हर वर्ष सिर्फ 5 घंटे खुलता है निराई माता मंदिर, महिलाओं का प्रवेश है वर्जित!
देश में अनेक मंदिर ऐसे हैं, जो अपने अंदर तमाम अनसुलझे रहस्यों को समेटे हुए है। विज्ञान भी इसकी तह तक नहीं जा सका। ऐसा ही है छत्तीसगढ़ के गरियाबंद शहर से 12 किलोमीटर दूर हरी-भरी पहाड़ियों पर स्थित निराई माता का मंदिर। इसके दरवाजे वर्ष में केवल 5 घंटे के लिए ही खुलते हैं। इन्ही चंद घंटों में हजारों लोग माता के दर्शन का लाभ ले पाते हैं।
यह मंदिर हर साल चैत्र नवरात्रि के पहले रविवार को सुबह 4 बजे से 9 बजे तक खोला जाता है। इन पांच घंटे के दौरान हजारों देवी भक्त माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। पूजा के बाद गांव के पुरोहित मंदिर के कपाट को फिर एक साल के लिए बंद कर देते हैं। इसलिए साल के अन्य दिनों में यहां आना प्रतिबंधित माना गया है।
नवरात्रि के दौरान तमाम देवी मंदिरों में सिंदूर, सुहाग आदि श्रृंगार सामग्री चढ़ाया जाता है, लेकिन निराई माता के मंदिर में श्रद्धालु केवल नारियल और अगरबत्ती लेकर ही जाते हैं, क्योंकि माता इतने में ही प्रसन्न हो जाती हैं। मान्यता है कि निराई माता के दरबार में भक्त के भय, पीड़ा का नाश होता है। यही कारण है कि हर साल 5 घंटे के लिए खुलने वाले इस मंदिर में दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं।
अपने आप जल उठती है ज्योति
इस मंदिर के गर्भ में कई रहस्य छुपे हुए हैं। मंदिर में चैत्र नवरात्र के दौरान हर वर्ष अपने आप ही ज्योति जल उठती है। ज्योति कैसे जलती है, कौन इसे जलाता है? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। मंदिर में अपने आप ज्योति प्रज्वलित होने का चमत्कार कैसे होता है? यह अबूझ पहेली ही बना हुआ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर के पट साल भर बंद रहते हैं। चैत्र नवरात्रि में ही पट खोला जाता है, इस दौरान भक्तों को ज्योति के भी दर्शन होते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि निराई माता के चमत्कार से मंदिर में बिना तेल के नौ दिनों तक ज्योति जलती रहती है।
मांस-मदिरा पीकर आने वालों पर मधुमक्खियां करती है हमला
इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र के पहले रविवार को मंदिर खुलता है। इस दौरान आयोजित होने वाले जात्रा कार्यक्रम में भी भक्त बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। मान्यता है कि निराई माता के दर्शन मात्र से ही भक्तों की पीड़ा दूर हो जाती है। यहां पूरे भक्ति भाव और पवित्र मन से ही पहुंचा जाता है। अगर कोई व्यक्ति मांस-मदिरा का सेवन करके मंदिर आने का प्रयास भी करता है, तो जंगलों में रहने वाली मधुमक्खियां उस पर कोप बनाकर टूट पड़ती हैं।
क्यों महिलाओं का प्रवेश वर्जित है?
वैसे तो देवी मंदिरों में सभी भक्तों को प्रवेश दिया जाता है, लेकिन निराई माता के मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा गया है। इस मंदिर में केवल पुरुष ही माता की पूजा अर्चना कर पाते हैं। इतना ही नहीं नियम इतने सख्त हैं कि इस मंदिर में देवी को चढ़ा प्रसाद भी महिलाएं नहीं खा सकती हैं। माना जाता है कि अगर किसी महिला ने गलती से माता को चढ़ा प्रसाद ग्रहण कर लिया तो अनहोनी घट सकती है।
बकरे की बलि भी चढ़ाई जाती है
चैत्र नवरात्रि में खुलने वाले निराई माता के मंदिर में बकरों की बलि भी चढ़ाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि देवी को बकरे की बलि चढ़ाने से वह प्रसन्न होकर अपने भक्त की मनोकामना जरूर पूरी करती हैं। क्योंकि मंदिर साल में एक बार ही खुलता है इसलिए मन्नत लेकर माता के दरबार में पहुंचे कुछ भक्त बकरों की बलि देकर माता को प्रसन्न करते हैं, तो वहीं कई अन्य मुराद पूरी हो जाने के बाद बकरे की बलि चढ़ाते हैं।