गणादेश खास…….तो सूख जाएंगे गर्मी में हलक,झारखंड में 4292 मीट्रिक क्यूबिक मीटर भू-गर्भ जल ही है उपलब्ध

सतही जल है 25876.98 मीट्रिक क्यूबिक मीटर
सिंचाई के लिए 3813.17 और उद्योगों के लिए 4338 मीट्रिक क्यूबिक मीटर पानी है उपलब्ध
शहरी क्षेत्रों में रोजाना पानी की जरूरत 1616.35 लाख गैलन, उपलब्ध सिर्फ 734.35 लाख
रांचीः झारखंड में जलस्तर दिनों दिन गिरता ही जा रहा है. वजह यह है कि जलप्रबंधन पर भी काम नहीं हुआ. ताजा ग्राउंड वाटर रिपोर्ट के अनुसार राज्य में पानी उपलब्धता की स्थिति भयावह हो सकती है. इस बार भी गर्मी में शहरी क्षेत्रों के बाशिंदों के हलक सूखेंगे. रिपोर्ट के अनुसार राज्य के शहरी क्षेत्रों में रोजाना 1616.35 लाख गैलन पानी की जरूरत है. जिसमें 734.35 लाख गैलन ही पानी उपलब्ध है. यह राज्य सरकार द्वारा शहरी क्षेत्रों में पाइप लाइन से पानी पहुंचाने का आंकड़ा है.
राज्य में 4292 मीट्रिक क्यूबिक मीटर भू-गर्भ जल है उपलब्घ
ग्राउंट वाटर रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 4292 मीट्रिक क्यूबिक मीटर ही भू-गर्भ जल उपलब्ध है. जबकि सतही जल (नदी, तालाब, झरना और डोभा) 25876.98 मीट्रिक क्यूबिक मीटर उपलब्ध है. इससे सिंचाई के लिए 3813.17 मीट्रिक क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध कराया जाता है. जबकि राज्य में स्थापित उद्योगों को 4338 मीट्रिक क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध कराया जाता है.
झारखंड के कई ईलाके डेंजर जोन में
रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के कई ईलाके डेंजर जोन में हैं। राजधानी रांची के रातू और कांके में स्थिति भयावह हो गई है. रातू में 73 फीसदी भू-गर्भ जल का दोहन हो चुका है. पिछले साल की तुलना में एक फीसदी दोहन में वृद्धि हुई है. इसे रिपोर्ट में सेमी क्रिटिकल स्थिति माना गया है. वहीं कांके में 113 फीसदी भू-गर्भ जल का दोहन हो चुका है. पिछले साल 112.4 फीसदी भू-गर्भ जल का दोहन हुआ था. इसे ओवर एक्सप्लोयट की स्थिति माना गया है. इसी तरह चास में 76 फीसदी, धनबाद में 93, रामगढ़ में 95, झरिया में 106, जमशेदपुर में 132 और गोड्डा में 118 फीसदी भू-गर्भ जल का दोहन हो चुका है. 90 से 100 फीसदी तक भू-गर्भ जल के दोहन वाले क्षेत्र को क्रिटिकल और 100 फीसदी से अधिक दोहन वाले क्षेत्र को ओवर एक्सप्लोयट वाला क्षेत्र माना गया है.
जल प्रबंधन पर भी नहीं हुआ काम
सिर्फ गर्मी में ही जल प्रबंधन की बात की जाती है. जल नीति तो बनी लेकिन इस पर काम ही नहीं हुआ. जलप्रबंधन के तहत राज्य जल योजना, अंतरराष्ट्रीय जल भागीदारी, कृषि भूमि सिंचाई के लिए पानी, जल की हकदारी का हस्तांतरण, घरेलू उपभोक्ता के लिए पानी, औद्योगिक उपयोग के लिए पानी, जल गुणवत्ता के साथ जल संसाधन परियोजनाओं की बेंच मार्किंग की जानी थी. यह भी नहीं हो पाया. भू-गर्भ जल प्रबंधन के लिए चास, रातू, धनबाद, गोड्डा, जमशेदपुर, झरिया और रांची के कांके में जल की क्षमता के पुननिर्धारण का भी काम नहीं हो पाया. भू-गर्भ जल अधिनियम भी सही तरीके से लागू नहीं हो पाया.
वाटर हार्वेस्टिंग फेल
राजधानी में ऐसे करीब एक लाख 58 हजार मकान है जो नगर निगम से रजिस्टर्ड हैं. लेकिन अब तक मात्र 11 हजार 200 घरों में ही हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की गई है. जबकि हर साल नगर निगम की ओर से 100 से ज्यादा घरों के नक्शों को स्वीकृत किया जाता है. मतलब साफ है कि रजिस्टर्ड घर होने के बाद भी रांची में करीब एक लाख घर ऐसे हैं जो नक्शा करके बनाये गये हैं और उनमें वाटर हार्वेस्टिग की कोई व्यवस्था नहीं है.
नौ मीटर गिरा ग्राउंड वाटर लेवल
साल 2009 से 2021 के बीच जल स्तर में नौ मीटर तक की गिरावट दर्ज की गयी है. राजधानी रांची के शहरी क्षेत्र में पूरी आबादी को पानी उपलब्ध कराने के लिए कुल 61 जलमीनार की जरूरत है, पर इस समय 24 जलमीनार ही हैं.
क्या कहते है भू-गर्भ शास्त्री
भू-गर्भ शास्त्री अनिल माल्टा कहते हैं कि अगर हर घर में वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था को सुनिश्चित किया जाय तो जमीन के पानी को रिचार्ज किया जा सकता है. छोटा हार्वेस्टिंग सिस्टम भी आपके 50 फीट के एरिया की जमीन को रिचार्ज करता है. जिससे की पानी की समस्या से निजात पाया जा सकता है.
रांची में भूमिगत जल की स्थिति
कांके रोड- 300 से 450 फीट
रातू रोड- 145 फीट से 320 फीट
हरमू- 170 फीट से 350 फीट
बूटी मोड़- 140 फीट से 270 फीट
डोरंडा- 190 फीट से 370 फीट
कोकर- 180 फीट से 350 फीट
धुर्वा- 210 फीट से 430 फीट
बरियातू- 220 फीट से 450 फीट

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