झारखण्डी अधिकार मार्च एक और उलगुलान की रणभेरी: बिनोद पाण्डेय

रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव बिनोद पाण्डेय ने कहा कि राज्य के सभी जिला मुख्यालय पर ‘‘झारखण्डी अधिकार मार्च’’ पार्टी के जिला समितियों के द्वारा हुआ।
भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा झारखण्ड राज्य के साथ किये जा रहे सौतेले व्यवहार के कारण झारखण्डी आवाम् ने ‘‘झारखण्डी अधिकार मार्च’’ में स्वतः भाग लिया तथा केन्द्र सरकार के कथनी और करनी में अन्तर भी बताया। भाजपा के द्वारा चुनावी सभाओं में दो करोड़ रोजगार प्रति वर्ष तथा पन्द्रह लाख रूपये प्रति व्यक्ति के खाते में देने की बात भाजपा सरकार के प्रथम कार्यकाल से ही कही जा रही है, जो अब तक वास्तविकता से काफी दूर है। आम जन-मानस भाजपा के लोक-लुभावन घाषणाओं के चक्कर में अब तक फसता रहा है।
उन्होंने कहा कि भाजपा के घोषणाओं के विपरित उसकी झारखण्ड विरोधी मानसिकता या यूँ कहें कि आदिवासी-मूलवासी विरोधी मानसिकता केन्द्र सरकार के द्वारा झारखण्ड सरकार के लिए गए निर्णय को टालने अथवा दबा कर रखने से समझी जा सकती है। सीएम हेमन्त सोरेन के नेतृत्व वाली झारखण्ड सरकार के द्वारा विधानसभा से पारित किये गए सरना धर्म कोड का मामला हो, 1932 आधारित स्थानियता का मामला हो अथवा एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. के आरक्षण से संबंधित मामला हो, झारखण्डियों के हित के ज्वलंत विषयों को भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा लटका कर रखा गया या कानूनी दांव-पेंच में उलझा कर रखा गया। झारखण्डी हितों को ध्यान में रख कर बनायी गई झारखण्ड की नियोजन नीति को रद्द करवाने वाली भाजपा भारत के सरकारी सम्पत्तियों को बेचकर अपने कार्रपोरेट मित्रों को अथाह लाभ पहुँचाने का कार्य कर रही है। भारतीय उद्यमों को निजीकरण के आग में झोंक कर आरक्षण की बली चढाई जा रही है। केन्द्र सरकार पर झारखण्ड का बकाया एक लाख छत्तीस हजार करोड़ रूपये की राशी को रोक कर चुनाव संभावित तथा भाजपा शासीत राज्यों को अनुदान देना झारखण्ड के हितों की बली देना तथा झारखण्ड के साथ केन्द्र सरकार के सौतेले रवैये का प्रमाण है।
दिसम्बर 2019 में झारखण्ड के प्रबुद्ध मतदाताओं के द्वारा दिये गए शासन-सत्ता की बागडोर श्री हेमन्त सोरेन जी द्वारा अपने हाथ में लेने के पश्चात भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की उपेक्षा तथा विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के संक्रमण काल में भाजपा से विरासत में मिले खाली खजाने के साथ अपने कुशल नेतृत्व क्षमता तथा दुरगामी सोच के कारण विपरित परिस्थितियों में भी कुशलता पूर्वक निपटा गया।
झारखण्डी जनों के सपनों को साकार करने में श्री हेमन्त सोरेन जी के कुशल नेतृत्व वाली झारखण्ड सरकार जब भी झारखण्डी हितों की बात भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार से करती है तों भाजपा द्वारा चुप्पी साध कर झारखण्डी हितों की अनदेखी की जाती है।
झारखण्डी अधिकार मार्च के जरिए भाजपा और केंद्र सरकार की अकर्मण्यता और झारखण्ड के प्रति सौतेले व्यवहार के प्रति पूरे राज्य में जन आक्रोश देखने को मिला है। पूरे राज्य में हजारों लोगों ने सड़कों पर आकर भाजपा और केंद्र सरकार की भेदभाव की राजनीति का भंडाफोड़ किया। कैसे राज्य गठन के बाद से भाजपा सबसे अधिक समय तक सत्ता में कायम रह झारखण्ड को दीमक की तरह चाट कर खोखला करती रही। कैसे आदिवासी-मूलवासी को उनका हक एवं अधिकार देने की बात कह वह वर्षों तक सत्ता का सुख भोग करती रही। और वर्तमान में एक बार फिर भाजपा हिंदू-मुस्लिम, अगड़ा-पिछड़ा, आदिवासी-गैर-आदिवासी के नाम पर ओछी राजनीति कर राज्य को बांटने का षड्यंत्र रच रही है ताकि झारखण्डी हित में निर्णय ले रही हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन सरकार को काम नहीं करने दिया जाए।
