आदिवासी एकता महारैली की तैयारियों से पूर्व कार्यशाला का आयोजन

रांची: 4 फरवरी को मोरहाबादी मैदान में आहूत आदिवासी एकता महारैली के संबंध में सोमवार को संगम गार्डन में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस बैठक में झारखंड राज्य के विभिन्न जिलों से आए आदिवासी मुद्दे के विशेषज्ञों, आंदोलनकारियों, विभिन्न आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी निभाया।
इस बैठक में मुख्य रुप से भाजपा आरएसएस की आदिवासी विरोधी नीतियां और आदिवासियों को आपस में लड़ाने का षड़यंत्र पर गंभीरता पूर्वक चर्चा की गई। इसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड,वन संरक्षण अधिनियम 2023, प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड, आदिवासी समुदाय की घटती जनसंख्या, आदिवासी जमीन की लूट-खसौट,आदिवासियों के प्रदत्त संवैधानिक हक-अधिकारों पर लगातार हमला, आदिवासी समुदाय की परंपरागत कानून, पांचवीं अनुसूची,पेसा कानून, आदिवासी समुदाय की सामाजिक एकता को तोड़ने की साज़िश , पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री रघुवर दास की भूमि बैंक को रद्द करना जैसे गंभीर विषयों पर अपने -अपने महत्वपूर्ण विचारों/ सुझावों को रखा। इस कार्यशाला में आदिवासी सवालों को केंद्र और राज्य सरकारों और आम आदिवासियों जन समुदायों बीच गंभीरता से उठाने के लिए आदिवासी मुद्दे के लिए दस्तावेज बनाया गया। आगामी 19 जनवरी 2024 इस कार्यशाला में उपस्थित लोगों के द्वारा स्वीकृत दस्तावेज को भारत सरकार/ राज्य सरकार और आदिवासी समुदाय के लिए जारी किया जाएगा।
इस अवसर पर आगामी 4 फरवरी 2024 की आदिवासी एकता महारैली की तैयारी के लिए राज्य स्तरीय विशेष आयोजन समिति की घोषणा की गई। इस राज्य स्तरीय विशेष आयोजन समिति में सदस्यों में लक्ष्मीनारायण मुंडा,अजय तिर्की, शिवा कच्छप,एल एम उरांव, रतन तिर्की,राधा उरांव, जगदीश लोहरा,अमर उरांव,शिव उरांव,भौआ उरांव, हरिनारायण महली, तुलेश्वर उरांव, सुशील ओड़ेया, गोविंदा टोप्पो, विल्सन टोपनो, महेश बेक,जानसन मिंज,हरिकुमार भगत को रखा गया है। इसके लिए केंद्रीय स्तर पर तीन प्रवक्ता प्रभाकर तिर्की, दयामनी बारला,लक्ष्मीनारायण मुंडा को बनाया गया है। इस विशेष आयोजन समिति का काम महारैली के लिए राज्य भर में व्यापक प्रचार- प्रसार और तैयारी की जिम्मेदारी दी गई है । इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने कहा कि आदिवासी समुदाय को तोड़कर आपस में लड़ाने और समूचे आदिवासियों को खत्म करने के लिए बहुत सारी शक्तियां लगी हुई है। आदिवासी समुदाय को इससे सावधान रहने की जरुरत है। ये वही ताकतें हैं जो आदिवासी समुदाय का भला कभी नही चाहती है। आदिवासी एकता महारैली के संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा कि अब आदिवासियों का अस्तित्व पहचान खत्म करने और बड़ी बड़ी कंपनियों के लिए जमीन लूटने के लिए षडयंत्र हो रहा है। आदिवासियों को तोड़ने की बरगलाने की राजनीति हो रही है। विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि इस कार्यशाला में आदिवासी समुदाय के सभी बुनियादी सवालों को सामने लाना चाहिए और हमारे समाज के राजनीतिक हितों के विरोधियों की पहचानने की जरूरत है।
दयामनी बारला ने कहा कि आदिवासी जल, जंगल जमीन और अपनी परंपरागत नैसर्गिक अधिकारों को हासिल करने के लिए कुर्बानी देता आया है। प्रभाकर तिर्की ने कहा कि सभी कारपोरेट औधौगिक पूंजीपति वर्ग के हाथों सरकारें और राज्य मशीनरी खेल रही है, आदिवासी समुदाय का दुर्दशा का कारण यही है। बासवी किड़ो ने कहा कि भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियों को भी आदिवासी ऐजेण्डा घोषित करना चाहिए। प्रेम चंद मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज अपने संघर्षों के दम पर संवैधानिक हक-अधिकार हासिल किया है।प्रो0 जगदीश लोहरा ने कहा कि आदिवासी समुदाय के संवैधानिक हक-अधिकारों पर लगातार हमला जारी है,
इनके अलावे शिवा कच्छप ,वाल्टर कडूंलना, हरिनारायण महली, जयराम उरांव,भौआ उरांव, राधा उरांव,एल एम उरांव, सुशील ओड़ेया, सहित कई अन्य प्रतिनिधियों ने अपने अपने विचारों को रखा।
इस कार्यशाला की अध्यक्षता और विषय प्रवेश बंधु तिर्की ने किया।

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