राइस मिल के जमाने में अब सिर्फ म्यूजियम की शोभा बनी ढेंकी
चतरा : मशीनी युग और आराम मतलबी जमाने में हमारे कई परंपरागत प्रसाधन समय के चलन से बाहर हो गए हैं। इन्हीं में से एक ढेंकी भी है जो आज के दौर में बिल्कुल गायब हो गई है। शोरगुल करते और कान फाड़ते मशीनों की बम्फड़ शोर-शराबे में परंपरागत ढेंकी की ढेचिंगचांव की मधुर आवाज थम सी गई है। आज की पीढ़ी ढेंकी का नाम से अनभिज्ञ हैं। अधिकांश लोग न तो कभी ढेंकी देखें होंगे और न तो कभी सुने होगे कि ढेंकी आखिर चीज क्या है? आज गेहूं पीसने, धान कूटने के लिये बड़ी बड़ी राईस मिले, आटा चक्की की मशीने उपलब्ध हो गए हैं। पहले के जमाने में जब ये मशीने नहीं थे तब धान कूटने के लिए लकड़ी के भारी भरकम ढेंकी ही एक मात्र सहारा हुआ करता था। लेकिन अब बिना किसी मशीनरी से धान कूटने की यह परंपरागत ढेंकी अब देखने को नहीं मिलती है और ना ही ढेंकी की ढेचिंगचांव की आवाज सुनाई देती है। पहले के जमाने में ग्रामीण क्षेत्रो में धान कूटने की मशीनरी दुकान उपलब्ध नहीं होने पर गांव के लोग ढेंकी से ही धान कूटते थे। गुजरे जमाने में प्रत्येक घरों में ढेंकी होती थी। किन्तु अब ढेंकी संस्कृति अपने अंतिम दौर पर है। ढेंकी तो अब सिर्फ म्यूजियम की वस्तु बन चुकी है।
प्रत्येक घरों की शान होती थी ढेंकी
गुजरे जमाने में ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग प्रत्येक धरों में ढेंकी होती थी। ढेंकी के लिए अलग से कमरा होता था जिसमें सिर्फ धान कूटने का ही काम किया जाता था। इसे ढेंकी घर कहते थे। वैसे कई घरों के बरामदे में भी ढेंकी देखने को मिलते थे। पैर से ढेंकी के एक सिरे को दबाया जाता है तो दुसरे तरफ धान पर ढेकी की चोट पड़ती है और धान कूटने का कार्य परंपरागत तरीके से हो जाता था।
ढेंकी देख कर बियाही जाती थी बेटियां
अब के जमाने में बेटियों का विवाह नौकरी, आलिशान घर, जमीन और दौलत देखकर की जाती है। परंतु गुजरे जमाने में बेटियों का विवाह ढेंकी देखकर किया जाता था। बताते हैं कि जिन घरों में ढेंकी होते थे लोग वैसे ही घरों में अपनी बेटियों का विवाह करना पसंद करते थे, ताकि विवाह के बाद उनकी बेटी को धान चावल कूटने के लिए दूसरे के घरों में ना जाना पड़े।
ढेंकी से कुटे धान के चावल से निकलती थी खूशबू
दुम्बी के बुजुर्ग लक्ष्मीनारायण तिवारी कहते हैं कि ढेंकी से कुटे हुये धान में पौष्टिक तत्व भी अधिक मात्रा में रहते है और खाने में भी स्वादिष्ट होता है। पूर्व प्रमुख धनुषधारी राम कहते हैं कि ढेंकी से कुटे धान के चावल से गजब का खूशबू होता था। यह खाने में भी स्वाद होता था।