आदिवासियों के मुद्दे की अनदेखी कर झारखण्ड में न तो सत्ता चलेगी न ही राजनीति : बंधु तिर्की

रांची: झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा है कि झारखण्ड में आदिवासियों के मुद्दे की अनदेखी कर न तो सत्ता चल सकती है, ना ही सरकार और न ही राजनीति. इसके साथ-साथ उन्हें बाँटने वाले किसी भी राजनीतिक दल और संगठन को मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा. श्री तिर्की ने कहा कि सरना कोड, पांचवी अनुसूची आदि के साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में आदिवासियों की उपयोजना राशि (ट्राइबल सब प्लान) में कटौती किया जाना, आदिवासियों के हित के साथ खिलवाड़ है और इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा.
आज राजधानी के ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान में 4 फरवरी को आयोजित आदिवासी एकता महारैली की तैयारी के संदर्भ में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए श्री तिर्की ने कहा कि, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अधीन के संगठनों द्वारा आदिवासियों को बाँटने के लिये जमीन-आसमान एक कर दिया गया है लेकिन उन्हें उनकी चाल में कोई भी सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि आदिवासी बिना किसी मतभेद के एकजुट हैं और उन्हें दुनिया की कोई शक्ति अलग नहीं कर सकती. श्री तिर्की ने कहा कि भाजपा एवं केन्द्र के साथ ही जिन-जिन प्रदेशों में भाजपा सत्ता में है वहाँ आदिवासियों की लगातार अनदेखी की जा रही है. उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में गुमला में एक रैली को संबोधित करते हुए अमित शाह ने सरना धर्मकोड पर विचार करने की बात कही थी लेकिन उसपर अबतक कोई निर्णय नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि झारखण्ड से पलायन कर असम के चाय बागानों में मजदूरी कर रहे आदिवासियों को वहां एमओबीसी अर्थात विस्थापित अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा प्राप्त है जबकि असम में भी चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के सभी नेताओं ने आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की बात कही थी लेकिन अपने वायदे से मुकरना भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की आदत है. श्री तिर्की ने कहा कि इस महारैली में झारखण्ड के सभी जिलों के सभी समुदायों के आदिवासियों के साथ ही आदिवासी मुद्दों के प्रति संवेदनशील रवैया रखनेवाले और वास्तव में आदिवासियों की समस्याओं को समझने वाले सभी जागरूक लोगों की सहभागिता होगी. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण महाराष्ट्र के साथ ही पूरे देश के आदिवासियों के लिये निरंतर संघर्ष करनेवाले सुप्रसिद्ध आदिवासी नेता और आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवाजी राव मोघे का शामिल होना है. इसके साथ ही गुजरात के आदिवासी नेता नारायण राठवा भी शामिल होंगे.
संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए अजय तिर्की ने कहा कि यह महारैली जिन उद्देश्यों के प्रति समर्पित होकर बुलायी गयी है और इसके प्रति जैसा उत्साह आदिवासियों के सभी समुदाय में है, वह आदिवासियों को बाँटने वालों के चेहरे पर जोरदार तमाचा है. अपने संबोधन में प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि झारखण्ड के आदिवासियों की एकजुटता इस महारैली में दिखेगी. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार और आरएसएस ना न केवल सीएनटी एसपीटी एक्ट जैसे कानूनों में परिवर्तन करना चाहती है बल्कि वह अपनी अनेक चाल के बलबूते आदिवासियों के बीच दीवार खड़ी करना चाहती है. श्री मुंडा ने कहा कि आदिवासी एक खटिया, एक पटिया और एक अखड़ा की परंपरा का हमेशा से पालन करते रहे हैं और करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि यदि आदिवासी की सभी जनजातीय एकताबद्ध नहीं होगी तो न केवल पांचवी अनुसूची पर प्रभाव पड़ेगा बल्कि आदिवासियों के लिये आरक्षण और विधानसभा की आरक्षित सीटों पर भी नकारात्मक असर होगा. श्री मुंडा ने कहा कि जिस भुईहरि जमीन के संदर्भ में झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी हुई है, उसी भुईहरि ज़मीन पर काँके रोड में भाजपा और आरएसएस के लोगों ने कब्जा जमाया हुआ है.
अपने संबोधन में शिवा कच्छप ने कहा कि अब आदिवासियों के मुद्दे की अनदेखी नहीं की जा सकती. प्रभाकर तिर्की में कहा कि भारतीय संविधान की पवित्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर प्रहार करने को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. उन्होंने कहा कि आदिवासियों के मुद्दे को दरकिनार कर राज्य कभी भी नहीं चल सकता. अपने संबोधन रतन तिर्की ने कहा कि आदिवासियों की पहचान और उनका अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और अब पांचवी अनुसूची की अनदेखी और आदिवासियों के मुद्दे पर कोई समझौता किया जायेगा तो आदिवासी शांत नहीं बैठनेवाले और उन्हें हर कुठाराघात का जवाब देना बहुत अच्छी तरीके से आता है. श्री तिर्की ने कहा कि रांची में आयोजित महारैली का संदेश झारखण्ड के गांव-गांव में तो जायेगा ही लेकिन इसके साथ-साथ पूरे देश में और केन्द्र सरकार, सत्ता-शासन और सभी राजनीतिक दलों तक इसका संदेश पहुँचेगा और यही इस महारैली का महत्वपूर्ण उद्देश्य भी है.
इस संवाददाता सम्मेलन में वक्ताओं ने जानकारी दी कि आदिवासियों की जमीन लूट, विस्थापन, पलायन, बैकलॉग नियुक्ति करने, आदिवासियों की चट्टानी एकता को प्रदर्शित करने के साथ ही केन्द्र सरकार की तानाशाही और फांसीज़्म के खिलाफ इसका आयोजन किया गया है और आदिवासी मुद्दे और उनकी एकता पर कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता. वक्ताओं ने कहा कि इस महारैली में तमाम आदिवासी संगठनों के द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार, उनका शोषण और विशेष रूप से हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल को उजाड़ने के साथ ही मणिपुर जैसी घटनाओं पर भी विचार किया जायेगा और एकजुटता के साथ अपनी बातों को पूरे देश, आदिवासी समाज और केन्द्र सरकार की समक्ष रखा जायेगा. वक्ताओं ने कहा कि यह महारैली न केवल रांची या झारखण्ड बल्कि पूरे देश के आदिवासियों की दशा-दिशा तय करेगी और इसका महत्व इसलिये भी बहुत ज्यादा है क्योंकि रांची पूरे देश के आदिवासियों का भावनात्मक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से सबसे प्रमुख केन्द्र है.

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