प्रभुनाथ को आजीवन कारावास की सुप्रीम सजा, अब पूरा जीवन कटेगा सलाखों के पीछे

पटना/सारण : सारण के मूल निवासी और राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के दोहरे हत्याकांड मामले में आज आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। 1995 में विधानसभा चुनाव में उनके पक्ष में मतदान नहीं करने पर प्रभुनाथ सिंह ने राजेंद्र राय (47) और दारोगा राय (18) की हत्या करवा दी थी। इतना ही नहीं, चुनाव हारने के बाद प्रभुनाथ सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी अशोक सिंह को भी 90 वें दिन मौत के घाट उतार दिया था।मामला वर्ष 1995 का है। आरोप है कि प्रभुनाथ सिंह ने अपने कहे अनुसार मत नहीं देने पर छपरा के मसरख इलाके के रहने वाले राजेंद्र राय और दारोगा राय की हत्या करवा दी। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान छपरा के मसरख में 18 साल के राजेंद्र राय और 47 साल के दरोगा राय की पोलिंग बूथ के पास ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। दोनों ने ही प्रभुनाथ सिंह के कहे अनुसार वोट नहीं दिया था।यह वही चुनाव था जिसमें अशोक सिंह ने प्रभुनाथ सिंह को हराया था। इसके बाद प्रभुनाथ सिंह ने 90 दिनों के अंदर ही अशोक सिंह का काम तमाम करने की धमकी दी थी और 3 जुलाई, 1995 के दिन अशोक सिंह की हत्या हो गई। यह उनके विधायक बनने का 90 वां दिन था।
प्रभुनाथ सिंह फिलहाल अशोक सिंह हत्याकांड में झारखंड के हजारीबाग के केंद्रीय कारावास में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। आज दारोगा राय और राजेन्द्र राय की हत्या के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इन दोनों की हत्या के मामले में पटना के ट्रायल कोर्ट 2008 में बरी कर दिया था। बिहार उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के निर्णय को ही बरकरार रखा था। इसके खिलाफ राजेन्द्र राय के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 18 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालतों के निर्णय को खारिज करते हुए प्रभुनाथ सिंह को दोषी करार दिया और 1 सितम्बर को सजा का दिन तय किया था।

लालू प्रसाद यादव के करीबी और राष्ट्रीय जनता दल के बाहुबली राजनेता प्रभुनाथ सिंह चार बार के सांसद हैं। वे 1998, 1999, 2004 और 2013 में महाराजगंज लोकसभा से निर्वाचित होकर सांसद चुने गए थे। प्रभुनाथ सिंह लालू प्रसाद यादव के इतने खास हैं कि एक बार संसद की कार्यवाही के दौरान चारा चोर नारा सुनकर अपना संतुलन खो बैठे और जूता निकालकर लहराने लगे थे।प्रभुनाथ सिंह के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1985 से शुरू हुई थी, तब वे पहली बार विधायक चुने गए थे। हांलाकि विधायक बनने से पहले ही प्रभुनाथ मशरख के तत्कालीन विधायक रामदेव सिंह काका की हत्या होने के बाद चर्चा में आए थे। काका की हत्या का आरोपित प्रभुनाथ सिंह को भी बताया गया था, लेकिन यह मामला साबित नहीं हो सका और प्रभुनाथ कोर्ट से बरी हो गए थे। हालांकि, इस मामले में उनके भाई दीनानाथ सिंह को सजा सुनाई गई थी। 1990 में प्रभुनाथ सिंह जनता दल के टिकट पर दोबारा विधानसभा चुनाव जीते थे। 1995 आने पर विधानसभा चुनाव में जनता दल का टिकट अशोक सिंह को दिया गया। इस दौरान प्रभुनाथ ने बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपा) से चुनाव लड़ा। प्रभुनाथ हार गए और अशोक सिंह चुनाव जीत गए। इसके बाद 3 जुलाई 1995 को शाम 7.20 बजे पटना के स्ट्रैंड रोड स्थित आवास में अशोक सिंह की हत्या कर दी गई। हत्या में प्रभुनाथ सिंह, उनके भाई दीनानाथ सिंह तथा मसरख के रितेश सिंह को नामजद अभियुक्त बनाया गया था। 1998 में सांसद बनने के बाद वे समझने लगे थे कि अब कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अब 70 साल के हो चुके प्रभुनाथ सिंह का पूरा जीवन जेल में ही बीतेगा। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने भी सजा सुनाने से पहले प्रभुनाथ की उम्र पूछी, और फिर कहा- अब तो भगवान ही इनका मालिक है।

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