सिद्धपीठ है शरणपुर दुर्गा मंदिर , मां भगवती का है वास

अररिया :या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
जिले के शरणपुर गांव के मध्य स्थित मां दुर्गा मंदिर सिद्धपीठ के नाम से प्रसिद्ध है। 1904 से
शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के सभी रूपों की यहां पूजा होती है। श्रद्धालुओं की मानें तो इस मंदिर में साक्षात मां भगवती का वास है। दयालु मां अपने भक्तों हर की मनोकामनाएं पूरी करती है। मनोकामनाएं पूरा होने पर श्रद्धालुओं द्वारा बकरों एवं भैंसों की बलि दी जाती है। इस प्रचीन मंदिर की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां अररिया जिले के अलावे पड़ोसी देश नेपाल से भी काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंच कर मन्नतें मांगते हैं। मन्नतें पूरी होने पर बकरा की बलि देते हैं। नवरात्रि के अवसर पर प्रत्येक दिन भजन कीर्तन होता है। विशेषता यह है कि अष्टमी की रात्रि विशेष प्रकार की निशा पूजा होने के साथ छागरों व भैसों की बलि दी जाती है।
शरणपुर दुर्गा मंदिर 119 साल पुराना मंदिर है। मंदिर की स्थापना का श्रेय स्व घुटर मिश्र को दिया जाता है। बुजुर्ग ग्रामीण चित्रबोध ठाकुर ने बताया कि पलासी प्रखंड के बलुआ स्टेट के तत्कालीन जमींदार स्व रूद्रानंद ठाकुर से मुकदमा जीतने की खुशी में वर्ष 1904 में दुर्गा मंदिर की स्थापना की थी। मां दुर्गा के अलावे भगवान शंकर, पार्वती, काली, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश, कार्तिक आदि की आकर्षक प्रतिमाओं की पूजा की जाती है। स्थापना काल से प्रत्येक वर्ष टीना के छत के नीचे पूजा अर्चना होती थी। शरणपुर के मिश्रा परिवार द्वारा वर्ष 2007 में भव्य मंदिर का निर्माण कर पूजा अर्चना की जाती है।
प्रत्येक वर्ष नवमी व दसमी के दिन मेला का आयोजन होता है। इसके साथ ही दोनों रात्रि स्थानीय नाट्य कला परिषद द्वारा नाटक खेला जाता है। पूजा को सफल बनाने में चित्रबोध मिश्र, जयबोध मिश्र, सुकदेव मिश्र, सत्यनारायण मिश्र, महानन्द मिश्र, दिनेश मिश्र, नारायण मिश्र, चन्द्रानन्द मिश्र, रामनारायण मिश्र, महेश मिश्र, पप्पु मिश्र, लाल मोहन झा सहित सभी ग्रामीणों का काफी सहयोग रहता है।
अष्टमी की रात्रि विशेष पूजा निशा पूजा विधि विधान के साथ होती है। मान्यता है कि निशा पूजा की रात्रि पूरी रात जागने व मन्नतें मांगने पर हर मनोवांछित कामनाएं पूरी होती है। यही कारण है कि मनोकामना पूरा होने पर यहां लोगों के द्वारा अष्टमी रात्रि निशा पूजा व नवमी को बकरों व भैसो की बलि दी जाती है। बलि दी जाने वाली बकरों की संख्या पंद्रह सौ से दो हजार के करीब होती है। नेपाली श्रद्धालू भी आकर बकरों की बलि देते हैं। नवरात्र के आरंभ होते ही आप-पास के हजारों की संख्या में नित्य सुबह माता के दरबार में माथा टेकने आते हैं, संध्या वेला में भक्त जन द्वारा दीप प्रज्वलित करते हैं हर जगह भक्ति मय वातावरण है ।

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