एक बाण से तीन असुर भाइयों का अंत कर भगवान शिव कहलाए त्रिपुरारी
शिवपुराण के अनुसार, एक बार एक महादैत्य हुआ जिसका नाम था तारकासुर। इन दैत्य के तीन पुत्र हुए जिनके नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली था। शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया ।
इस घटना से तीनों पुत्रों ने बदला लेने के लिए घोर तपस्या की और ब्रह्माजी को प्रसन्न कर दिया। उन्होंने अमरता का वरदान माँगा पर ब्रह्माजी ने इसमें असमर्थता दिखाई और अन्य कोई वरदान मांगने के लिए कहा।
तब तीनों ने ब्रह्माजी से कहा की हम तीनों के लिए ऐसे तीन नगर बसाये जो आकाश में उड़ते हो और एक हजार साल बाद हम तीनों जब मिले तब एक ही बाण से हम एक साथ मर सके, इसके अलावा हमारी मृत्यु नही हो। ब्रह्माजी ने उन्हें यह वरदान दे दिया। वरदान पाकर उन तीनो भाइयों ने हर लोक में अलग अलग होकर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया, मनुष्य देवता सभी उनसे भय खाने लगे।
सभी त्राहिमाम-त्राहिमाम करते करते भगवान शिव के पास गये और अपने भय और दुःख और उनके समक्ष प्रकट किया। उनकी करुणामई विनती पर शिवजी उन तीनो का वध करने के लिए तैयार हो गये। तब विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
इस दिव्य रथ में सभी देवी देवताओं की शक्ति समाहित थी। सूर्य चन्द्र इस रथ के पहिये बने, यम कुबेर इंद्र अरुण आदि देवता इस रथ के घोड़े बन गये। भगवान विष्णु वो दिव्य तीर बने और शेषनाग बना धनुष की प्रत्यंचा और हिमालय पर्वत बना धनुष, फिर भगवान शिव इस रथ में सवार होकर सही समय पर उन तीनो भाइयो के समक्ष खड़े हो गये।
जैसे ही वो तीनों भाई एक सीध में खड़े हुए तभी शिवजी ने अपना धनुष से तीर चला दिया। ऐसा दिव्य तीर देखकर दैत्यों में हाहाकार मच गया। तीर तीनो भाइयो (त्रिपुरो ) को लगा और क्षण भर में ही उनके प्राण निकल गये। सभी देवी देवताओ ने शिवजी की जयजयकार त्रिपुरारी के नाम से लगाईं। जय हो त्रिपुरो का अंत करने वाले शिव त्रिपुरारी जी की।