रूदाली डिम्पल की जानदार किरदार
राजस्थान के कई इलाकों में राजे-रजवाड़ों और उनके बाद राजपूत ज़मींदारों के घरों में जब भी किसी पुरुष की मौत होती थी, तो विलाप के लिए रुदालियों (किराये पर रोने वाली वाली ) को बुलाया जाता था ……….1993 में आई फिल्म ‘रुदाली’ 1979 में इसी नाम की एक लघु कहानी पर आधारित है जिसे बंगाली लेखिका महाश्वेता देवी ने लिखा था जिसे #गुलज़ार ने अपनी कलम से सँवारा और कल्पना लाजिमी ने निर्देशित किया ……..शीर्षक भूमिका में डिम्पल कपाड़िया के आलावा राखी, राज बब्बर और अमजद खान ,रघुवीर यादव ,मीता वशिष्ठ ,मनोहर सिंह सहायक भूमिकाओं में दिखाई देते हैं फिल्म अमजद खान का अभिनय उनकी जिंदगी की अंतिम भूमिकाओं में से एक है जो उनकी मृत्यु के बाद रिलीज हुई थी फिल्म के शुरुआती क्रेडिट उन्हें समर्पित थी……भारतीय राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम और दूरदर्शन द्वारा निर्मित इस फिल्म को भारत के नव-यथार्थवादी समानांतर सिनेमा का हिस्सा बताया गया था …… फिल्म की ज्यादातर शूटिंग पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर के क्षेत्र से 40 किमी दूर स्थित बरना गाँव में हुई थी …..फिल्म के अमजद खान को इसी गाँव का वास्तविक जमींदार दिखाया गया है …..साथ ही साथ जैसलमेर किला,खुरी रेगिस्तान और कुलधारा के अभिशापित खंडहर भी फिल्म में दिखाये गए है
‘रुदाली’ एक महत्वपूर्ण और अप्रत्याशित व्यावसायिक सफलता थी …..फिल्म की पटकथा, संगीत, तकनीकी उपलब्धियों और लाजमी के निर्देशन की सराहना के साथ कपाड़िया के प्रदर्शन की विशेष रूप से आलोचनात्मक प्रशंसा की गई फिल्म ने कपाड़िया के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सहित तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते, और तीन फिल्मफेयर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया, कपाड़िया को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए क्रिटिक्स अवार्ड मिला कपाड़िया ने 8वें दमिश्क इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल और 38वें एशिया-पैसिफिक फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सम्मान जीता, जहां हजारिका को उनके संगीत के लिए सम्मानित किया गया था फिल्म को 66वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में चुना गया था, लेकिन नामांकित व्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था….
फिल्म में डिंपल कपाड़िया को ‘शनिचरी ‘के रूप में दिखाया गया है जो एक अकेली और सख्त महिला है जीवन भर दुर्भाग्य और परित्याग के बावजूद, रोने के माध्यम से दुःख व्यक्त करने में असमर्थ है……. शनिचरी का जन्म एक शनिचर (शनिवार) को हुआ था जिसका नाम हिंदू ज्योतिष में अशुभ माने जाने वाले शनि (शनि) ग्रह के नाम पर रखा गया है ग्रामीणों द्वारा उसके आसपास होने वाली हर बुरी चीज के लिए शनिचरी को दोषी ठहराया जाता है शनिचरी की शादी युवावस्था में ही एक शराबी गंजू से कर दी जाती है …..उसका बेटा बुधुआ (रघुवीर यादव) है जिसे वह बहुत प्यार करती है गाँव ठाकुर रामअवतार सिंह (अमजद खान ) अपनी मृत्यु शैय्या पर यह कहते हुए कि उसका कोई भी रिश्तेदार उसके लिए आँसू नहीं बहाएगा वह अपनी मृत्यु के बाद शोक मनाने के लिए भीखनी (राखी गुलज़ार ) नामक एक प्रसिद्ध रुदाली को बुलाता है………..भीखनी ठाकुर के गांव में रहने वाली विधवा शनिचरी के साथ रहती है जैसे-जैसे उनकी दोस्ती बढ़ती है, शनिचरी भीखनी को अपने जीवन की कहानी सुनाते हैं जो फ्लैशबैक में चलती है ….
