राष्ट्रीय धरोहर घोषित प्राचीनकालीन आदिनाथ जैन मंदिर वाला ऐतिहासिक देवलटांड़ गांव…..

सरायकेला। प्राचीन कालीन भगवान आदिनाथ जैन मंदिर के रूप में राष्ट्रीय धरोहर का प्रतीक और जननायक कर्पूरी ठाकुर के सुपुत्री का ससुराल रांची जिला की सीमा से सटा सरायकेला-खरसावां जिले का ऐतिहासिक गांव देवलटांड़ आज़ भी बदहाली का रोना रो रहा है. आधुनिक युग में बदलते दौर में तेज़ी से विकसित होती दुनिया से दूर यह गांव आज़ भी पिछड़ेपन का दंश झेल रहा है. बताते चलें कि यहां मौजूद प्राचीनकालीन भगवान आदिनाथ जैन मंदिर कितना पुरातन है इस बात से यहां के निवासी भी अनभिज्ञ हैं. भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने सालों पहले इस मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर रखा है. भविष्य में यह राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा पर्यटन स्थल में तब्दील होने की भरपूर संभावनाएं रखता है. इसके अलावा अविभाजित बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर की सुपुत्री का विवाह भी इसी गांव में हुआ है. सिर्फ यही नहीं, विभिन्न सरकारी विभागों में भारी संख्या में सरकारी कर्मी, समाजसेवकों एवं शिक्षा के क्षेत्र में इस गांव के विशिष्ट योगदान होने के कारण भी यह गांव न केवल सरायकेला-खरसावां बल्कि पूरे प्रदेश स्तर पर अपना विशेष महत्व रखता है. किंतु इस गांव की बदहाली को देख कर लगता है मानो आज भी यहां के लोग पाषाण काल का जीवन जीने को विवश हैं. विकास के मानकों पर इसकी दुर्गति का आलम यह है कि मुख्य सड़क से देवलटांड़ गांव तक जाने वाली एकमात्र सड़क तकरीबन दस वर्षों से इस हद तक क्षतिग्रस्त हो चुका है कि वाहन तो दूर,पैदल चलने में भी आप कतराएंगे. ख़ासकर बरसात के महीनों में दोपहिया एवं चार पहिया वाहनों का आवागमन बिल्कुल ठप हो जाता है, लोग मुख्य सड़क के आसपास ही किसी गांव में अपने वाहन रखकर पैदल गांव तक आते हैं. स्थानीय शिक्षक सह समाजसेवी कुणाल दास बताते हैं कि तकरीबन दस साल पहले प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत यह सड़क बनी थी. सड़क बनने के एक साल के भीतर सड़क ऐसी टूटी कि मानो वहां पर कभी सड़क थी ही नहीं. आज़ सड़क का नामोनिशान नहीं बचा है. जगह-जगह गड्ढे बने हुए हैं जिनमें बारिश का पानी भरा हुआ है. सड़क के दोनों ओर उगी झाड़ियों से ढंककर रास्ता इतना संकरा हो चुका है कि मानो आगे कोई आबादी रहती ही नहीं हो. देवलटांड़ और उसके पड़ोसी गांव जिलिंगआदर को मिलाकर लगभग 5000 से ज्यादा ग्रामीण इस सड़क की बदहाली से तंग हैं. राजनीतिक स्तर से लेकर मीडिया तक में कई बार इसे लेकर स्थानीय लोगों ने आवाज उठाई जरूर है. मगर आज़ तक न सरकारी अधिकारी और न ही किसी सांसद-विधायक ने इसकी सुध ली है. कुल मिलाकर आज़ भी यह ऐतिहासिक गांव सरकार की कृपादृष्टि बरसने की बाट जोह रहा है. सरकार के विकास के सारे दावों को मुंह चिढ़ाते हुए यह गांव मानो कह रहा हो कि आखिर मैं भी समृद्ध झारखण्ड का एक हिस्सा हूं. सरकार और विभाग को जल्द से जल्द इस गांव की सुध लेकर इसका उद्धार करना चाहिए.

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