भगवान श्रीगणेश और उनके परिवार की पूजा की महत्ता

गणपति की महिमा को सभी जानते हैं और यह भी जानते हैं कि वे माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इससे आगे गणेश के परिवार के बारे में जानते हैं, उनकी पत्नी और बच्चों के बारे में जानते हैं। जी हां भगवान श्री गणेश की पत्नियां भी हुई और बच्चे भी। मान्यता है कि यदि बुधवार के दिन इनके परिवार की पूजा की जाये तो भगवान श्री गणेश की कृपा अवश्य मिलती है।
प्रत्येक शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की ही पूजा की जानी अनिवार्य बताई गयी है। देवता भी अपने कार्यों की बिना किसी विघ्न के पूरा करने के लिए गणेश जी की अर्चना सबसे पहले करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि देवगणों ने स्वयं उनकी अग्रपूजा का विधान बनाया है। शास्त्रों में एक बार जिक्र आता है कि भगवान शंकर त्रिपुरासुर का वध करने में जब असफल हुए, तब उन्होंने गंभीरतापूर्वक विचार किया कि आखिर उनके कार्य में विघ्न क्यों पड़ा? तब महादेव को ज्ञात हुआ कि वे गणेशजी की अर्चना किए बगैर त्रिपुरासुर से युद्ध करने चले गए थे। इसके बाद शिवजी ने गणेशजी का पूजन करके उन्हें लड्डुओं का भोग लगाया और दोबारा त्रिपुरासुर पर प्रहार किया, तब उनका मनोरथ पूर्ण हुआ।
सनातन और हिन्दू शास्त्रों में भगवान गणेश जी को, विघ्नहर्ता अर्थात सभी तरह की परेशानियों को खत्म करने वाला बताया गया है। पुराणों में गणेशजी की भक्ति शनि सहित सारे ग्रहदोष दूर करने वाली भी बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटे दूर होती हैं। किसी भी मांगलिक कार्य में, घरों के द्वार पर, पूजाघर में, धार्मिक तस्वीरों, पोस्टरों आदि में अक्सर आपने शुभ और लाभ लिखा देखा होगा। दरअसल इन्हें भगवान गणेश की संतान माना जाता है
भगवान गणेश जहां विघ्नहर्ता हैं, वहीं रिद्धि और सिद्धि से विवेक और समृद्धि मिलती है। शुभ और लाभ घर में सुख सौभाग्य लाते हैं और समृद्धि को स्थायी और सुरक्षित बनाते हैं। सुख सौभाग्य की चाहत पूरी करने के लिये बुधवार को गणेश जी के पूजन के साथ ऋद्धि-सिद्धि व लाभ-क्षेम की पूजा भी विशेष मंत्रोच्चरण से करना शुभ माना जाता है।
इसके लिए सुबह या शाम को स्नानादि के पश्चात ऋद्धि-सिद्धि सहित गणेश जी की मूर्ति को स्वच्छ या पवित्र जल से स्नान करवायें, लाभ-क्षेम के स्वरुप दो स्वस्तिक बनाएं, गणेश जी व परिवार को केसरिया, चंदन, सिंदूर, अक्षत और दूर्वा अर्पित कर सकते हैं।

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