राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा द्वारा पटना में आयोजित हुआ राजनीतिक चिन्तन बैठक

ब्राह्मण बोर्ड बनाने एवं उचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग को ब्राह्मण समाज की बैठक आयोजित

सहरसा:राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा के कोशी प्रमंडल प्रभारी सह प्रदेश उपाध्यक्ष शैलेश की अध्यक्षता में ब्राह्मण बोर्ड बनाने एवं उचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने की सहित अन्य मांग को लेकर राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा की बैठक आयोजित की गई।उन्होने कहा जिस दलित शोषित वंचित की श्रेणी में उसे रखा जाता था जिसकी भागीदारी सत्ता में नहीं के बराबर होती थी। आज कहीं न कहीं वही स्थिति राजनैतिक स्तर पर ब्राह्मणों कि होते जा रही है। राजनीति में जो भी जाति जिसके साथ होती है उसकी हिस्सेदारी भी आनुपातिक मिलती है। पिछले 25 वर्षों की अगर आप बिहार की करेंगे तो आप पाएंगे कि ब्राह्मण वर्ग वंचित उपेक्षित शोषित वर्ग में शामिल होने के कगार पर है।ब्राह्मण समुदाय निष्ठा पूर्वक जिस भी राजनैतिक दलों से जुड़ा है अपना समर्पण और मतदान करते आया है। अगर आप एनडीए कि बातें करें तो एक दशक से यह समुदाय एन डी ए को वोट करती आ रही है , चाहे सामने किसी भी जाति का उम्मीदवार हो, इस आस में की हमारे अधिकारो के लिए हमारी भागीदारी के लिए यहां हमारी आवाज उठाई जाएगी, लेकिन मिला क्या? गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि हमारी वफादारी का इनाम हमें यह मिला कि हम जहां थे वहां से भी पिछे धकेल दिये गये, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह कभी जर्मनी में नाजियों के शासन काल में यहुदियों के साथ बर्ताव हुआ़ था।सरकार जातीय जनगणना कराती है और उसमें ब्राह्मणों को कम दिखाती है, फिर भी वो सवर्ण में सबसे ज्यादे है, पासवान समाज , कुशवाहा समाज से भी ज्यादा है। पर जहां एक तरफ शासन के भागीदारी में कुर्मी शीर्ष पर कुशवाहा शीर्ष पर यहां तक की पासवान और ब्राह्मण के अन्य समकक्ष वर्ग भी ब्राह्मणों से आगे है वहीं यह समाज अपनी भागीदारी के मामले में हांसिए पर है। सोचना होगा ब्राह्मण समाज को आखिर ऐसा क्यों?ऐसा इसलिए की इतनी प्रताड़नाओं एवं उपेक्षित होने के वाबजूद भी हम न तो आजतक संगठित हो पाएं है और न ही एक मंच पर आ सकें है।अति राष्ट्रवाद कि महत्वाकांक्षाओं ने हमें इस कदर कुंठित कर रखा है कि हम पार्टी विशेष के बंधुआ मजदूर भर बनकर रह गये हैं, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह यहुदी कभी हुआ करते थे, कहा जाता है कि इतिहास हमेशा वर्तमान का प्रतिनिधित्व करता है आज के समय में ब्राह्मण समुदाय को जर्मनी का इतिहास पढ़ने कि जरुरत है।आज हमारे समाज के बड़े बुजुर्गो को आगे आकर युवाओं को सही मार्गदर्शन करने कि जरूरत है।
आज पान बोर्ड बनने की बात हो रही क्यूँ क्योंकि उन्होने अपने सांगठनिक सबलता को सबके सामने प्रदर्शित किया। देश में तेलंगाना सहित 13 राज्यों में ब्राह्मण बोर्ड गठित है। एनडीए के भी कई राज्यों में बोर्ड गठित है। आखिर यहाँ तेलांगना सहित अन्य राज्यों के तर्ज़ वाला ब्राह्मण बोर्ड क्यूँ नहीं? क्या हमारी जरूरत सिर्फ वोट बैंक तक ही होनी चाहिए।बंधुआ मजदूरी छोड़िए आप अलग अलग नाम से अलग अलग क्षेत्रों मे ब्राह्मण को संगठित करिए , उनके हित मे कार्य करिए, पर राजनैतिक मुहिम में एक मंच पर आइए ।क्या अब भी आपकी आंखों नहीं खुल रही है जब धार्मिक न्यास परिषद से भी आपको हटा कर गैर ब्राह्मण को दे दिया गया है ।अगर अभी भी नहीं जागे तो सच मे एक दिन ऐसा आएगा जब अपने ही देश में आपको यहुदियों के तरह या तो मार दिया जाएगा या निष्कासित कर दिया जाएगा, काश्मीर ताजा उदाहरण है जहां के ब्राह्मण आज तक विस्थापितों का जीवन जी रहे हैं।

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