सर्कस वालों का दर्द ……..

सर्कस एक ऐसा व्यवसाय है जहां हर वक्त कलाकार अपनी जान की परवाह किए बगैर लोगों का मनोरंजन करते हैं. लेकिन हैरानी तब होती है जब उनकी जान की कीमत दो वक्त की रोटी से ज्यादा कुछ नहीं होता. वर्षों से काम करने के बाद भी ये कलाकार मुश्किल से अपना घर चला पाते हैं. आर्थिक तंगी के चलते ये कलाकार अन्य व्यवसाय का विकल्प तलाशते हैं.
पिछले 15 सालों में सर्कस कराने वाले संस्थाओं की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से कमी आई है. 15 साल पहले भारत में 350 से भी ज्यादा सर्कस थे, परन्तु वर्तमान में यह संख्या घटकर मात्र 11 से 12 हो चुकी है. सर्कस का यह आंकड़ा निश्चित रूप से आश्चर्यजनक है. इतनी भारी संख्या में सर्कस का बंद होना हुनरमंद कलाकारों के लिए रोजीरोटी की समस्या उत्पन्न कर रही है.
जानवरों के प्रति सख्त कानून होने की वजह से भी कोई सर्कस में रुचि नहीं लेता. दर्शक जानवरों के हैरतअंगेज कारनामें देखना चाहते हैं और जब शो के दौरान ऐसा नहीं होता है तो उन्हें निराशा होती है. हालांकि सर्कस मालिकों का कहना है कि प्रतिदिन जानवरों के भोजन-पानी और देख-रेख में 25,000 से 30,000 रुपए खर्च किए जाते हैं.
सर्कस मालिकों का कहना है कि तकनीक की वजह से मनोरंजन के अन्य माध्यमों का विकास हुआ लेकिन सर्कस आज भी वहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण आर्थिक तंगी. यदि सरकार द्वारा इन सर्कसों को कुछ मदद मिल जाए तो सर्कस की दुनिया फिर से चल पड़ेगी. वहीं दूसरी तरफ उनकी स्थिति यही रही तो उनके इतिहास बनने में ज्यादा दिन नहीं लगेगा

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