संग्राम बड़ा भीषण होगा/136000 करोड़ की लड़ाई निर्णायक मोड़ में

रांची: अब झारखण्ड का बकाया 136000 करोड़ देना ही होगा। राज्य सरकार ने कमर कस लिया है। हेमंत सरकार ने अल्टीमेटम दे दिया है। राज्य के वित्त मंत्री ने दिल्ली जाकर ब्रेकअप भी दे दिया है। राज्य सरकार ने हाई पावर कमेटी बनाने का फैसला भी कर लिया है, यानी अब यह लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है। राज्य सरकार ने इस बकाये को पाने के लिए लीगल रास्ते भी खोलने की तैयारी कर ली है। कुल मिलाकर देखें तो आनेवाले दिनों में संग्राम बड़ा भीषण होने वाला है और आहिस्ता आहिस्ता बकाये की यह आर्थिक लड़ाई सियासी संघर्ष की तरफ प्रस्थान करती दिख रही है।

हालांकि कोयला रॉयल्टी और अन्य खनिजों के उत्खनन के एवज में राज्य सरकार की बकाया राशि लौटाने को लेकर केंद्र सरकार ने भी पहल के संकेत दिये हैं। इसके लिए कोयला मंत्रालय के आला अधिकारियों को साथ राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक करने कहा. इसके बाद राज्य सरकार के दावे को लेकर केंद्र सरकार पूरा ब्योरा तैयार करेगी. इस विषय को लेकर राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने पिछले शुक्रवार को केंद्रीय कोयला मंत्री जी किशन रेड्डी से मुलाकात की. वित्त मंत्री ने केंद्रीय कोयला मंत्री से कोल उत्खनन प्रक्षेत्र में धुले कोयले की रॉयल्टी के 29 सौ करोड़, अन्य उत्खनित खनिज की कीमत पर बकाया 32 हजार करोड़ और भूमि अधिग्रहण संबंधित बकाया 1.01 लाख करोड़ रुपये की मांग रखी. राज्य सरकार का पक्ष सुनने के बाद केंद्रीय कोयला मंत्री ने कोयला मंत्रालय की अपर सचिव को बकाया राशि का वास्तविक आकलन करने का निर्देश दिया. वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने केंद्रीय मंत्री को बताया कि राज्य के बकाया को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पत्र के माध्यम से केंद्र सरकार से भुगतान का आग्रह किया है. मुख्यमंत्री ने हर स्तर पर इस बात को उठाया है. ऐसे में केंद्र सरकार को पहल करना चाहिए।

वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी मुलाकात की और बकाया 1.36 लाख करोड़ राज्य को देने का आग्रह किया. केंद्रीय वित्त मंत्री को भी राज्य की ओर से बकाया का पूरा ब्योरा सौंपा गया. राज्य के वित्त मंत्री ने दोनों ही मंत्रियों को बकाया से संबंधित स्मार पत्र सौंपा. राज्य सरकार कोयले की ढुलाई रोकने का अल्टीमेटम तक दे चुकी है। अब जब सरकार ने पूरा ब्रेक अप भी दे दिया है तो विपक्षी दल एनडीए के सांसदों पर भी दबाव बढ़ गया है कि वो राज्यहित में इस मांग का समर्थन करें। अगर एनडीए सांसद ऐसा नहीं करेंगे तो वो अलग थलग पड़ जाएंगे। इसलिए यह आर्थिक मोर्चे की लड़ाई आनेवाले दिनों में भीषण सियासी संघर्ष की तरफ बढ़ती दिख रही है।

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