त्याग ,तपस्या की प्रतिमूर्ति डॉक्टर दादी प्रकाशमणि जी की 16 वीं पुण्य स्मृति दिवस विश्व बंधुत्व दिवस के रुप में मनाया…

सुपौल।प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सिमराही के तत्वधान में स्थानीय ओम शांति केंद्र पर ब्रह्माकुमारीज संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका डॉक्टर प्रकाशमणि दादी जी की स्मृति दिवस विश्व बंधुत्व दिवस के रूप में मनाया। कार्यक्रम का शुभारंभ स्थानीय सेवा केंद्र के राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी आस्था बहन, ब्रह्माकुमारी चांदनी बहन,मनु देबि ,बिभा देवी ,समाजसेवी फूल कुमारी देबि, व्यबसायिक रागिनी देबी, अबध ना मेहता,ब्रह्माकुमार किशोर भाईजी,रेणू देबी, सारधा देबी,इंद्रदेव भाई,अर्जुन भाई, सत्यनारायण भाई इत्यादि ओने संगठित रूप में दादी प्रकाशमणि जी की तस्वीर पर माल्यार्पण, फुल अर्पण एवं दीप प्रज्वलन कर के शुभारंभ किया।
स्थानीय सेवा केंद्र से राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी आस्था बहनजी ने डॉक्टर प्रकाशमणि दादी जी की विशेषताएं बताते हुए कहीं दादी का स्वभाव बहुत ही मधुर ,सहनशील और सहकारिता था। दादी अपना समय ईश्वरिय सेवाओं में व्यतीत करती और अध्यात्म संगोष्ठियों में भाग लेने, व्याख्यान देने ,राजयोग सेवा केंद्र खोलने और यहां तक कि मधुबन में आने वाले के लिए भोजन तैयार करने में मदद करने जैसी यज्ञ की सभी सेवाएं करती थी। सभी को एक मां, एक मार्गदर्शक और एक प्रिय मित्र के रूप में दादी से प्यार रहता था ।हालांकि दादी की खासियत थी कि वह सारे ब्राह्मण परिवार को अपना मान करके पालना करती थी ।कोई भी अजनबी नहीं है हम सभी एक पिता के बच्चे वह हमेशा कहती थी। निर्माणभाव की धनि थी।
उन्होंने कहा दीप शीला डॉक्टर प्रकाशमणि जी प्रेम और स्नेह का प्रतिमूर्ति थी। उनकी आंख में सदैव प्रेम और खुशी की झलक दिखाई देता था। ब्रह्माकुमारीज संस्थान की सेवाओं को 78 देशों में फैलाने की निमित बनी। उनके प्रशासन में डर और अहंकार नहीं था, बलकि प्रेम और स्नेह था। लाखों ब्रह्मावत्स के लिए उनका जीवन आदर्श के रूप में रहा ।कभी किसी से कोई गलती होता था ,तो वह बहुत प्यार से इन्हें शान्ति पूर्वक उनको समझाती थी। और टोली खिलाती थी। आत्मिक दृष्टि दे उसको आगे बढ़ाती थी ऐसे बहू प्रतिभा की धनी डॉक्टर दादी प्रकाशमणि जी सभी के जीवन के लिए मार्गदर्शक बना है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ ब्यबसायिक रागिणी देबि जी ने अपने उदबोधन देते हुए कहा कि ज्ञान की कमी के कारण वर्तमान समय मानव के अंदर काम ,क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, नफरत आदि राक्षसी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है ।जिसका कारण समाज में दिन-प्रतिदिन अब अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। उन्होंने बताया अगर हमने अपने भारतकी पुरानी सभ्यता ,संस्कार, परंपराएं पूर्व जनों की संस्कृति, सत्संग के माध्यम से फैलाई नहीं तो इस समाज में चलना ,रहना, बैठना, उठना जीना बड़ा कठिन महसूस होगा ।उन्होंने जीवन में सत्संग का महत्व बताते हुए कहा कि सत्संग के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही हमारी असली संपत्ति है ।सत्संग के माध्यम द्वारा प्राप्त शक्तियां, सद्गुण, विवेक द्वारा हम अपने कर्मों में सुधार ला सकते हैं ।उन्होंने बताया कि सत्संग द्वारा प्राप्त शक्तियां, सद्गुण की कमाई को ना तो चोर लूटता है, ना ही आग जल आती है, नहीं पानी डुबाता है ।यह तो हमारी साथ जाने वाली असली संपत्ति है ।इसका प्राप्त करने से ही जन्म जन्मांतर हम महान बन सकते हैं ।ऐसे कमाई को प्राप्त करने के लिए भी हम अपना समय देना चाहिए। सत्संग से प्राप्त ज्ञान द्वारा ही हम अपने जीवन को सकारात्मक बनाकर तनाव मुक्ति जीवन जी सकते हैं। ब्रम्हाकुमारी यों के द्वारा दिए गए ज्ञान औऱ क्रियाकलापों को सराहना भी किया।

उक्त कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी ने किया ।मौके पर व्यबसायिक रागिनी देबि,फूल कुमारि,अवध नारायण मेहता, अधिवक्ता रामचंद्र जयसवाल, सतीश कुमार,स्व इंस्पेक्टर भूपेन्द्र प्रताप सिंह,रेणू देबि ,सारधा देबि,इंद्रदेव चौधरी, सतयनारायण भाई, बेचू भाई, सावित्री देवी, अशोक कुमार,शकुंतला देवी, किशोर भाई ,अर्जुन भाई,विरेंद्र भाई ,चाँदनी बहन, मुद्रिका बहन इत्यादि सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।

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