आखिर कृषि सचिव को क्यों हटाना चाहते थे सुधाकर सिंह!

गणादेश ब्यूरो
पटनाः बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह अब पूर्व मंत्री हो चुके हैं। उनकी जगह बोधगया के विधायक को कृषि मंत्री बनाने की बात है। पर सवाल यह कि बमुश्किल कुछ दिन पहले पहली बार मंत्रिमंडल में शामिल हुए होने के तुरन्त बाद ही वह कृषि सचिव को हटाने पर क्यों अड़ गए! जबकि उन्होंने ठीक से विभाग समझा भी नहीं था।
सुधाकर सिंह अपनी ही सरकार की नीतियों से सहमत नहीं थे। शपथ ग्रहण से इस्‍तीफे तक सुधाकर सिंह ने कई ऐसे बयान दिए, जिससे सरकार पर सवाल खड़े हो रहे थे। उनकी मांगों और उनकी सोच से सरकार के शीर्ष स्‍तर पर बैठे लोग सहमत नहीं थे। राष्‍ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्‍यक्ष जगदानंद सिंह और सुधाकर के पिता ने सबसे पहले इसकी जानकारी मीडिया को दी। कुछ ही घंटे बाद उप मुख्‍यमंत्री तेजस्‍वी यादव की मार्फत सुधाकर का इस्‍तीफा मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार तक पहुंचा और उन्‍होंने इसे तत्‍काल राज्‍यपाल फागु चौहान के पास अपनी अनुशंसा के साथ भेज दिया।
जगदानंद सिंह ने कहा कि सुधाकर ने किसानों के हित में अपना पद छोड़ा है। इससे पहले सुधाकर ने कहा था कि अगर किसानों के हितों की अनदेखी होगी, तो उन्‍हें कुर्सी त्यागने में कोई मोह नहीं होगा।
सुधाकर सिंह के विवादित बयान भी इस्तीफे की वजह बने। मंत्री बनने के बाद से कृषि मंत्री सुधाकर सिंह सरकार पर हमले कर रहे थे। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, कृषि विभाग में चोर भरे पड़े हैं और वे मंत्री होने के नाते चोरों के सरदार हैं। माप तौल विभाग के अफसर पर वसूली का आरोप लगाया और कहा, कृषि विभाग का कोई अफसर पैसा मांगे तो जूते मारिएगा, मैं समझ लूंगा।कृषि रोड मैप को लेकर भी विवाद पैदा किए और कहा कृषि रोड मैप से न किसानों की आमदनी बढ़ी न पैदावार बढ़ी। मुख्यमंत्री ने जब मंत्रिमंडल की बैठक में विवादित बयानों पर उनका पक्ष जानना चाहा तो बैठक से निकल कर चले गए। लगातार सरकार विरोधी बातें सार्वजनिक मंच से कह रहे थे।
वह चाहते थे विभाग को अपनी तरह से चलाना।कृषि विभाग के सचिव एन सरवण कुमार का तबादला किया जाए। इसकी मांग उन्होंने की थी।
कृषि सुधार से जुड़ी मांगों पर सुनवाई नहीं, कृषि रोड मैप की जांच वह चाहते थे।
वह पुरानी मंडी व्यवस्था को राज्य में एक बार फिर प्रभावी बनाने की बात कर रहे थे।
सुधाकर सिंह ने कृषि बाजार समिति एक्ट को पुनर्जीवित करने के लिए पीत पत्र भी लिखा, वह चाहते थे प्रस्ताव कैबिनेट में लाया जाए। पर इन नीतिगत बातों पर उनकी जल्दीबाजी ने उन्हें कमजोर नेता के तौर पर ही रखा।

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