सिंहासन खाली करो कि जनता आती है…..जब अभिव्यक्ति की आजादी पर जड़ा गया था ताला

गणादेश डेस्कः आज से ठीक 47 साल पहले यानी 25 जून 1975 को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला धब्बा कहा जाता है. इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देशभर में आपातकाल घोषित किया था जो 21 मार्च 1977 तक क चला.इंदिरा गांधी के पद नहीं छोड़ने की स्थिति में अगले दिन 25 जून को जेपी ने अनिश्चितकालीन देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया था. दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की मशहूर कविता की पंक्ति-‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है,’ का उद्घोष किया था. अपने भाषण में कहा था, “मेरे मित्र बता रहे हैं कि मुझे गिरफ़्तार किया जा सकता है क्योंकि हमने सेना और पुलिस को सरकार के गलत आदेश नहीं मानने का आह्वान किया है.मुझे इसका डर नहीं है और मैं आज इस रैली में भी अपने उस आह्वान को दोहराता हूं ताकि कुछ दूर, संसद में बैठे लोग भी सुन लें. मैं आज फिर सभी पुलिस कर्मियों और जवानों का आह्वान करता हूं कि इस सरकार के आदेश नहीं मानें क्योंकि इस सरकार ने शासन करने की अपनी वैधता खो दी है. 25 जून की काली रात देश को आपातकाल और सेंसरशिप के हवाले कर नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे. राजनीतिक विरोधियों को उनके घरों, ठिकानों से उठाकर जेलों में डाल दिया गया था. अभिव्यक्ति की आजादी पर सेंसरशिप का ताला जड़ दिया गया था. पत्र-पत्रिकाओं में वही सब छपता और आकाशवाणी पर वही प्रसारित होता था जो उस समय की सरकार चाहती थी. प्रकाशन-प्रसारण से पहले सामग्री को सरकारी अधिकारी के पास भेज कर उसे सेंसर करवाना पड़ता था.
प्रधानमंत्री के संसदीय चुनाव को अवैध घोषित कर दिया
जस्टिस सिन्हा ने अपने फ़ैसले में रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को चुनौती देने वाली समाजवादी नेता राजनारायण की याचिका पर फैसला सुनाते हुए प्रधानमंत्री के संसदीय चुनाव को अवैध घोषित कर दिया. उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द करने के साथ ही उन्हें छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया था. 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फ़ैसले पर मुहर लगा दी थी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दे दी थी. वह लोकसभा में जा सकती थीं लेकिन वोट नहीं कर सकती थीं. इसके बाद इंदिरा गांधी ने आंतरिक उपद्रव’ की आशंका के मद्देनजर संविधान की धारा 352 का इस्तेमाल करते हुए आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से देश में ‘आंतरिक आपातकाल’ लागू करने का फरमान जारी करवा दिया था. दरअसल, आपातकाल एक ख़ास तरह की राजनीतिक संस्कृति और प्रवृत्ति का परिचायक था जिसे लागू तो इंदिरा गांधी ने किया था, लेकिन बाद के दिनों-वर्षों में एकाधिकारवादी प्रवृत्ति कमोबेश सभी राजनीतिक दलों और नेताओं में देखने को मिलती रही है. चाहे वे किसी पार्टी के हों या किसी राज्य में हों, सत्ता में बैठे लोगों और इन प्रवृत्तियों से न सिर्फ सावधान रहने की बल्कि उनका मुक़ाबला करने के लिए आम जनता को जागरूक और तैयार करने की ज़रूरत है.

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