बिहार में बहार, अगर-मगर नहीं,लालू ही खेबनहार

गणादेश ब्यूरो
पटनाः अभी बिहार में घूम घूम कर नीतीश को कोसने वाले पीके ने कभी नारा दिया था,बिहार में बहार है,नीतीशे कुमार है। अभी लगता है सत्ता समीकरण के हिसाब से नारा बदल गया है।अब कहा जा रहा है कि लालू जोरदार हैं,वही खेबनहार हैं।
जिस तरह तीन सप्ताह में नीतीश कुमार लालू प्रसाद से चार बार मिले।उसके बाद बीजेपी को चुटकी लेने का मौका मिल गया।

वैसे,बिहार की सियासी चाल को समझना काफी मुश्किल है। कल तक घोर विरोधी आज जुगलबंदी। दोनों समाजवादी। हम बात कर रहे हैं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और सीएम नीतीश कुमार की। महागठबंधन की सरकार बनने के बाद महीने में चार बार लालू से मुलाकात की। इसके कई मायने भी निकाले जा रहे हैं। 17 अगस्त को लालू पटना आए तो नीतीश उनसे मिलने पहुंचे। इसके बाद तीन और मुलाकातें हुईं। आठ सितंबर को दिल्ली लौटने के बाद भी नीतीश कुमार लालू यादव से राबड़ी आवास जाकर मिले। इस दौरान उन्होंने दिल्ली दौरे को लेकर बात की।कहा भी जा रहा है कि लालू यादव की अहमियत पहले ही जैसी है। वे बीजेपी विरोध के सबसे बड़े चेहरे हैं। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों जेपी आंदोलन की उपज हैं। दोनों इन दिनों एकजुट होकर भाजपा से फरियाने में लगे हैं।
नीतीश कुमार जब भाजपा विरोधी पार्टियों के बड़े नेताओं से मिलने दिल्ली गए तो उसके पहले भी लालू प्रसाद से मिले। मिलकर रणनीति बनाई कि कैसे इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केन्द्र में रोकना है? कैसे मोदी को पीएम बनने से रोकना है ? भाजपा के नेताओं ने तो यहां तक कहा कि लालू प्रसाद ने ही कई नेताओं से नीतीश कुमार की मुलाकात की पहल की। बीच की कड़ी बने।

नीतीश जब दिल्ली में तीन दिनों में करीब 10 नेताओं से मुलाकात कर लौटे तो फिर से लालू प्रसाद से मिलने राबड़ी आवास पहुंचे। नीतीश कुमार जानते हैं कि लालू प्रसाद को कॉन्फिडेंस में रखकर ही राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, डी राजा, सीताराम येचुरी, दीपांकर भट्टाचार्या आदि को साथ लेकर दिल्ली पर हल्ला बोल सकते हैं। फिलहाल लालू प्रसाद शरीर से कमजोर हैं, उनके चुनाव लड़ने पर रोक है।
इधर,नीतीश जितनी बार ये बात कहते हैं कि वह पीएम की रेस में नहीं हैं,लोग इसका मतलब उल्टा समझते हैं। बिहार की राजनीति में चर्चा चल रही कि नीतीश दिल्ली जाने की तैयारी में हैं और बिहार की बागडोर तेजस्वी को सौंपने की तैयारी में हैं। कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बयान से भी यह लगा।
इस बार नीतीश कुमार भाजपा पर चिराग पासवान और आरसीपी सिंह के जरिए जदयू को कमजोर करने का आरोप लगाकर अलग हो गए।
राजद के प्रवक्ता चित्तरंजन गगन कहते हैं कि भारतीय राजनीति में लालू प्रसाद की अहमियत जैसे पहले थी। अभी भी उसी तरह से है। वे भाजपा विरोधी राजनीति के सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं।
भाजपा के प्रवक्ता प्रेमरंजन पटेल कहते हैं कि नीतीश कुमार, लालू शरणम गच्छामि हो गए हैं। वे दिल्ली जाने के पहले और फिर दिल्ली से लौटकर भी लालू प्रसाद से मिलते हैं। नीतीश कुमार को अपने भविष्य की चिंता है। दूसरी तरफ लालू प्रसाद चाहते हैं कि बेटे तेजस्वी की राह में नीतीश ही कांटे की तरह हैं, इनको दिल्ली भेज कर बेटे का रास्ता साफ करें।

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