विश्व के131देशों में मोटे अनाज का उत्पादन,सुपरफूड भी कहा जाता है…
जमशेदपुर: मोटे अनाज की उपयोगिता को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय खाद्य और कृषि संगठन ने 2023 वर्ष को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज घोषित किया है। जिससे विश्व स्तर पर इसकी उत्पादकता और व्यापकता बढ़ाने तथा बढ़ाने तथा खाद्य सुरक्षा में योगदान देने के दृष्टिकोण से इसे प्रमुखता दी जा रही है।
मोटे अनाज भारत में जो मोटे अनाज उगाई जाती है। उसे दो वर्गों में बांट कर देखा जा सकता है ।पहला है -प्रमुख मोटे अनाज इसके अंतर्गत ज्वार बाजर और रागी आते हैं जबकि द्वितीय वर्ग में अर्थात गौण मोटे अनाज में शामिल है कंगनी कुटकी कोदो और सावा ।इस प्रकार मोटे अनाज में ये सभी शामिल है किंतु प्रमुख मोटे अनाज जिसमें ज्वार ,बाजरा और रागी आते हैं। इसकी खेती बहुतायत में होती है। इसे सुपरफूड भी कहा जाता है।
उत्पादन के क्षेत्र– मोटे अनाज का उत्पादन विश्व के 131 देशो द्वारा किया जाता है।यह एशिया और अफ्रीका में लगभग 60 करोड लोगों के लिए पारंपरिक आहार का अंश है। भारत, नाइजीरिया और चीन इसके प्रमुख उत्पादक देश है ।पूरे विश्व में कुल उत्पादन में इन तीनों देशों का योगदान 55% है ।भारत में इसकी खेती हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है
मोटे अनाज को प्रमुखता दिए जाने के कारण
मिलेट्स के उत्पादन पोषक तत्व पोषण और बाजार मूल्य आदि गुणों को देखते हुए इसे प्रमुख फसल माना जा रहा है और विश्व स्तर पर इसे व्यापक स्तर पर स्थापित करने के दृष्टिकोण से मोटे अनाज वर्ष घोषित किया गया है। हम इसे विस्तार से समझते हैं
●पोषक तत्व -मिलेट को सुपर फुड कहा जाता है क्योंकि इसमें पोषक तत्व की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसमें फाइबर, प्रोटीन, विटामिन बी-12, विटामिन बी 3 तथा विटामिन सी से भरपूर होती है। यह एंटीऑक्सीडेंट एमिनो एसिड जैसे तत्वों से भी समृद्ध होते हैं ।
●जलवायु प्रत्यास्थी-मिलेट्स फसल की प्रमुख गुण जलवायु- प्रत्यास्थी का होना है ।यह कम पोषक मृदा यानी किसी भी मिट्टी में उगाई जा सकती है।यह सूखा प्रतिरोधी होते है।इसमे कम जल की आवश्यकता होती है।अतः यह इन्हें अप्रत्याशित मौसम पैटर्न और जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए एक उपयुक्त खाद्य फसल बनाते हैं। ●संवहनीय- मोटे अनाज को प्रायः पारंपरिक विधि से उगाए जाते हैं जो आधुनिक पद्धति की तुलना में अधिक संवहनीय तथा पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुकूल है ।
●स्वास्थ्य जनक लाभ- बाजरा को सुपरफूड कहा जाता है। कारण इसमें अनेक पौष्टिक/ विटामिन तत्व होते है जिनके सेवन से ह्रदय स्वास्थ्य रहता है, मधुमेह की रोकथाम, वजन का नियंत्रण तथा आंत मे सूजन का प्रबंधन मे लाभ पहुँचता है।
बाजारा की उन्नत किस्मे
बाजारा एक ऐसी छोटी बीज वाली घासो का समूह है जिसे जानवरो के चारा और मनुष्यो के भोजन के लिये अनाज के रूप मे पूरी दुनियाभर मे उगाई जाती है।बाजरे की उत्तम किस्म के बीज को संकरण के माध्यम से बनाया जाता है।इसे मनुष्य और पशुओ दोनो के उपभोग के लिए उगाया जाता है।
बाजरा की किस्मे (पशुओ और मनुष्य के उपयोग हेतु)
एक कटान वाली किस्म है- राज,बाजरा चरी-2, पी0 सी0 बी0 141 और नरेंद्र चारा,बाजरा-3 तथा बहु कटान वाली किस्में है- जॉइंट बाजरा,पूसा-322,323, प्रो एग्रो- 1, जी0 एफ0बी0-1 और ए0एफ0बी0-2
द्विउद्देशीय किस्में- ए वी के बी-19 और नरेंद्र बाजरा-2
बाजरे की बुवाई/खेती
बाजारा वैसे तो हर प्रकार की मिट्टी मे होती है किन्तु हल्की या दोमट बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।अगर सिंचाई का प्रबंध है तो मार्च से अप्रैल मध्य के बीच अन्यथा जुलाई के प्रथम सप्ताह खरीफ की फसल के साथ बुआई की जाती है।दक्षिण भारत मे इसकी बुआई अक्टूबर से नवंबर रबी फसल के साथ की जाती है।बाजरे फसल की बुआई 25 सेमी0 की दूरी मे पंक्तियो मे की जाती है।बुआई से पूर्व बाजरे की बीज का उपचारित थीरम ( 3 ग्राम/किग्रा बीज) से कर लेनी चाहिए। बाजरे के पौधे को अंकुरित होने के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तापमान और पौधा को बडा होने के लिए 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है।बाजरे का खेती हेतु बीज दर 8 से 10 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर है।
लेखक: रूस्तम अंसारी