ठाकुर का बेटा लक्ष्मण सिंह (राज बब्बर ) शनिचरी को बताता है कि वह उसे पसंद करता है और उसे अपनी हवेली में अपनी पत्नी की नौकरानी के रूप में काम पर रखता है लक्ष्मण सामाजिक रीति-रिवाजों के खिलाफ खुद को मुखर करने के लिए शनिचरी को पाने की कोशिश करता है……….. हैजा से गंजू की अकस्मात मौत हो जाती है निर्धारित रीति-रिवाजों का पालन न करने के लिए गाँव के पंडित से शाप और धमकियों के बाद विधवा शनिचरी रामावतार सिंह से अनुष्ठान करने के लिए ऋण लेती है और उसके अधीन बंधुआ मजदूर बन जाती है
कुछ साल बाद विधवा शनिचरी का बेटा एक वेश्या मुंगरी (सुष्मिता मुखर्जी ) को अपनी पत्नी के रूप में घर लाता है जिसे शनिचरी अस्वीकार कर देती है लेकिन यह जानकर कि मुंगरी गर्भवती है उसे अपना लेती है …..लेकिन गाँव के पंडित (मनोहर सिंह )और दुकानदार की भद्दी टिप्पणी से दोनों महिलाओं के बीच झगड़ा हो जाता है और लड़ाई के बाद गुस्से में मुंगरी अपने बच्चे का गर्भपात करा देती है ……..बुधुआ घर छोड़ देता है……. शनिचरी भी गाँव छोड़ने का फैसला कर लेती है वो लक्ष्मण सिंह से आखरी बार मिलने जाती है …
लेकिन उस रात ठाकुर रामावतार सिंह की मृत्यु हो जाती है …..इधर एक संदेशवाहक प्लेग से भीखनी की मौत की खबर लाता है और शनिचरी को बताता है कि भीखनी ही उसकी मां पीवली थी ……….शनिचरी जोर-जोर से रोने लगती है शनिचरी अब वो अपनी माँ के लिए रोये या घर छोड़कर चले गए बेटे के बुधुआ लिए या फिर उस ठाकुर रामावतार सिंह के लिए जिसकी मृत्यु के बाद उसकी माँ ने उसे ‘रुदाली’ के लिए पहले ही अनुबंधित कर गई है …… शनिचरी नई ‘रुदाली ‘के रूप में ठाकुर के अंतिम संस्कार में जमकर रोती है ……..रो तो वो ठाकुर के लिए है जो अब उसका पेशा है लेकिन दर्द और आंसू उसके अपने है ……..
रुदाली ने मुख्यधारा के हिंदी सिनेमा के कई सामान्य तत्वों को नियोजित किया, जिसमें भूपेन हजारिका द्वारा रचित गीत भी शामिल हैं …फिल्म में असम के लोक संगीतकार भूपेन हजारिका का संगीत है रुदाली के साउंडट्रैक एल्बम को 18 जून 1993 को बड़ी सफलता के साथ रिलीज़ किया गया जिसे पसंद किया है रुदाली पहला वास्तविक क्रॉसओवर एल्बम है जिसने श्रोताओं के दिल के माध्यम से कला तक की लम्बी छलांग लगाई है मशहूर गीत “दिल हूम हूम करे” गीत हजारिका की एक पिछली रचना पर आधारित था जिसे कुछ दशक पहले असमिया फिल्म मनीराम दीवान (1964) में “बुकु हम हम कोरे” नामक गीत में इस्तेमाल किया गया था गुलज़ार, जिन्होंने रुदाली के लिए गीत लिखे थे वो असमिया वाक्यांश ” हूम हूम” के दीवाने थे जो उत्तेजना में दिल की धड़कन को दर्शाता था इसलिए हिंदी में “धक धक” के बजाय उन्होंने गीत में ” हूम हूम”का उपयोग किया
हिंदुस्तान टाइम्स ने 2018 में लाजमी के बारे में एक लेख में लिखा था कि रुदाली अपने करियर में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं क्योंकि इसमें डिंपल कपाड़िया द्वारा शानदार प्रदर्शन किया गया था…. रुदाली एक महत्वपूर्ण और अप्रत्याशित व्यावसायिक सफलता थी फिल्म की पटकथा, संगीत, तकनीकी उपलब्धियों लाजमी के निर्देशन की सराहना के साथ कपाड़िया(शनिचरी) के प्रदर्शन की विशेष रूप से आलोचनात्मक प्रशंसा की गई
‘रुदाली’ को आज भी अभी भी #गुलज़ार साहेब के गीतों के लिए याद किया जाता है।