झारखण्ड यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ की पत्रिका “कैम्पस परिमल ” का विमोचन
रांची: लिखना अनवरत जारी रखना चाहिए।लिखना समाज के प्रति शिक्षकों का फर्ज भी है। वक़्त बदल रहा है। लिखने वाले कम होते जा रहे।उस हालात में “कैम्पस परिमल ” का आना अकादमिक दुनिया में एक नई खुशबू है, जिसका फिलवक़्त इस्तेकबाल होना चाहिए। यह बातें प्रख्यात साहित्यकार व समालोचक डॉ. अशोक प्रियदर्शी ने
बतौर मुख्य वक्ता झारखण्ड यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ( जुटान ) की पत्रिका ” कैम्पस परिमल ” के लोकार्पण -सह – अंग्रेजी विभाग द्वारा आयोजित ” पत्र पत्रिकाएं और अंग्रेजी साहित्य में योगदान ” विषय पर सिंपॉजियम के मौके पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सभागार में कहीं।
इस समारोह की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. तपन कुमार शांडिल्य ने की, जिन्होंने पत्रिका को “क्रांति दूत” कहा और इसे शिक्षकों के हक के सवाल के साथ-साथ उनके सृजनात्मक विकास के लिए भी उपयोगी मंच बताया।
उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधरे, इसके लिए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय सदैव तत्पर है।
समारोह की शुरुआत डॉ. कंजीव लोचन, कन्वीनर, जुटान द्वारा स्वागत भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने कहा, “कैम्पस परिमल एक ऐसा मंच है जो शिक्षकों की आवाज को बुलंद करेगा और उनके विचारों को व्यापक जनसमुदाय तक पहुँचाएगा। इस पत्रिका का उद्देश्य शिक्षकों के सृजनात्मक लेखन को प्रोत्साहित करना और शिक्षा के क्षेत्र में नवाचारों को प्रकट करना है
“कैम्पस परिमल” के सम्पादक डॉ. विनय भरत ने कहा “हमें याद रखना चाहिए कि जुटान का उद्देश्य केवल प्रार्थनाएँ, याचिकाएँ और विरोध दर्ज करना नहीं है। यह मंच हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए भी है. और “कैम्पस परिमल ” इसी दिशा में पहला कदम है.”
डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने पत्रिका के सृजनात्मक पहलुओं और इसके लेखकों के योगदान पर चर्चा करते हुए कहा, “इस पत्रिका ने शिक्षकों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है, जहाँ वे अपनी सृजनात्मकता को खुलकर व्यक्त कर सकते हैं। यह मंच हमारे शिक्षकों की छिपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाने का कार्य करेगा।”
कार्यक्रम के पहले सत्र सिंपॉजिएम में शिक्षक
सुमित मिंज ने उन्नीसवीं सदी में में पैंफलेट की सामाजिक और राजनैतिक भूमिका और योगदान पर जोर देते हुए कहा कि पैंफलेट आधुनिक समाज का अभिन्न अंग है और लोगों को इसकी उपयोगिता समझनी चाहिए.
शिक्षिका दिव्या प्रिया ने मैरी वूलस्टॉनक्राफ्ट और मिशेल फुको का उदाहरण देते हुए पैंफलेट और जर्नल की विशेषताओं के बारे में अपने विचारो को साझा किया।
निशांत दुबे सर ने बताया कि जिस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
आधुनिक समय में राजनैतिक और धार्मिक मामलों में वाद–विवाद या कटाक्ष का जरिया बनी हैं,उसी प्रकार मध्यकालीन समय में मार्टिन लूथर के पैंफलेट और स्पेक्टेटर और टैटलर जैसे जर्नल किया करते थे।
समारोह में डॉ राजेश सिंह, डॉ. रोज उरांव, डॉ. उर्वशी, और डॉ. कामिनी सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और पत्रिका के प्रति अपने विचार साझा किए। उन्होंने ‘कैम्पस परिमल’ की प्रशंसा करते हुए इसे शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए एक प्रेरणादायक स्रोत बताया।
इस मौके पर अंग्रेजी विभाग के शिक्षक डॉ पियूषबाला, सुमित मिंज, दिव्या प्रिया, निशांत दुबे, ई एल एल के शिक्षक करमा कुमार, बी. एस. सी. (आई. टी.) के डॉ.राहुल शाह देव तथा अंग्रेजी विभाग के स्टॉफ संदीप के साथ- साथ सैकड़ों छात्र भरी बारिश के बीच भी उपस्थित रहे।