पांच दशक के भीतर अंतरिक्ष-विज्ञान और विश्व की भाषा बनेगी संस्कृत…

पटना। अगले पाँच दशकों में विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत अंतरिक्ष-विज्ञान ही नहीं विश्व की संपर्क भाषा बन जाएगी। यही समग्र वसुधा को एक सूत्र में जोड़ेगी और भारत की अंतरात्मा के स्वर ‘वसुधैव क़ुटुम्बकम’ को चरितार्थ करेगी।
यह बातें, संस्कृत संजीवन समाज और प्रज्ञा समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में गुरुवार को, साहित्य सम्मेलन में आयोजित ‘संस्कृत दिवस समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। संस्कृत में अपना अध्यक्षीय भाषण आरंभ करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि संस्कृत विश्व की अनेकानेक भाषाओँ की जननी है। यह भाषा-कुल की आद्या और श्रेष्ठा है। इसी से अपभ्रंस होकर अनेक भाषाएँ और बोलियाँ विकसित हुई। संस्कृत कंप्यूटर की मित्र-भाषा है। इसलिए यही भाषा अंतरिक्ष-विज्ञान की और कंप्यूटर की भाषा होने के कारण विश्व की भाषा बनेगी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ‘नासा’ ने अपने यहाँ संस्कृत को अनिवार्य कर दिया है। भारत के एक राज्य ‘उत्तराखंड’ ने इसे शासकीय भाषा के रूप में स्वीकार किया है, जो गौरव का विषय है।
समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार तथा झारखंड में मुख्य सचिव रहे विजय शंकर दूबे ने अपने विद्वतापूर्ण व्याख्यान में संस्कृत की महत्ता को स्थापित करते हुए कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। वेदों की रचना का काल कमसे कम आठ हज़ार वर्ष पूर्व का है। इन महान ग्रंथों को पूरा होने में भी हज़ारों वर्ष लगे। ‘ऋग्वेद’ को पूरा होने में दो हज़ार वर्ष लगे। हमारे वेद अनेक ऋषियों और ऋषिकाओं द्वारा रचित ऋचाओं से बने। संस्कृत केवल भारत वर्ष की भाषा नही थी। यह भारत समेत अनेक देशों में बोली जाती थी। इसमें विश्व-भाषा बनने की पूरी पात्रता है। संस्कृत में शब्दों के गढ़ने की अपार क्षमता है। वर्तमान में इसमें १०२ करोड़ शब्द प्रयोग में हैं । संस्कृत के विकास के लिए आवश्यक है कि इसे भारत वर्ष में प्रत्येक विद्यालय में १०वीं तक अवश्य पढ़ायी जाए।
समारोह की विशिष्ट अतिथि और अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत अध्ययन समवाय की अध्यक्ष प्रो दीप्ति शर्मा त्रिपाठी ने कहा कि जब लोग कहते हैं कि हमें संस्कृत की रक्षा करनी चाहिए, तो मैं चकित हो उठती है। जो भाषा हमारी सभ्यता और संस्कृति को आज तक रक्षित करती आयी है, उसे हम क्या संरक्षण देंगे? यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमें छल पूर्वक संस्कृत से दूर किया गया है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, बिहार संस्कृत संजीवन समाज के अध्यक्ष डा शिव वंश पाण्डेय ने कहा कि भारत सरकार ने संस्कृत की महत्त्व को रेखांकित करते हुए, आज के दिन को ‘संस्कृत-दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। वर्ष १९६९ से ही इस दिवस को ‘संस्कृत दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। अब पूरे विश्व यह दिवस मनाया जाने लगा है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, संस्कृत के सुविख्यात विद्वान प्रो राम विलास चौधरी, कुमार अनुपम आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन समाज के महासचिव डा मुकेश कुमार ओझा ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रज्ञा समिति के संरक्षक और सुप्रसिद्ध लेखापाल राज नाथ मिश्र ने किया।
इस अवसर पर वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, राजेंद्र तिवारी, डा अमलेश वर्मा, सुनील कुमार दूबे, डा रागिनी वर्मा, डा शकुंतला मिश्र, जय प्रकाश पुजारी, ई आनंद किशोर मिश्र, ई अशोक कुमार, मनोज कुमार मिश्र, अमन वर्मा, डा राकेश दत्त मिश्र, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा अरुण कुमार मिश्र, राम प्रकाश नेहरू, प्रो सुशील कुमार झा, सिद्धनाथ शर्मा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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