हेमंत के सियासी अंत की भविष्यवाणी करने वाले विपक्षी क्या मायूस होंगे !
गणादेश ब्यूरो
रांची: बहुत सारे विपक्ष के नेता जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन का मर्शिया पढ़ रहे हैं। ये लोग मानकर चल रहे हैं कि हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता न केवल खत्म होगी बल्कि इनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगेगी। पर क्या विपक्ष जो चाहता है,वही होगा,या फिर चुनाव आयोग के फैसले से विपक्षी मंसूबा धड़ाम होगा!
झारखंड की सियासत इन दिनों तरह- तरह के किंतु, परंतु के बीच चल रही है। भाजपा के अधिकांश नेता यह मानकर चल रहे हैं कि चुनाव आयोग का फैसला कभी भी आ सकता है,जो हेमंत सोरेन के सियासी अंत का संदेश लाएगा। हेमंत को इस्तीफा देना होगा और फिर जो नया चेहरा चुना जायेगा, वह जेएमएम कुनबे को सम्हाल नहीं पायेगा। फिर सब धड़ाम और पुनः झारखंड में राग रंग केसरिया।भाजपा के कई बड़े ट्विटर मास्टरों ने तो भाभी जी और माता जी पर भी बात करनी शुरू कर दी है।
पर चुनाव आयोग तो जन प्रतिनिधित्व कानूनों और संविधान से बंधी संस्था है। आयोग में अब तक दोनों ओर से जो दलीलें दी गई हैं,उसके लब्बोलुआब तो यही हैं कि अधिकतम हेमंत सोरेन की विधायकी ही जा सकती है। चूंकि उन्होंने लीज लिया लेकिन बिना उसे यूज़ किये सरेंडर भी कर दिया,ऐसे में आयोग अगर उनकी चुनाव लड़ने की योग्यता खारिज करता है तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट में कहीं नहीं टिकेगा।
फिर क्या होगा!अगर हेमंत की विधायकी जाती भी है तो भी वह गठबंधन के नेता बने रहेंगे और सीएम भी। 6 महीने के अंदर फिर बरहेट से जितने का विकल्प तो उनके पास होगा ही। इस तरह सरकार चलती रहेगी,बशर्ते कांग्रेस के विधायक कोई खेल न करें।
झारखंड का सियासी घटनाक्रम बहुत सारे किंतु परंतु के बीच है जरूर पर अगस्त के अंत तक सारे मामलों का पटाक्षेप हो जाना है। ऐसा तटस्थ राजनीतिक जानकारों को लगता है। वैसे भी इस चल रही अस्थिरता का अंत होना चाहिए। आयाराम गयाराम का खेल बंद होना चाहिए। जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए। इन 5 वर्षों के लिए तो झारखण्ड की जनता ने बीजेपी को विपक्ष में रहने का ही अवसर दिया है।