गणादेश खासः बिजली की डांवाडोल स्थिति, 6000 इंडस्ट्रीज बंद, उद्योगों को औसतन 8 घंटे भी नहीं मिलती है बिजली, हर महीने जल जाता है आठ लाख लीटर डीजल

खास बातें
घरेलू उपभोक्ताओं को 500 मेगावाट और औद्योगिक उपभोक्ताओं को 660 मेगावाट होती है बिजली की आपूर्ति
उद्योगों में हर माह आठ लाख लीटर डीजल की खपत
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रांचीः झारखंड में बिजली की डावांडोल स्थिति के उद्योगों को जबरदस्त झटका लगा है. स्थिति यह है कि झारखंड में बिजली की डांवाडोल स्थिति के कारण 6000 (आदित्यपुर सहित प्रदेश के अन्य जिले भी शामिल) छोटे और मध्यम उद्योग बंद हो गये हैं. धनबाद में ऑटोमोबाइल सेक्टर की बड़ी और नामी गिरामी फैक्ट्री हिन्दुस्तान मैनेबल ऑटोमोबाइल लिमिटेड बंद हो गयी. यह स्थिति पिछले चार साल में बनी है। झारखंड में लघु उद्योग 7000, बड़े उद्योग 45 और मध्यम उद्योग 300 हैं।
हर माह आठ लाख लीटर डीजल की खपत
उद्योगों को हर दिन औसतन आठ घंटे बिजली नहीं मिलती है. बिजली नहीं होने के कारण उद्योगों में हर माह आठ लाख लीटर डीजल की खपत हो रही है. इससे उद्योगों को हर माह 5.52 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ रहे हैं. डीजल से एक यूनिट बिजली उत्पादन करने में नौ से 10 रुपये प्रति यूनिट खर्च आता है. जबकि वितरण निगम ने उद्योगों के लिए 6.25 रुपये प्रति यूनिट की दर तय की है.
बिजली नहीं होने के कारण हर महीने 333 करोड़ का नुकसान
झारखंड में उद्योगों को बिजली नहीं मिलने के कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर से मिलनेवाले जीएसटी(गुड्स एंड सर्विस टैक्स) का नुकसान हो रहा है. हर महीने सरकार को 333 करोड़ रुपये जीएसटी नहीं मिल पा रहा है. इस कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर से सालाना 4000 करोड़ रुपये मिलनेवाले जीएसटी का नुकसान हो रहा है. जबकि वितरण निगम का तर्क है कि 60 फीसदी बिजली उद्योगों को और 40 फीसदी बिजली घरेलू उपभोक्ताओं को दी जाती है.
खुद वितरण निगम के आंकड़े बयां कर रहे हालात
खुद वितरण निगम के आंकड़े उद्योगों के बंद होने के हालात को बयां कर रहे हैं, पिछले तीन वित्तीय वर्ष में उद्योगों को लगातार कम बिजली दी गयी. जिसके कारण झारखंड से उद्योगों का पलायन हो गया. वितरण निगम के आंकड़े खुद बता रहे हैं कि उद्योगों को साल दर साल बिजली की कमी की गई. वित्तीय वर्ष 2016-17 में उद्योगों को 30.5 फीसदी बिजली दी गई. वित्तीय वर्ष 2017-18 में उद्योगों को 27.8 फीसदी बिजली दी गई. वहीं 2018-19 में उद्योगों को सिर्फ 25 फीसदी ही बिजली दी गई. 2019-20 में 27 फीसदी, जबकि 2020-21 में लगभग 30 फीसदी बिजली दी गई। यह बिजली देने की गिरावट का आंकड़ा वितरण निगम का ही है. जबकि 60 फीसदी बिजली उद्योग और 40 फीसदी बिजली घरेलू उपभोक्ताओं को देने का दावा वितरण निगम करता रहा है.
घरेलू उपभोक्ताओं को हर साल 32 करोड़ रुपये का नुकसान
घरेलू उपभोक्ताओं को हर साल लगभग 32 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. सेंट्रल ब्यूरो ऑफ एफिसिएंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हाई वोल्टेज और लो वोल्टेज के कारण घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद खराब हो रहे हैं. वहीं लाइन लॉस के नुकसान भी भरपाई भी उपभोक्ताओं को करनी पड़ती है. प्रदेश में लाइन लॉस 31 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय मानक 24 फीसदी है. इस हिसाब से लाइन लॉस राष्ट्रीय मानक से सात फीसदी अधिक है. एक फीसदी लाइन लॉस कम होने पर चार करोड़ रुपये की बचत होगी.
नियामक आयोग का निर्देश भी नहीं मानता वितरण निगम
झारखंड में राज्य विद्युत नियामक आयोग का भी निर्देश झारखंड राज्य बिजली वितरण निगम नहीं मानता है. विद्युत नियामक आयोग ने लाइन लॉस 15 फीसदी तक लाने का निर्देश दिया है. इससे पहले 16 फीसदी तक लाने का निर्देश दिया था. प्रावधान के मुताबिक हर साल बिजली दर निर्धारण के समय आयोग बिजली नुकसान में कमी लाने का निर्देश देता है. आज तक वितरण निगम आयोग के निर्देश का पालन नहीं कर सका है.
किस राज्य में कितना फीसदी होता है नुकसान
जम्मू कश्मीर 62, अरूणाचल प्रदेश 49,बिहार 44,मणिपुर 40, मध्यप्रदेश 35,झारखंड 32, चंढ़ीगढ़ 31,उत्तरप्रदेश 31,राजस्थान 27, मिजोरम 27, सिक्किम 26, पश्चिमबंगाल 25, असम 24, हरियाणा 24, उत्तराखंड 22, कर्नाटक 22, त्रिपुरा 22, तमिलनाडू 21, महाराष्ट्र 21, केरल 18, गुजरात 18, आंध्रप्रदेश 16, पांडिचेरी 12और हिमाचल प्रदेश 11 फीसदी है।

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