खूंटी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने महिला स्वयं सहायता समूहों से किया सीधा संवाद
खूंटी: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गुरुवार को बिरसा मुंडा स्टेडियम में आयोजित महिला स्वयं सहायता समूह सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप मे शामिल हुईं। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने स्वयं सहायता समूह की दीदियों द्वारा लगाए गए स्टॉल्स का भ्रमण किया और उनके साथ सीधा संवाद किया। जनजातीय महिलाओं की समस्याओं से रू ब रू हुईं।
सम्मेलन में राज्यपाल सीपी. राधाकृष्णन, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, जनजातीय कार्य मंत्रालय के माननीय केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, जनजातीय कार्य मंत्रालय के केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरूता, झारखंड सरकार में मंत्री श्रीमती जोबा मांझी, विधायक कोचे मुंडा, विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा, विधायक विकास सिंह मुंडा एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कड़िया मुंडा समेत कई गणमान्य उपस्थित रहे।
वहीं मंच से सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासी समाज अपनी संस्कृति, सभ्यता, भाषा, परंपरा और पहचान के साथ निरंतर आगे बढ़े। आदिवासियों को पूरा मान- सम्मान और अधिकार मिले, इसका हमने संकल्प ले रखा है । इस दिशा में राज्य सरकार हर मोर्चे पर केंद्र सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है ।उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय आर्थिक रूप से कैसे समृद्ध हो । इस पर हम सभी को गंभीरता से विचार करते हुए धरातल पर कार्य करना होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड अलग राज्य गठन के 22 वर्ष हो चुके हैं ।लेकिन आदिवासियों के हित में विकास के जो कार्य होने चाहिए, वे नहीं हुए हैं। वे आज भी कई चुनौतियों से संघर्ष कर रहे हैं । विस्थापन का दंश झेलने के साथ पलायन करने को मजबूर हैं । मुझे कोरोना काल में पता चला कि यहां से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन वर्षों से होता आ रहा है । ऐसे में हमारी सरकार ने इस विषय पर व्यापक रूप से चिंतन- मंथन करते हुए उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने की दिशा में लगातार काम कर रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जल जंगल जमीन झारखंड की पहचान है । हमारे यहां तमाम खनिज संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इन्हीं खनिज संसाधनों की बदौलत आज पूरा देश रोशन हो रहा है ।लेकिन, झारखंड की गिनती पिछड़े राज्यों में होती है । आखिर ऐसा क्यों ? यह हम सभी को सोचने -समझने की जरूरत है । झारखंड कैसे आगे बढ़े ? इसके लिए हमारी सरकार लगातार ठोस कदम उठा रही है,।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासियों के विकास से जुड़ी गाथा को विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान स्टॉल एवं अन्य माध्यमों से दिखाने का कार्य अधिकारीगण करते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। इसी बात को ध्यान में रखकर मैं जब भी किसी कार्यक्रम में जाता हूं तो वहां की “झांकी” को आगे की बजाए पीछे के पर्दे से देखना चाहता हूं ,ताकि असलियत जान सकूं और उससे जुड़ी समस्याओं का समाधान करने की दिशा में आगे बढ़ सके।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर केंद्र सरकार से सरना धर्म कोड लागू करने और हो, मुंडारी और कुड़ुख़ भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की दिशा में पहल करने की मांग की । उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की अस्मिता और पहचान को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है, क्योंकि यह उनके मान -सम्मान के साथ जुड़ा हुआ है।
इस अवसर पर केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव अनिल कुमार झा, भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (ट्राईफेड) के मैनेजिंग डायरेक्टर गीतांजलि गुप्ता और महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ीं हजारों महिलाएं मौजूद थीं।