तेरे बंशी पे जाऊं बलिहार रसिया, मैं तो नाचूंगी तेरे दरबार रसिया….

खड़हरा में सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा संपन्न,वृंदावन से आए कथा वाचक ने किया कथा

अरे द्वार पालो कन्हैया से कह दो की दर पर तुम्हारे  गरीब सुदामा आ गया है..

बांका, खड़हरा: तेरे बंशी पर जाऊं बलिहार रसिया,में तो नाचूंगी तेरे दरबार रसिया के भजनों पर पूरा पंडाल श्रीकृष्णमय हो गया।सभी भक्त श्रीकृष्ण की भक्ति में नाचने लगे। यह नजारा खड़हरा स्थित उपेंद्र मिश्रा और प्रतिमा मिश्रा के आवासीय परिसर में सात दिवसीय श्रीमद भगवत कथा में दिखा।

पिछले छह दिनों से श्रीमद्भागवत कथा का शुक्रवार को समापन हो गया। वृंदावन से आए दाऊ दयाल जी महराज ने श्री कृष्णभक्तों को कथा का रसपान कराया। अंतिम दिन कथा के सप्तम अध्याय में भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी का वर्णन और श्रीकृष्ण और सुदामा के मित्रता पर वर्णन हुआ। कथा वाचक ने कहा भगवान श्री कृष्ण का प्रथम विवाह रुक्मिणी के साथ हुआ है।
उसके बाद प्रद्दुन की चर्चा हुई। पिछले जन्म में यह कामदेव था। इसकी पत्नी रति थी। प्रद्दून बड़ा हुआ और माया देवी के साथ विवाह हुआ। उसने समरासुर का बध किया। जामवंत और भगवान श्री कृष्ण का वर्णन हुआ। एक मणि के लिए जामवंत और भगवान श्री कृष्ण के साथ 28 दिन तक युद्ध चला। उसके बाद जामवंत जी को भगवान का दर्शन हुआ। जामवंत जी ने कहा मणि ले लीजिए लेकिन मेरी बेटी को स्वीकार करिए।मेरी बेटी आपको पति के रूप में मान चुकी है। इसलिए आप इसे स्वीकार करिए। जामवंत जी ने अपनी बेटी जामवती की शादी भगवान श्रीकृष्ण से कर दिया। द्वारिका में भगवान की पत्नी के दर्शन करने महिलाएं आई और एक एक  तिल दान किया। इससे जामवती सुंदर हो गई।
भगवान श्री कृष्ण के साथ सत्यभामा के साथ तीसरा विवाह हुआ है। चौथा विवाह कालिंदी से हुआ है।कालिंदी का नाम यमुना भी है। यम और यमुना भाई बहन है। बृंदा जी के साथ भी विवाह हुई है। वैसे तो सोलह हजार एक सौ कन्यायाओं के साथ भगवान श्री कृष्ण का विवाह हुआ है। एक ही मुहूर्त में ठाकुर जी ने सभी से विवाह किया। हर रानी से दस दस पुत्र हुए। तीन करोड़ 88 लाख 252 पढ़ाने के लिए शिक्षक रखा था। ठाकुरंजी के इतने बड़े परिवार थे।
कथा में श्री कृष्ण और सुदामा जी के जीवन पर वर्णन किया गया। कथा वाचक ने कहा कि सुदमा और भगवान श्रीकृष्ण की मित्रता जन्मों जन्मों का है। सुदामा अत्यंत निर्धन व्यक्ति था। फिर भी अपने मित्र भगवान कृष्ण से अपने से मदद नहीं मांगा। भगवान श्री कृष्ण और सुदामा के जीवन वर्णन को सुन श्रद्धालुओं के आंखों से आंसू चालक पड़े। ऐसा लग रहा था की द्वारिका खड़हरा में हो। दिन हीन के भेष में सुदामा जी कृष्ण के दरबार पहुंचे। भगवन कृष्ण अपने से दौड़े दौड़े मित्र सुदामा को अपने महल ले गए। उसकी खूब खातिरदारी की। सुदामा के दो मुट्ठी चावल खाकर भगवान कृष्ण ने सुदामा जी की दरिद्रता को दूर कर दिया। कथा में  इसकी झांकी प्रस्तुत की गई। इसको देख भक्त भावविभोर हो गए। उसके बाद उपस्थित श्रद्धालुओं ने भगवान कृष्ण और सुदामा की पूजा अर्चना की। कथा के अंत में फूलों की होली खेली गई। एक से बढ़कर एक कृष्ण के भजनों को प्रस्तुत किया गया। आरती के साथ श्रीमद्भागवत कथा का समापन हो गया। इस अवसर पर आयोजक सत्येंद्र मिश्रा,मुनींद्र मिश्रा,पिंटू मिश्रा लाल बाबा,सुमन मिश्रा सहित पूरा मिश्रा परिवार का कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम योगदान रहा। वहीं कथा के अंतिम दिन पूरा खड़हरा के लोग कथा में शामिल हुए।

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