सतपुतिया आ जिऊतिया-कितना प्यारा मिथक

अद्भुत है लोक का जगत और उस सेजुड़े लोगों की आस्था का।भले ही हम इसे मिथकीय मानें पर मन के भीतर पल रहे विश्वास का कोई क्या करे!
सतपुतिया वस्तुत: एक सब्जी है।यह तरोई वर्ग की प्रजाति है।इस की विशेषता है कि यह गुच्छों में फलती है।एक गुच्छे में कम से कम सात और यह तय नहीं कि उस से आगे कितने
हालांकि छोटे छोटे पीले फूलों से सजे इस के डंठल अपनी लताओं में बड़ी प्यारे दिखते हैं पर आवश्यक नहीं कि ये सभी फूल,फलों का स्वरुप पा जायें।
सामान्य रुप से बड़े-छोटे मिल कर ये सतपुतिया बनते हैं,जिसकी संख्या सात की होती है।यह दीगर बात है कि सात भी नहीं बचते पर बचते तो हैं।
अब बात “जिउतिया” की।यह एक लोक का पर्व है,जिसे पूर्वांचल के लगभग सभी क्षेत्रों की महिलाएं करतीं हैं।यह संतानों के दिर्घायुष्यता की कामना को लेकर किया जाने वाला पर्व है।
सात पूत हों-ऐसा आशीर्वाद तब के बड़े बुजुर्ग दिया करते थे कन्याओं को,भले ही बाद के दिनों में यह “हम दो-हमारे दो”पर आकर सिमट गया।
सात फलों की सब्जी “सतपुतिया” और सात पूतों वाली महिला के बीच के इस संबंध को संभवतः व्याख्या की अब आवश्यकता नहीं है।बराबरी के इस यारी का चरम यह है कि हर हाल में इस पर्व के दिन महिलाएं “सतपुतिया” की सब्जी बनातीं हैं और पर्व-प्रारंभ के पूर्व इसे खा कर हीं व्रत का आरंभ करतीं हैं।
धन्य है लोक और धन्य है इसका मिथक

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