विश्व में भगवान शिव का सबसे बड़ा मंदिर श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर

तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में अन्नामलाई की पहाड़ी स्थित श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर है। यहां अग्नि रूप में भगवान शिव की पूजा होती है और यहाँ स्थापित शिवलिंग को अग्नि लिंगम कहा जाता है। मंदिर में भगवान शिव के अग्नि रूप में उत्पन्न होने का इतिहास युगों पुराना है।
पौराणिक इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब माता पार्वती ने चंचलता पूर्वक भगवान शिव से अपने नेत्र बंद करने के लिए कहा तो उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए और इस कारण पूरे ब्रह्मांड में कई हजारों वर्षों के लिए अंधकार छा गया। इस अंधकार को दूर करने के लिए भगवान शिव के भक्तों ने कड़ी तपस्या की, जिसके कारण महादेव अन्नामलाई की पहाड़ी पर एक अग्नि स्तंभ के रूप में दिखाई दिए। इसी कारण यहाँ भगवान शिव की आराधना अरुणाचलेश्वर के रूप में की जाती है और यहाँ स्थापित शिवलिंग को भी अग्नि लिंगम कहा जाता है।
मंदिर की स्थापना की सही तारीख के विषय में मतभेद है, लेकिन मंदिर में स्थापित प्रतिमाओं और अन्य पुरातात्विक अध्ययनों से अंदाजा लगाया जाता है कि मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था, जिसका जीर्णोद्धार 9वीं शताब्दी में चोल राजाओं के द्वारा कराया गया। इसके अलावा पल्लव और विजयनगर साम्राज्य के राजाओं द्वारा भी मंदिर में कराए गए निर्माण कार्य की जानकारी मिलती है। मंदिर का इतिहास तमिल ग्रंथों थेवरम और थिरुवसागम में उपलब्ध है।
यह श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, विश्व भर में भगवान शिव का सबसे बड़ा मंदिर है। लगभग 24 एकड़ क्षेत्रफल में अपने विस्तार के कारण यह भारत का आठवाँ सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। मंदिर के निर्माण के लिए ग्रेनाइट एवं अन्य कीमती पत्थरों का उपयोग किया गया है।
मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त 5 अन्य मंदिरों का निर्माण किया गया है। अन्नामलाई की पहाड़ी की तलहटी पर स्थित इस पूर्वाभिमुख मंदिर में चार प्रवेश द्वार हैं और यहाँ चार बड़े गोपुरम बनाए गए हैं, जिनमें से सबसे गोपुरम को ‘राज गोपुरा’ भी कहा जाता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 217 फुट है और यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा प्रवेश द्वार है।
अरुणाचलेश्वर मंदिर में हजार स्तंभों का एक हॉल भी है, जिसका निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय के द्वारा कराया गया। इस हॉल के इन सभी हजार स्तंभों में नायक वंश के शासकों के द्वारा नक्काशी कराई गई। यह नक्काशी अद्भुत है और भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है, जो बहुत कम मंदिरों में देखने को मिलती है।
मुख्य मंदिर तक पहुँचने के मार्ग में कुल 8 शिवलिंग स्थापित हैं। इंद्र, अग्निदेव, यम देव, निरुति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव द्वारा पूजा करते हुई 8 शिवलिंगों के दर्शन करना अत्यंत पवित्र माना गया है। मंदिर के गर्भगृह में 3 फुट ऊँचा शिवलिंग स्थापित है, जिसका आकार गोलाई लिए हुए चौकोर है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को लिंगोंत्भव कहा जाता है और यहाँ भगवान शिव अग्नि के रूप में विराजमान हैं, जिनके चरणों में भगवान विष्णु को वाराह और ब्रह्मा जी को हंस के रूप में बताया गया है।

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