राजभवन ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक लौटाया

रांची. झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक (झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्तियों को परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों का विस्तार करने के लिए विधेयक -2022) को लौटा दिया है। विधानसभा को इस पर ​पु​नर्विचार करने को कहा है। राजभवन ने विधेयक में शामिल कानूनी मुद्दों पर अटॉर्नी जनरल से राय मांगी थी। 15 नवंबर को अटॉर्नी जनरल की राय मिलने के बाद राजभवन ने बिल को लौटाया. राज्यपाल ने संदेश के माध्यम से विधानसभा को अटॉर्नी जनरल की राय से अवगत ​करा दिया है।
अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि विधेयक में स्थानीय व्यक्ति शब्द की परिभाषा लोगों की आकांक्षाओं के अनुकूल है।यह स्थानीय परिस्थितियों के लोकाचार और संस्कृति के साथ फिट बैठती है. तर्कसंगत और वस्तुनिष्ठ मानदंडों पर आधारित प्रतीत होती है. लेकिन लगता है कि विधेयक की धारा -6(ए) संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद -16(2) का उल्लंघन कर सकती है और यह अमान्य हो सकती है. हालांकि पैरा-24 में मेरी राय पर अमल कर इसे बचाया जा सकता है।

अटॉर्नी जनरल ने लिखा-इस विधेयक के मुताबिक राज्य सरकार की ​थर्ड-फोर्थ ग्रेड की नौकरियां केवल स्थानीय व्यक्तियों के लिए आरक्षित होंगी. स्थानीय के अलावा अन्य लोगों की नियुक्तियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा। मुझे लगता है कि थर्ड-फोर्थ ग्रेड की नौकरियों के लिए आवेदन करने से अन्य लोगों को वंचित नहीं किया जा सकता. इसके बजाय सुरक्षित तरीका यह है कि सभी चीजों में स्थानीय व्यक्तियों को समान प्राथमिकता दी जाए। हालांकि फोर्थ ग्रेड के लिए स्थानीय व्यक्ति पर विचार किया जा सकता है.

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