प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में धूमधाम के साथ मनाया कृष्णा जन्मोत्सव…

सुपौल: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सिमराही के तत्वधान में स्थानीय ओम शांति केंद्र पर श्री कृष्णा जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में भव्य प्रवचन एवं श्री कृष्ण के चैतन्य झांकीयो को स्थानीय सेवा केंद्र प्रभारी बबीता दीदी ,समाजसेवी प्रो बैधनाथ प्रसाद भगत , इंस्पेक्टर भूपेंद्र प्रसाद सिंह , डॉ बीरेंद्र प्रसाद साह, समाजसेवी अनिल महतो, पैक्स अध्यक्ष कृष्ण कुमार राय, सतीश कुमार,अरुण जायसवाल,इन्द्रदेव चौधरी, ब्रह्माकुमारी आस्था बहन,चाँदनी बहन, ब्रह्माकुमार रामलखन भाईजी ,ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी इत्यादियो ने संगठित रूप में श्री कृष्ण को माखन खिलाकर, झूला, झूलाकर, दीप प्रज्वलित कर श्री कृष्णा के चैतन्य झाँकी को पूजा करके कार्यक्रम को सुभारम्भ किया।

श्री कृष्णा जन्माष्टमी के आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए सेवा केंद्र प्रभारी राजयोगिनी बबीता दीदी जी ने कहा कि श्री कृष्ण के नाम लेते ही उन्हें अपने सामने हाथों में अथवा होठों पर मुरली धारण किए हुए मोर, मुकुटधारी सांवरे रंग के एक दिव्य मूर्ति की झलक दिखाई देती है। हर एक माता अपने बच्चों को नैनो के तारा और दिल का दुलारा समझती है। परंतु फिर भी वह श्री कृष्ण को सुंदर ,मनमोहन, चितचोर आदि नामों से पुकारती है। वास्तव में श्री कृष्ण का सौंदर्य चित्र को चुरा ही लेता है ।जन्माष्टमी के दिन जिस बच्चे को मोर, मुकुट बनाकर मुरली हाथ में देते हैं। लोगों का मन उस समय उस बच्चे के नाम, रूप ,देश व काल को भूल कर कुछ क्षणों के लिए श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित हो जाता है। सुंदरता तो आज भी बहुत लोगों के पाई जाती है परंतु श्री कृष्ण सर्वाग सुंदर थे, सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण थे। ऐसे अनुपम सौंदर्य तथा गुणों के कारण ही श्री कृष्ण की पत्थर की मूर्ति भी चितचोर बन जाती है। वह कृष्ण शब्द का अर्थ ही श्यामला अथवा सांवरिया मानते हैं ।मुरली तो वे कृष्ण के हाथों में शैशव अवस्था में ही दिखाते हैं ,जबकि वह अभी घुटनों के बल चलता होगा और अभी उसको बजाना भी नहीं आता होगा ,तब से ही दिखाते हैं। और इसी अर्थ में ही उसे मुरलीधर मानते हैं।
परंतु जब हम श्रीकृष्ण का नाम लेते हैं तो हम उसे एक अत्यंत सुंदर आकर्षण मूर्ति मोर ,मुकुटधारी के रूप में देख कर के गदगद होते हैं। क्योंकि श्रीकृष्ण को कहते ही है मुरली मनोहर क्योंकि उनका व्यक्तित्व हर एक के मन को हरने वाला है। अब प्रश्न उठता है की जबकि हर एक माता को अपना बच्चा अति प्यारा है, नैनो का तारा, दिल का दुलारा तो फिर वह श्री कृष्ण के दर्शन के लिए क्यों तरसती है। श्री कृष्ण में ऐसा क्या आकर्षण था कि वह लोग उसकी झांकियां बनाते हैं ।उसे पालको में झुलाते हैं, और उसे अनेक ऐसे नामों से पुकारते हैं ।जिससे कि श्री कृष्ण के प्रति उनका स्नेह अपनापन और आकर्षण सूचित होता है ।सभी जानते हैं कि आकर्षण या तो सौंदर्य में होता है या गुणों में। श्रीकृष्ण तो थे ही मोहनीमूर्त सुंदर नाम से उनका गायन भी है। परंतु संसार में सुंदर तो और लोग भी होते हैं, तब क्या श्री कृष्ण की सुंदरता निराली थी ?जी हां ,अवश्य ही उनका सुंदरता में कुछ विलक्षणता थी तभी तो उनका नाम ही सुंदर प्रसिद्ध हो गया ।

