पूर्व सीएम बाबूलाल ने झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की,राज्यपाल को लिखा पत्र
रांची: पूर्व सीएम सह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। इसके लिए उन्होंने राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को पत्र लिखा है।
पत्र के मुताबिक उन्होंने कहा है कि झारखंड राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है। झारखंड राज्य में मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार की जांच कर रही जांच एजेंसियों के अनुरोध के प्रति राज्य सरकार और उसके अधिकारी उदासीन हो गए हैं। जब उपर्युक्त जानकारी मेरे पास आई, तो मैंने इसकी सच्चाई की जांच करने के लिए उचित प्रयास किए और आरोपों को सत्य और सही पाया । ऐसा लगता है कि जांच एजेंसियां वर्ष 2022 से मुख्य सचिव, झारखंड सरकार के कार्यालय को पत्र लिख रही हैं और उनसे कार्रवाई करने का अनुरोध कर रही हैं, लेकिन राज्य सरकार इस पर मूकदर्शक और पूर्ण निष्क्रिय ही रही है। यह उल्लेख करना उचित है कि कई मामलों में कई अनुरोध भेजे गए हैं और कोई कार्रवाई नहीं की गई है और न ही कोई उत्तर दिया गया है।
मैं इस तथ्य से अवगत हूं कि झारखंड सरकार के मुख्य सचिव के कार्यालय में भ्रष्टाचार के मामलों में उच्च सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के अनुरोध को छोड़कर ऐसे दस से अधिक मामले लंबित हैं। जांच एजेंसियों को न तो कोई जवाब दिया गया है और न ही कोई कार्रवाई की गई है, खासकर उन मामलों में जहां एजेंसियों द्वारा उपर्युक्त अनुरोध के साथ अनेक सबूत उपलब्ध कराए गए हैं। मैने इस संबंध में राज्य के मुख्य सचिव के साथ-साथ मुख्यमंत्री को भी लिखा था, लेकिन दोनों में से किसी की ओर से अबतक कोई जवाब नहीं मिला ।ऐसे में किसी भी व्यक्ति के लिए यह निष्कर्ष निकालना उचित है कि राज्य सरकार सक्रिय रूप से आरोपी व्यक्तियों को एक साजिश के तहत बचा रही है ।
उपरोक्त परिस्थितियों में सरकारी अधिकारियों की यह निष्क्रियता कानून द्वारा स्थापित एजेंसियों की जांच को अवरुद्ध करने के लिए बनाई गई है जो कुछ उदाहरणों में माननीय न्यायालयों के आदेश के अनुपालन में भी कार्य कर रहे हैं।
उपरोक्त तथ्यों के वर्णन से यह स्पष्ट होगा कि राज्य सरकार संविधान की मूल भावना के विपरीत कार्य कर रही है जिसके परिणामस्वरूप संवैधानिक तंत्र टूट गया है
यह उल्लेख करना उचित होगा कि चाहे ऐसी विफलता कानून के प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन करने वाले हेरफेर या कानून के तहत किए जाने वाले कार्यों को गुप्त रूप से दबाने / देरी करने के कारण हुई हो, दोनों ही संवैधानिक तंत्र की विफलता के समान होंगे।
मैं अनुरोध करता हूं कि तत्काल आवश्यक और सुधारात्मक कदम उठाए जाएं और यदि ऐसा असहयोग जारी रहता है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा की जाए।