अंबेडकर आज भी उतने ही प्रासंगिक है : प्रो उत्तम कुमार

प्रकृति ने इस धरा के सभी प्राणियों तथा मनुष्यों को समान रूप से प्यार और अपनी ऊर्जा प्रदान की है मग़र वर्ण भेद और जाति बंधन के व्यवस्था से दलितों और पिछड़ों का जो विकास का सपना बाबा साहब ने देखा था उसका आंकलन करने पर हमें आज भी निराशा ही हाथ लगती है।। छुआ-छूत, जाति, भेद-भाव तथा समानता की लड़ाई लड़ने वाले महानायक बाबा साहब अंबेडकर को जिन्हें ज्ञान का प्रतीक भी कहा जाता है, उन्होंने नीच वर्ग, पिछड़ों तथा शोषित समाज के हक़ के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की। इतना ही नहीं उन्होंने संविधान निर्माण के समय महिला वर्ग को ख़ासा ध्यान में रखते हुए उनके अधिकारों को पुरुषों के समान लाकर खड़ा कर दिया। आज बाबा साहब की 131वें जयंती समारोह के अवसर पर हम उन्हें नमन करते हुए हृदयतल से धन्यवाद देते हैं। विश्व का सबसे बड़ा हस्तलिखित संविधान और उनकी लिखी पुस्तक जिसके आधार पर आरबीआई की स्थापना हुई आज भारत को उनके ज्ञान और कर्मनिष्ठा के बदौलत ही मिल पाया है। “मग़र दुःख इस बात का है कि आज भी उन्हें एक जाति विशेष के रूप में ही देखा जाता है” आज के मौजूदा हालात बदल गए हैं और आज दलित समाज तथा पिछड़ा वर्ग कुछ हद तक शिक्षित हो गया है परंतु उनके प्रति अत्याचार अब भी हो ही रहा है। आज उनके शिक्षित होने पर भी आज भी कहीं न कहीं उन्हें अपने प्रति जातिसूचक शब्दों का सामना करना ही पड़ता है। उनकी लड़ाई न तो ब्राह्मणवाद से है और किसी धर्म या जाति विशेष है। उन्होंने अपने समस्त जीवन में समानता, अखण्डता तथा बंधुत्व की लड़ाई लड़ी। अंबेडकर आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने की वे कल थे। मग़र कुछ लोग उन्हें हाशिए पर लेने से अब भी नहीं चूकते हैं। हमारे लोकतंत्र के ढाँचा निर्माण में उनका क्या योगदान रहा यह तो जगजाहिर है। तर्क से तथागत बुद्ध की शरण में जाकर उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया क्योंकि वे रूढ़िवादी सोच से स्वयं को अलग रखकर मनोवैज्ञानिक और समानता का दृष्टिकोण में विश्वास रखते थे। आज हमें उनके आदर्शों तथा उनके बताए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है जिससे कि हमारा यह समाज और व्यहवारिक बन सके और सबको एक नज़रिए से एक समान देख सके तब ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी सकेंगे।

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