रांति, सुरैया साहब, तबस्सुम, अशोक प्रियदर्शी, पंकज चौधरी, योगेंद्र सिंह, जगदेव प्रसाद, अमरेन्द्र श्रीवास्तव, मो आलमगीर हुसैन व कई बुद्धिजीवी ‘बिहार विमर्श’ की परिचर्चा में शामिल हुए।

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