अतः श्री कृष्णका आह्वान करने के लिए पहले तो हम सभी को अपने आहार, व्यवहार और विचार में शुद्धिकरण की आवश्यकता है। सभी के हृदय रूपी सिंहासन पर किसी न किसी विकार का अधिकार जमा हुआ है तब एक नगर में दो राजा कैसे हो सकते हैं? आज लोग जन्माष्टमी का उत्सव मनाते हैं। तो बिजली के सैकड़ों बल्ब जलाकर खूब उजाला करने का यत्न करते हैं। परंतु आज आत्मा रूपी बल्व तो फ्यूज हो चुका है। बाहर तो रोशनी की जाती है परंतु आत्मा रूपी चिराग के नीचे अंधेरा है। तो आइए हम सभी मिलकर सच्ची जन्माष्टमी बनाएं श्री कृष्ण के समान सोलह कला संपन्न, संपूर्ण निर्विकारी ,मर्यादा पुरुषोत्तम व डबल अहिंसक स्वयं को बनाएं।

कार्यक्रम के मुख्य समाजसेवी प्रो बैधनाथ प्रसाद भगत जी ने अपने उदबोधन में कहा कि अपने अंदर के मनोबल और आत्मबल बढ़ाने के लिए श्री कृष्ण को मन ही मन श्रद्धा और शक्ति से याद करना जरूरी है ।उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण की याद तब रह सकेगी जब हमारे कर्म ठीक हो। दूसरों की बुराई करने वाला ,परचिंतन ,परदर्शन करने वाला, बेईमानी, ठगी, चोरी करने वाला उस परम शक्ति श्री कृष्ण को या परमात्मा शिव को याद नहीं कर सकता है। ऐसा व्यक्ति और ही इस दुनिया के दुख-दर्द, पाप कर्म के कीचड़ में फंस जाता है। उन्होंने कहा पर निंदा, पर चिंतन, परपंच करने वाला को कौवे की उपमा देते हुए कहा कि वह हमेशा कौवे की तरह अवगुण रूपी गंदगी में अपना मुंह डालता है ।उन्होंने कहा कि पर चिंतन करने वालों की दृष्टि, बानी ,कर्म ,कौवे की भांति होंगे अर्थात दुखदाई होंगे। उन्होंने कहा कि हमें सत्संग की बातें सुनकर हंस के समान गुण रूपी मोती चुगने वाला हंस बनना है। ऐसा हंस बुद्धि वाला ही प्रभु प्रिय, लोकप्रिय बन सकता है।

लखीचंद हाई स्कूल के शिक्षक सौरभ कुमार जी ने अपने उदबोधन में कहा श्रीकृष्ण के सुंदर एवं मनमोहक झांकी को देखने के योग्य बनने के लिए अभी अपनी दृष्टि को दिव्य जन्म देना होगा ।स्वयं को ज्ञान योग के चंदन का तिलक देना होगा ।इस शुद्धि पुरुषार्थ को यदि हम करने की प्रेरणा इस बार की जन्माष्टमी से लेंगे तो निश्चित ही यह जन्माष्टमी हमारे लिए स्वर्गारोहण के लिए सोपान सिद्ध होगी।ऐसी शुभ पुरुषार्थ के लिए जन्माष्टमी का सभी को बहुत-बहुत बधाइयां।

उक्त कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मा कुमार किशोर भाई जी ने किया। मौके पर अनिल कुमार महतो, समाजसेवी प्रो बैद्यनाथ भगत, डॉ बिरेन्द्र प्रसाद साह,शिक्षक सौरव जी, मंजू देवी, नीलम देवी , भूपेंद्र कुमार सिंह ,डॉ वीरेंद्र भाई ,इंद्रदेव भाई ,अरूण जायसवाल, मंजू देवी ,सावित्री देवी, ब्रह्माकुमार रामलखन भाई जी, सत्यनारायण भाई, रेणू बहन, आस्था बहन ,चाँदनी बहन , किशोर भाईजी, इत्यादि सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।

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