विभिन्न भाषा-बोलियों के सहकार से बनी हिंदी का ठाठ निराला: महुआ माजी

रांची। हिंदी दिवस की पूर्व संध्या में रांची प्रेस क्लब में हिंदी प्रेमी जुटे। पत्रकारिता और हिंदी विषय पर क्लब ने संगोष्ठी का आयोजन किया था। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद और साहित्यकार डॉ महुआ माजी ने कहा कि हिंदी राजभाषा है, लेकिन जिस प्रकार देश में यह संपर्क भाषा बनकर उभरी है, इसे लगभग राष्ट्रीय भाषा का दर्जा हासिल हो चुका है। लगभग 28 बोली-भाषा के सहकार से हिंदी बनी है और इसके ठाठ की यही वजह है। अपनी भाषा को लेकर प्रेम सहज प्रवृत्ति है। पत्रकार निलय सिंह के संचालन में शुरू गोष्ठी में स्वागत वक्तव्य क्लब के पूर्व महासचिव शम्भूनाथ चौधरी ने दिया। कहा कि हिंदी में दूसरी भाषा के शब्दों से परहेज़ नहीँ करना चाहिए। लेकिन इसके लिए ज़बरदस्ती नहीं करें। कार्यक्रम को क्रम लेखक-पत्रकार शहरोज़ क़मर के आलेख पाठ से मिला। जिसमें उन्होंने कहा कि उदंत मार्तण्ड से मौजूदा डिजिटल समय तक पत्रकारिता में हिंदी बहुत बदली है और बदलना भी चाहिए। भाषा को नदी की तरह होना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।

सरोकार से बनती है भाषा: प्रियदर्शन

बहैसियत मुख्य वक्ता एनडीटीवी के सम्पादक व लेखक प्रियदर्शन ने कहा कि
भाषा सरोकार से बनती है।
विचार और भाषा साझा करना चाहिए। देश में 43 करोड़ लोग तो होंगे जिनकी मातृभाषा हिंदी है। ज़बरदस्ती भाषा थोपी नहीं जानी चाहिये। सहज ढंग से आये तो उत्तम। भाषा की हैसियत राजनीतिक ताक़त से तय होती है। आज भी अंग्रेज़ी को विशेषाधिकार हासिल है। सरकारी तंत्र भी अंग्रेज़ी में काम कर रहा है। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए क्लब के अध्यक्ष संजय मिश्रा ने बढ़ती हिंदी की ताक़त और बाजार में इसकी उपादेयता की बात कही। सेंट्रल यूनिवर्सिटी झारखंड के देवव्रत ने हिंदी को तकनीक से जोड़ने पर बल दिया। इनके अलावा डॉ आकांक्षा चौधरी, यास्मीन लाल, अनुराधा सिंह आदि ने भी अपने विचार साझा किए।

सम्मानित किए गए अतिथि

प्रेस क्लब की ओर से अतिथियों को पौधे और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। मौके पर क्लब के कोषाध्यक्ष सुशील सिंह मंटू, कार्यकारिणी सदस्य रूपम, माणिक बोस, संजय रंजन, राकेश कुमार, परवेज़ कुरेशी, राज वर्मा के अलावा पूर्व अध्यक्ष राजेश सिंह, पूर्व महासचिव अभिषेक सिंह, असित कुमार, संध्या चौधरी, सुधीर पाल, नौशाद आलम, डॉ रूपा, महिमा सिंह, अमजद अहमद, शाहिद रहमान, असग़र खान और चंदन भट्टाचार्य समेत कई हिंदी प्रेमी के अलावा बड़ी संख्या में मास कॉम के स्टूडेंट्स मौजूद रहे।

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