लेकिन भाजपा यह नहीं जानती कि हेमंत सोरेन द्वारा जनहित में खिंची गई लकीर को ये राज्य की जनता के दिलों से कभी भी मिटा नहीं सकते। इसके लिए वे कुछ भी कर लें, जनता इसका जवाब आगामी विधानसभा चुनाव में देगी। हालांकि पाँच उपचुनाव भाजपा हारती रही है और जनता हेमन्त सरकार को मजबूती देती रही। इसके बावजूद भाजपा की कुटिलता यथावत है। आदिवासी और मूलवासी के हितों की बात और उनके अधिकार सुनिश्चित करने वाले हेमन्त सोरेन के खिलाफ भाजपा और केंद्र सरकार ने पूरा तंत्र क्यों खड़ा किया? इस तंत्र के सहयोग से तथाकथित जमीन घोटाला के झूठे मामले में हेमन्त सोरेन को राजभवन से रात के अंधेरे में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। लेकिन झारखण्डी अस्मिता की रक्षा के लिए हेमन्त सोरेन ने घुटने टेकना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने झारखण्डी स्वाभिमान से समझौता करना स्वीकार नहीं किया।
मुख्यमंत्री रहते हेमन्त सोरेन अक्सर कहा करते हैं, आखिर क्यों नहीं एक आदिवासी को केंद्र की भाजपा सरकार सत्ता में देखना पसंद नहीं करती है। सरकार गठन के बाद से ही झारखण्ड के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहा। बावजूद इसके जब हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में राज्य के लोगों को उनका हक और अधिकार देना शुरू किया गया तो भाजपा सरकार गिराने के मंसूबे रचने लगी, जिसमें वे कभी सफल भी नहीं हो पाए।
झारखण्डी हित में कार्य कर रही हेमन्त सरकार को परेशान करने का भाजपा द्वारा हमेशा कुथित प्रयास हुआ है। उस समय कहां था विपक्ष जब मुख्यमंत्री झारखण्ड के आदिवासियों और मूलवासियों को 1932 खतियान आधारित नियोजन नीति विधानसभा से पारित करवा रहे थे, पिछड़ो को 27 प्रतिशत आरक्षण पारित होने पर विपक्ष अड़ंगा क्यूँ लगाता रहा, वर्षों से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में संघर्ष कर रहे हजारों लोगों के लिए अधिसूचना रद्द करने के समय विपक्ष कहां था, जब राज्य का 1 लाख 32 हजार करोड़ रुपए बकाया हेमन्त सरकार मांग रही थी तो विपक्ष कहां था, सालों से पेंशन की बाट जोह रहे लाखों लोगों को भाजपा ने क्यों नहीं पेंशन दियाय आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यक वर्ग के युवाओं को विदेश में निःशुल्क उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर क्यों नहीं दिया, राज्य के वंचित 20 लाख गरीबों को आवास का अधिकार देने में मदद क्यों नहीं किया। भाजपा को क्या दिक्कत थी कि ओबीसी को आरक्षण देने वाले को जेल भेज दिया, लाखों लोगों को अन्न का अधिकार देने वाले को जेल भेज दिया, सरना आदिवासी धर्मकोड को लागू करने का दबाव बनाने वाले को फँसाया गया। क्यूँ झारखण्डी युवा हितैषी नियोजन नीति को रद्द करवाने का बीजेपी ने पीछे के दरवाजे से कुचक्र चला। भाजपा ने लाखों बच्चियों के सपने को पंख देने वाली राज्य सरकार के साथ सौतेला व्यवहार क्यूँ किया, श्रमिकों की हित की बात करने वाले के साथ केंद्र सरकार की बेरुखी क्यों हुई, किसानों का ऋण माफ करने वाले और उन्हें सूखा राहत देने वाले की उपेक्षा क्यों की भाजपा और केंद्र सरकार ने। महामारी काल में राज्य के लोगों का जीवन और जीविका सुरक्षित करने वाले हेमन्त सोरेन के साथ ऐसा क्यों? एक आदिवासी जननेता जिसने आगे बढ़कर झारखण्ड के लोगों के लिए कई लोक-कल्याणकारी निर्णय लिए, उसके साथ ऐसा क्यों किया? आज राज्य भर में झारखण्डी अधिकार मार्च के जरिए हर झारखण्डी पूछ रहा है।
झारखण्ड की जनता आज केन्द्र सरकार से अपने सम्मान एवं अधिकार की मांग करती है। आज ‘‘झारखण्डी अधिकार मार्च’’ के माध्यम से झारखण्ड की जनता केन्द्र सरकार को चेतावनी देती है कि झारखण्ड के प्रति अपने सौतेले रवैये में बदलाव लायें तथा झारखण्ड के हित में लिये गए निर्णय के प्रति सकारात्मक रवैया रखें तथा उसके अधिकारों को अविलम्ब दिया जाय अन्यथा वह दिन दुर नहीं जब झारखण्ड से भाजपा का खात्मा हो जाएगा।

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